ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 575/2010/275
ऐल्बर्ट आइन्स्टाइन ने कहा था कि "Energy can neither be created, nor destroyed; it can only be transformed from one form to another"| उधर हज़ारों साल पहले गीता में भी तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया था कि आत्मा अमर है, वह बस एक शरीर को त्याग कर दूसरे शरीर का रूप धारण कर लेती है। क्या आइन्स्टाइन और गीता की इन दो बातों का आपस में कोई ताल्लुख़ है? और अगर है तो क्या पुनर्जनम को वैज्ञानिक स्वीकृति दी जा सकती है? 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस अजीब-ओ-गरीब शृंखला में जिसका नाम है 'मानो या ना मानो'। जी हाँ, यह पूर्णत: आप पर है कि आप किस बात पर यकीन करे और किस बात पर नहीं। और हम भी आप पर कुछ थोपना नहीं चाहते। किसी भी बात को अपनी बुद्धि और ज्ञान से तोलकर उस पर विश्वास करना ही उचित है। हम तो बस इस शृंखला में ऐसी बातें और घटनाएँ बता रहे हैं जो प्रचलित हैं, मशहूर हैं, लेकिन ज़रूरी नहीं कि विज्ञान सम्मत भी हो। ख़ैर, जैसा कि कल हमने वादा किया था कि आज की कड़ी में हम आपको दो मशहूर पुनर्जनम की कहानियाँ बताएँगे, तो लीजिए पहली कहानी यह रही। हम सब के दिलों में कल्पना चावला की यादें तो अब तक ताज़ी होंगी। जी हाँ, वही ऐस्ट्रॊनौट कल्पना चावला जिनका १ फ़रवरी २००३ को कोलम्बिया स्पेस शटल में महाकाश से वापसी के दौरान मृत्यु हो गई थी जब वह स्पेस शटल पृथ्वी पर पहूँचने से पूर्व टुकड़े टुकड़े हो गया था। २३ मार्च २००३ को बुलंदशहर, उत्तर-प्रदेश में उपासना का जन्म हुआ जिसके बारे में सुना जाता है कि वह कल्पना चावला का पुनर्जनम है। जब उपासना चार साल की थी, वह कहती थी कि उसे हवाईजहाज़ से डर लगता है क्योंकि उसकी मृत्यु एक एयरक्रैश में हुई थी। उसने कल्पना चावला के पिता का नाम भी सटीक बता दिया था और यही नहीं कल्पना चावला के तमाम प्रोफ़ेसर्स और मेण्टर्स के नाम भी बड़ी फ़ुर्ती के साथ बता दिये थे। अब आप ही बताइए कि कल्पना चावला के प्रोफ़ेसर्स के नाम इस छोटे से शहर की इस नन्ही सी बच्ची को कैसे मालूम होगा? बात यहीं पे ख़त्म नहीं होती, उपासना के पिता राज कुमार ने यह बताया कि जब से उपासना ने बोलना सीखा है, वह अपना नाम कल्पना चावला ही बताती थी। वैसे यह भी सच है कि वैज्ञानिक तौर पर उपासना के पुनर्जनम की इस कहानी की पुष्टि नहीं हो पायी है। दूसरी कहानी है उत्तर-प्रदेश के सहारनपुर के बिलासपुर गाँव के १४ साल के राजेश की, जो नवीं कक्षा का छात्र है। राजेश उस वक़्त सबकी नज़र में छा गया जब उसने यकायक बिल्कुल शुद्ध अमेरिकी उच्चारण में अंग्रेज़ी बोलने लगा। वह अपनी मातृ भाषा भूल गया और ऐसे बात करने लगा जैसे कोई ४० वर्ष का वैज्ञानिक बात करता है। यही नहीं, वह दूसरे छात्रों को फ़िज़िक्स, केमिस्ट्री तक पढ़ाने लग पड़ा। वह ऐसी ऐसी बातें ब्लैकबोर्ड पर लिखने लगा कि सभी चकित रह गये। वह महाकाशविज्ञान की बातें करता रहता। लेकिन ना तो वो कभी अमेरिका गया है और ना ही किसी से अंग्रेज़ी बोलना सीखा है। हुआ कुछ ऐसा था कि राजेश का पिता, जो एक मानसिक रोगी था, एक बार अपने ही सर पे चोट लगा ली और बहुत बुरी तरह ज़ख्मी हो गये। अपने पिता की ऐसी हालत देख राजेश ने भी चुप्पी साध ली और तीन महीनों तक एक शब्द मुंह से नहीं निकाला और अपने कमरे में बंद रहने लगा। तीन महीने बाद जब वो बाहर आया तो पूरी तरह से बदल चुका था। उसकी भाषा उसकी अनपढ़ माँ नहीं समझ पाती थी। लोग कहने लगे कि शायद राजेश किसी अमेरिकी वैज्ञानिक का पुनर्जनम है, जिसे अपने पिछले जनम की याद आ गयी है। लेकिन यह सिद्ध नहीं हो सका कि उस अमेरिकी वैज्ञानिक का नाम क्या था। अब क्या यह पुनर्जनम का मिसाल है या 'स्प्लिट पर्सनलिटी' का, यह तो शोध से ही पता चलेगा।
पुनर्जनम की जिस फ़िल्म का आज हम गीत सुनेंगे, वह है 'महबूबा'। राजेश खन्ना और हेमा मालिनी अभिनीत इस फ़िल्म के गानें तो आप सभी ने सुने ही होंगे। "मेरे नैना सावन भादों, फिर भी मेरा मन प्यासा"। लता और किशोर का डबल-वर्ज़न गीत है, आज हम सुनेंगे इस गीत को किशोर दा की आवाज़ में। इस गीत के बारे में ख़ुद पंचम से जानने से पहले आपको यह बता दें कि राजेश खन्ना और हेमा मालिनी ने साथ में एक और पुनर्जनम पर आधारित फ़िल्म की थी, जिसका नाम था 'कुद्रत'। "मेरे नैना सावन भादों" राग शिवरंजनी पर आधारित है। इस गीत से जुड़ा एक मज़ेदार क़िस्सा बता रहे हैं इस गीत के संगीतकार राहुल देव बर्मन। "यह गाना लताबाई ने भी गाया और किशोर दा ने भी। मैंने जब गाना सुनाया तो किशोर दा ने कहा कि 'नहीं भाई, यह गाना तो मुझसे नहीं होगा, तुम लता को पहले गवाओ'। मैंने लता जी को जाकर रिक्वेस्ट किया, उसके बाद किशोर दा को कहा कि यह शिवरंजनी राग है। वो बोले 'राग की तो ऐसी की तैसी, मुझे गाना सुनाओ लता का गाया हुआ, मैं बाइ-हार्ट करके वैसा ही गाऊँगा'। तो उन्होंने गाना सुना और कम से कम ७ दिनों तक सुनते रहे, उनके गाने के बाद ऐसा नहीं लग रहा था कि वो सीख कर गा रहे हैं। वो मन से ही गा रहे हैं। कितना डेडिकेशन था उनमें!" जी हाँ दोस्तों, किशोर दा के इसी डेडिकेशन को सलाम करते हुए सुनते हैं आनंद बक्शी का लिखा फ़िल्म 'महबूबा' का यह सदाबहार हौण्टिंग् नंबर।
क्या आप जानते हैं...
कि आनंद बक्शी को तीन बार फ़िल्मफ़ेयर के तहत सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कर मिला - "आदमी मुसाफ़िर है" (अपनापन), "तेरे मेरे बीच में" (एक दूजे के लिए) और "तुझे देखा तो ये जाना सनम" (दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे) गीतों के लिए।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 06/शृंखला 08
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक और शानदार सस्पेंस थ्रिल्लर.
सवाल १ - गीतकार बताएं - 2 अंक
सवाल २ - फिल्म के निर्देशक बताएं - 1 अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन हैं - 1 अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी आपने दूसरी कोशिश में और अंजाना जी ने तीसरी कोशिश में सही जवाब पकड़ा, पर शरद जी भी ठीक समय पर आये और अमित जी के ही बराबर २ अंक के हकदार बन गए...कह सकते हैं कि अमित जी भाग्यशाली रहे कल कि समय रहते उन्हें सही राग याद आ गया. हाँ पर हमारे अवध जी पहली बार में ही सही जवाब के साथ हाज़िर हुए, बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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9 श्रोताओं का कहना है :
गीतकार बताएं-रवि
गीतकार असद भोपाली
संगीतकार-रवि
पता नहीं क्या हो गया है मुझे गलतियाँ कर रहा हूँ. जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास शायद इसकी वजह है या फिर सबसे पहले उत्तर देने की कोशिश.माफी चाहता हूँ कि ऐसी गलतियाँ कर रहा हूँ.दुर्भाग्यवश मैं अपना गलत उत्तर हटा नहीं पा रहा हूँ. मेरा उत्तर गीतकार के लिए ही है.
फिर से माफी चाहूँगा
geetkar : Asad Bhopali
yadi Amit ji ka Geetkar ke liye manya hai to mera Director : Nisar ahmed ansari samajh leejiye
निसार अहमद अंसारी ने इस फिल्म में रणजीत नाम के पात्र की भूमिका निभाई थी.लगभग ३३ फिल्म्स में उन्होंने अभिनय करा था.११ फिल्मों का निर्देशन करा था जिसमे टावर हाउस भी थी.
अब तक तो सर्वश्री अमित तिवारी, विजय दुआ, एवं शरद जी ने तीनों उत्तर दे ही दिए हैं.
एन ए अंसारी नाम से प्रसिद्ध विलेन और निर्माता, निर्देशक ने अनेक रहस्य फिल्मों का निर्माण किया था.वोह झाँसी(बुंदेलखंड क्षेत्र)से थे और उनके बैनर का नाम बुंदेलखंड फिल्म्स था. अगर मैं गलत नहीं तो उनकी अंतिम फिल्म थी "जिंदगी और मौत" जिसमें फरियाल मुख्य नायिका थीं. मधुर गीत 'दिल लगा के हम ये समझे जिंदगी क्या चीज़ है' तो सब 'ओल्ड इज़ गोल्ड' महफ़िल के सुधी सदस्यों को पसंद ही होगा.
अवध लाल
अवध जी निसार अहमद अंसारी ने 'जिंदगी और मौत' के बाद तीन और फिल्मों का निर्देशन करा था.
१. वहाँ के लोग - १९६७
२. मिस्टर. मर्डर - १९६९
३. जुर्म और सजा - १९७४
बतौर निर्देशक अंतिम फिल्म रही 'जुर्म और सजा'.
'जुर्म और सजा' और 'वहाँ के लोग' के वो निर्माता भी थे.
बतौर अभिनेता उनकी अंतिम फिल्म थी 'जय विक्रांता' जो उनके निधन के २ साल बाद १९९५ में प्रदर्शित हुई थी.
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