ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 596/2010/296
नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर एक नए सप्ताह के साथ हम वापस हाज़िर हैं और आप सभी का फिर एक बार बहुत बहुत स्वागत है इस सुरीली महफ़िल में। इन दिनों आप सुन और पढ रहे हैं पियानो साज़ पर केन्द्रित हमारी लघु शृंखला 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़'। जैसा कि शीर्षक से ही प्रतीत हो रहा है कि इसमें हम कुछ ऐसे फ़िल्मी गीत सुनवा रहे हैं जिनमें पियानो मुख्य साज़ के तौर पर प्रयोग हुआ है; लेकिन साथ ही साथ हम पियानो संबंधित तमाम जानकारियाँ भी आप तक पहुँचाने की पूरी पूरी कोशिश कर रहे हैं। पिछली पाँच कड़ियों में हमने जाना कि पियानो का विकास किस तरह से हुआ और पियानो के शुरु से लेकर अब तक के कैसे कैसे प्रकार आये हैं। आज से अगली पाँच कड़ियों में हम चर्चा करेंगे कुछ मशहूर पियानो वादकों की, और उनमें कुछ ऐसे नाम भी आयेंगे जिन्होंने फ़िल्मी गीतों में पियानो बजाया है। दुनिया भर की बात करें तो पियानो के आविष्कार से लेकर अब तक करीब करीब ५०० पियानिस्ट्स हुए हैं, जिनमें से गिने चुने पियानिस्ट्स ही लोकप्रियता के चरम शिखर तक पहुँच सके हैं। और जो पहुँचे हैं, उन सब ने बहुत ही कम उम्र से पियानो बजाना और सीखना शुरु किया था, जिससे कि आगे चलकर उन्हें इस साज़ पर दक्षता हासिल हो गई। हम दुनिया भर से दस पियानिस्ट्स का ज़िक्र करेंगे। आज की कड़ी में आयेंगे पाँच नाम, और आने वाली किसी कड़ी में बाकी के पाँच। पहला नाम है सर्गेइ राचमैनिनोफ़ (Sergei Rachmaninoff) का, जिनके हाथ नामचीन पियानिस्ट्स में सब से बड़े थे। तभी तो वो एक पल में १४ नोट्स तक बजा लेते थे। उन्होंने अपनी इस दक्षता का इसतमाल अपने कम्पोज़िशन्स में किए जैसे कि Rhapsody on a Theme of Paganini, 8 Preludes, आदि। दूसरा नाम जै जोसेफ़ हॊफ़मैन (Josef Hoffman) का। इस युवा प्रतिभा ने ६ वर्ष की आयु में ही कॊन्सर्ट्स में पियानो बजाने लगे और मात्र १२ वर्ष की आयु में वो पहले रेकॊर्डेड म्युज़िशियन बन गये। म्युज़िकल रेकॊर्डिंग्स के लिए उन्होंने थॊमस एडिसन के साथ काम किया। तीसरा नाम एक बहुत ही मशहूर नाम है, लुदविग वान बीथोवेन (Ludwig Van Beethoven)। इस जर्मन कम्पोज़र और पियानिस्ट ने बहुत शोहरत हासिल की, और सब से हैरत की बात यह थी बीथोवेन के बारे में, कि वो २६ वर्ष की उम्र में बधीर हो जाने के बावजूद ना केवल पियानो बजाते रहे, बल्कि कम्पोज़ भी करते रहे। बीथोवेन के बाद हम नाम लेना चाहेंगे व्लादिमिर होरोविट्ज़ (Vladimir Horowitz) का, जो बीसवीं शताब्दी के एक बेहद जाने माने पोइयानिस्ट थे। उन्होंने फ़ेलिक्स ब्लुमेनफ़ेल्ड और सर्गेइ तार्नोवस्की से पियानो का अध्ययन किया, और उनकी ख़ासीयत थी भारीभरमकम पीसेस को भी बहुत ही रचनात्मक्ता के साथ बजाना। आजे के अंक का पाँचवाँ और अंतिम नाम है फ़्रेडरिक चॊपिन (Fredric Chopin) का। चॊपिन एक ऐसे कम्पोज़र थे जिनकी कम्पोज़िशन्स युवा पियानो स्टुडेण्ट्स बजाते हैं। चॊपिन ख़ुद भी बालावस्था में एक आश्चर्य-बालक थे, और उनकी तुलना मोज़ार्ट जैसे महान संगीतकार से की जाती है।
जैसा कि कल के अंक में हमने आपको बताया था कि हम ६० के दशक से भी दो गीत सुनेंगे, तो आइए आज सुना जाये रफ़ी साहब की आवाज़ में १९६८ की फ़िल्म 'ब्रह्मचारी' का एक बेहद लोकप्रिय गीत "दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर, यादों को तेरी मैं दुल्हन बनाकर, रखूँगा मैं दिल के पास, मत हो मेरी जाँ उदास"। हसरत जयपुरी का गीत और शंकर-जयकिशन का संगीत। शम्मी कपूर, मोहम्मद रफ़ी और शंकर-जयकिशन वह तिक़ड़ी है जिसने ६० के दशक में जैसे हंगामा कर दिया था, फ़िल्मी गीतों की प्रचलित धारा को मोड़ कर उसमें बहुत ज़्यादा ग्लैमर और ऒर्केस्ट्रेशन लेकर आये थे। अभी हाल ही में मेरी किसी संगीतकार से बातचीत हुई थी, जिन्होंने यह अफ़सोस ज़ाहिर किया था कि क्या ज़रूरत थी शंकर जयकिशन को इतने ऊँचे पट्टे के गानें बनाने की, इतनी लाउडनेस लाने की, इतनी शोर पैदा करने की। दिल के ज़ख़्म या फिर किसी भी जज़्बात को पैदा करने के लिए जज़्बात और शब्दों की ज़रूरत होती है, अर्थक साज़ों की नहीं। ख़ैर, पसंद अपनी अपनी, ख़याल अपना अपना। हक़ीक़त यही है कि एस.जे. रचित यह गीत एक बेहद कामयाब और सुपर-डुपर हिट गाना है, और हसरत साहब ने भी क्या ख़ूब बोल पिरोये हैं इस गीत में। "अब भी तेरे सुर्ख़ होठों के प्याले, मेरे तसव्वुर में साक़ी बने हैं, अब भी तेरी ज़ुल्फ़ के मस्त साये, बिरहा की धूप में साथी बने हैं"। दरअसल इस गीत की सिचुएशन बिल्कुल वह सिचुएशन है जिसमें नायक को लगता है कि नायिका किसी और की होने वाली है, पार्टी चल रही है, सामने पियानो रखा है, उसे गीत गाना है, और ऐसा गीत जिसके बोल नायिका के दिल पर शूल की तरह चुभें लेकिन दूसरों को भनक भी ना पड़े कि नायिका के लिए गीत गाया जा रहा है। इस फ़िल्म में नायक शम्मी कपूर अपनी नायिका राजेश्री के लिए यह गीत गाते हैं जो प्राण साहब की होने वाली हैं। तो लीजिए सुनिए और महसूस कीजिए रफ़ी साहब के गले के रेंज को।
क्या आप जानते हैं...
कि जापान में पियानो का निर्माण करने वाली पहली कंपनी थी 'यामाहा' और वह वर्ष था १८८७।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 07/शृंखला 10
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - किस अभिनेता पर है ये गीत फिल्माया - २ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - ३ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन हैं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
एक बार फिर अमित जी और अंजाना जी की टक्कर जारी है....शरद जी और इंदु जी लग रहा है जैसे अब वरिष्ठों की श्रेणी में आ गए हैं :) हा हा हा
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
विशेष सहयोग: सुमित चक्रवर्ती
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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8 श्रोताओं का कहना है :
गीतकार-नीरज
Lyrics : Dev Kohli
Vinod Mehra
ab to sangeetkar hi bacha hai : shankar jaikishan
aaj to lag raha hai Anjana ji Amit tiwari par bhari pad gaye.
शरद जी सही कहा. आज मैं चूक गया.
प्रिय सुजॉय,
कल २० फरवरी को ओल्ड इस गोल्ड ने अपने २ साल पूरे कर लिए, तुम्हें इस बड़ी उपलब्धि पर ढेरों बधाईयाँ....:)
सजीव जी को, सुजॉय दा तथा समूचे हिन्द-युग्म परिवार को OIG के २ वर्ष पूरे करने पर हार्दिक बधाई! Another feather in Sujoy Da's cap!
Regards
Sumit Chakravarty
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