Wednesday, December 15, 2010

चौदहवीं का चाँद हो, या आफताब हो....अभिनेता के रूप में भी खासे सफल रहे गुरु दत्त



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 549/2010/249

गुरु दत्त के फ़िल्मी सफ़र का लेखा जोखा इन दिनों आप पढ़ रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। कल की कड़ी में हम आ पहँचे थे गुरु दत्त साहब के जीवन के उस मुकाम तक जहाँ पर उन्होंने आगे कोई भी फ़िल्म निर्देशित ना करने की क़सम खा ली थी। ऐसे में ६० के दशक की शुरुआत हुई गुरु दत्त निर्मित फ़िल्म 'चौदहवीं का चाँद' से, जिसके लिए उन्होंने निर्देशक चुना सादिक़ साहिब को। मुस्लिम परिवेश की इस फ़िल्म ने ज़बरदस्त कामियाबी बटोरी और फ़िल्म के सभी के सभी गानें सुपर-डुपर हिट हुए। ओ. पी. नय्यर और सचिन देव बर्मन के बाद गुरु दत्त ने इस फ़िल्म में बतौर संगीतकार लिया रवि को। और रवि उनकी सारी उम्मीदों पर खरे उतरे। 'काग़ज़ के फूल' की असफलता और 'चौदहवीं का चांद' की अपार सफलता पर गुरु दत्त ने कहा था - "लाइफ़ में, यार, क्या है? दो ही तो चीज़ें हैं - कामयाबी और हार। इन दोनों के बीच में कुछ नहीं है।" 'चौधहवीं का चांद' फ़िल्म के लिए बरोदा में लोकेशन्स ढूंढते हुए उन्होंने कहा था - "देखो ना, मुझे डिरेक्टर बनना था, डिरेक्टर बन गया, ऐक्टर बनना था, ऐक्टर बन गया, पिक्चर अच्छे बनाने थे, अच्छे बने। पैसा है, सब कुछ है, पर कुछ भी नहीं रहा।" उनकी ऐसी बातों से लोगों को लग ही रहा था कि उनके जीवन का सूर्य अस्त होने की कगार पर है, और ऐसा ही होकर रहा। 'चौदहवीं का चांद' फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे गुरु दत्त और वहीदा रहमान। जैसा कि हमने बताया, इस फ़िल्म के संगीतकार थे रवि और गीत लिखे शक़ील बदायूनी ने। गुरु दत्त को याद करते हुए रवि ने विविध भारती पर कहा था - "मेरी ज़िंदगी ने एक करवट बदली जब गुरु दत्त ने मुझे फ़ोन किया और कहा कि वो मुझे अपनी अगली फ़िल्म में म्युज़िक डिरेक्टर लेना चाहते हैं। मैं उनसे मिलने गया। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या शक़ील को गीतकार लेना उचित होगा। मैंने कहा कि शक़ील साहब तो बहुत अच्छे शायर हैं, लेकिन एक संशय यह है कि क्या वो नौशाद साहब के बाहर काम करेंगे? ख़ैर, शक़ील साहब आये और हम मिले। वो बहुत ही अच्छे इंसान थे। गुरु दत्त साहब से गानें डिस्कस होने के बाद जब हम बाहर निकले तो शक़ील साहब ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा, "मैंने बाहर काम नहीं किया है, मुझे सम्भाल लेना।"

आगे उस इंटरव्यु में रवि साहब ने बताया कि 'चौदहवीं का चांद' रिलीज़ होने के बाद एक दिन गुरु दत्त ने उनसे कहा था, "जिस दिन मैंने आपकी 'मेहंदी' देखी थी, उसी दिन मैंने यह डिसाइड कर लिया था कि अगर कभी मुस्लिम सब्जेक्ट पर फ़िल्म बनाया तो म्युज़िक डिरेक्टर आपको ही लूँगा।" दोस्तों, आपको फ़िल्म 'मेहंदी' का वह गीत तो ज़रूर याद होगा, "अपने कीये पे कोई पशेमान हो गया"। वाक़ई मुस्लिम सब्जेक्ट की फ़िल्मों में रवि का संगीत बहुत अच्छा रहा। जब उनसे इसके पीछे का कारण पूछा गया तो उन्होंने बस यही जवाब दिया, "कोई ख़ास कारण नहीं है, मुझे ग़ज़लों से प्यार है और मुजरा टाइप के गानें बनाने का मुझे बहुत शौक है, बस!" तो लीजिए दोस्तों, आज की कड़ी में सुनिए फ़िल्म 'चौदहवीं का चांद' का मशहूर शीर्षक गीत मोहम्मद रफ़ी साहब की आवाज़ में। इस फ़िल्म का एक गीत "बदले बदले से सरकार नज़र आते हैं" हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुनवा चुके हैं और बाकी के गीत भी आप भविष्य में सुन पाएँगे, जैसे कि "दिल की कहानी रंग लाई है", "अंदर से बड़े ज़ालिम, बाहर से बड़े भोले", "मिली ख़ाक में मोहब्बत", "मेरा यार बना है दुल्हा", "बालम से मिलन होगा", "ये लखनऊ की सरज़मीं" आदि। लेकिन इस फ़िल्म का जो चार्टबस्टर है, वह आज का प्रस्तुत गीत ही है। राग पहाड़ी पर आधारित गीत सुनने से पहले ये रहे इस गीत के बोल। अपनी प्रेमिका की ख़ूबसूरती का अंदाज़-ए-बयाँ इससे बेहतर भला और क्या हो सकता है! इस गीत में वहीदा का सौंदर्य अधिक था या शकील शायरी, रफ़ी की अदायगी या रवि का संगीत, यह बताना बेहद मुश्किल भरा काम है।

चौदहवीं का चांद हो, या आफताब हो,
जो भी हो तुम ख़ुदा की क़सम लाजवाब हो।

ज़ुल्फ़ें हैं जैसे कांधों पे बादल झुके हुए,
आँखें जैसे मय के प्याले भरे हुए,
मस्ती है जिसमें प्यार की तुम वो शराब हो।

चेहरा है जैसे झील में हँसता हुआ कंवल,
या ज़िंदगी के साज़ पे छेड़ी हुई ग़ज़ल,
जाने बहार तुम किसी शायर का ख़्वाब हो।

होंठों पे खेलती है तबस्सुम की बिजलियाँ,
सजदे तुम्हारी राहों में करती है कहकशाँ,
दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का तुम ही शबाब हो।



क्या आप जानते हैं...
कि रवि और शक़ील ने 'चौदहवीं का चांद' फ़िल्म के गानों की सिटिंग् रवि के उस समय बन रहे घर की अधूरी दीवारों के बीच बैठ कर ही की थी।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 10/शृंखला 05
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.

सवाल १ - गायिका बताएं - १ अंक
सवाल २ - किस अभिनेत्री पर गया है ये गीत फिल्माया - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी ने आते आते बहुत देर कर दी, ये शृंखला भी श्याम जी के ही नाम रहेगी, ऐसा लग रहा है, बधाई जनाब

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

5 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

अभीनेत्री -वहीदा रहमान -

Anonymous का कहना है कि -

आशा भोंसले जी

AVADH का कहना है कि -

संगीतकार: हेमंत कुमार
अवध लाल

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

तीनों नें तीन इक्के फ़ेंक दिये हैं, अब क्या लिखें...

अमित तिवारी का कहना है कि -

सवाल १ - गायिका बताएं - १ अंक आशा भोंसले

सवाल २ - किस अभिनेत्री पर गया है ये गीत फिल्माया - २ अंक वहीदा रहमान

सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक हेमंत कुमार

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन