ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 683/2011/123
ठुमरी गीतों की हमारी श्रृंखला "रस के भरे तोरे नैन" की तीसरी कड़ी में आप सभी संगीत प्रेमियों का मैं कृष्णमोहन मिश्र स्वागत करता हूँ| कल की ठुमरी में आपने श्रृंगार रस के वियोग पक्ष का कल्पनाशील चित्रण महसूस किया था; किन्तु आज की ठुमरी में नायिका अपने प्रियतम से बिछड़ना ही नहीं चाहती| उसे रोकने के लिए नायिका तरह-तरह के प्रयत्न करती है, तर्क देती है, यहाँ तक कि वह अपने प्रियतम को धमकी भी देती है|
इस श्रृंखला की पहली कड़ी में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि ठुमरी शैली में रस, रंग और भाव की प्रधानता होती है| ख़याल शैली के द्रुत लय की रचना (छोटा ख़याल) और ठुमरी में मूलभूत अन्तर यही होता है कि छोटा ख़याल में शब्दों की अपेक्षा राग के स्वरों और स्वर संगतियों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है, जबकि ठुमरी में रस के अनुकूल भावाभिव्यक्ति पर ध्यान रखना पड़ता है| प्रायः ठुमरी गायक / गायिका को एक ही शब्द अथवा शब्द समूह को अलग-अलग भाव में प्रस्तुत करना होता है| इस प्रक्रिया में राग के निर्धारित स्वरों में कहीं-कहीं परिवर्तन करना पड़ता है|
आज हम ठुमरी की उत्पत्ति और उसके क्रमिक विकास पर थोड़ी चर्चा करेंगे| दरअसल ठुमरी की उत्पत्ति के विषय में अनेक मत-मतान्तर हैं| सामान्य धारणा है कि 19 वीं शताब्दी के मध्यकाल में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में ठुमरी का जन्म हुआ| परन्तु यह धारणा पूरी तरह ठीक नहीं है| 19 वीं शताब्दी से काफी पहले भारतीय संगीत शास्त्र इतना समृद्ध था कि उसमें किसी नई शैली के जन्म लेने की सम्भावना नहीं थी| भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में गीत के मूल तत्वों का जो निरूपण किया गया है, उसके अन्तर्गत सभी प्रकार के गीत किसी न किसी रूप में उपस्थित थे| दरअसल नवाब वाजिद अली शाह संगीत-नृत्य प्रेमी थे और संरक्षक भी| उन्नीसवीं शताब्दी में ही नवाब और कदरपिया नामक संगीतज्ञ ने कत्थक नृत्य के साथ गायन के लिए कई प्रयोग किये| द्रुत लय के ख़याल, अवध क्षेत्र की प्रचलित लोक संगीत शैलियों तथा ब्रज क्षेत्र के कृष्णलीला से सम्बन्धित गेय पदों का नृत्य के साथ प्रयोग किया गया| नवाब के दरबारी गायक उस्ताद सादिक अली खां का योगदान भी इन प्रयोगों में था| नवाब वाजिद अली शाह ने खुद "अख्तरपिया" उपनाम से इस प्रकार के कई गीत रचे| नवाबी शासनकाल तक नृत्य के लिए तैयार की गईं ऐसी रचनाओं को "नाट्यगीति" या "काव्यगीति" ही कहा जाता था| इस शैली का "ठुमरी" नामकरण 1856 के आसपास प्रचलित हुआ| नवाब वाजिद अली शाह के दरबार से "ठुमरी" की उत्पत्ति हुई; यह कहना उपयुक्त न होगा| हाँ; नवाब के दरबार में यह एक शैली के रूप में विकसित हुई और यहीं पर "ठुमरी" के रूप में इस शैली की पहचान बनी|
"ठुमरी" का विकास क्रम कथक नृत्य में भाव प्रदर्शन से जुड़ा हुआ है| आज हम आपको जो ठुमरी सुनाने जा रहे हैं, वह भी नृत्य पर फिल्माया गया है| 1949 में निर्मित फिल्म "बेक़सूर" में गायिका राजकुमारी द्वारा गायी राग "पीलू" में निबद्ध इस ठुमरी को शामिल किया गया है| यह एक पारम्परिक ठुमरी है, किन्तु फिल्म के गीतकार आरज़ू लखनवी ने आरम्भ में और अन्तरों के मध्य विषय के अनुकूल उर्दू के शे'र भी जोड़े हैं| पूरब अंग की ठुमरियों में, विशेष रूप से दादरा में ऐसे प्रयोग प्रारम्भ से ही होते रहे हैं| फिल्मों में जब पारम्परिक गीत शामिल किये जाते है तब प्रायः भ्रम की स्थिति बन जाती है| फ़िल्मी ठुमरियों के मामले में यह भ्रम कुछ अधिक ही रहता है| रिकार्ड पर फिल्म के गीतकार का नाम अंकित होता ही है, किन्तु ठुमरी की रचना में गीतकार की भूमिका तय करना कठिन होता है| साहिर लुधियानवी और शैलेन्द्र ऐसे गीतकार हुए हैं, जिन्होंने परम्परागत शास्त्रीय और उपशास्त्रीय रचनाओं से प्रेरणा लेकर फिल्मों में कई सफल गीतों की रचनाएँ की हैं| कुछ गीतकारों ने परम्परागत ठुमरी के स्थायी को बरक़रार रखा, किन्तु अन्तरा की पंक्तियाँ अपनी ओर से जोड़ दीं| इसी प्रकार संगीतकारों की भूमिका भी अलग-अलग रही| इस ठुमरी के संगीतकार अनिल विश्वास ने ठुमरी के अनुकूल वाद्यों का बड़ा प्रभावी उपयोग किया है| आइए राग पीलू की इस ठुमरी का रसास्वादन किया जाए-
क्या आप जानते हैं...
कि अपने समय में फिल्म "बेक़सूर" बॉक्स ऑफिस पर सातवीं सबसे सफल फिल्म थी| 1950 में प्रदर्शित इस फिल्म ने लगभग नब्बे लाख रूपये की कमाई की थी|
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 04/शृंखला 19
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - अमीरबाई की आवाज़ है एक बार फिर.
सवाल १ - किस राग पर आधारित है ये ठुमरी - ३ अंक
सवाल २ - गीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
क्षिति जी आपने अपने बारे में जो जानकारी दी उसे सुनकर बेहद अच्छा लगा, हम चाहेंगें कि शृंखला में पेश होने वाले गीतों पर आप अपनी तरफ से भी कुछ टिपण्णी जोड़ें और कृष्ण मोहन जी की मेहनत को और सार्थक करें. कल आपने और अमित जी क्लिप्पिंग गलत होने के बावजूद कवल सूत्र देखकर जिस तरह जवाब दिया वो कबीले तारीफ है. दरअसल एक ही फाईल सिस्टम में दो नामों से सेव हो गयी थी, इस कारण ये गलती हुई, हमें खेद है पर इस सही जवाब के लिए हम अंक नहीं दे पायेंगें, क्योंकि प्रश्न अधूरा होने के कारण इस पहेली को निरस्त माना जायेगा. आगे से मैं इस क्लिप को डबल चेक कर लिया करूँगा, धन्येवाद
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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7 श्रोताओं का कहना है :
Bhairavi
Sangeetkar: Khemchand Prakash
Raag Tilak Kamod
गीतकार:कमर जलालाबादी
बहुत शानदार ठुमरी सुनवाई...
kal mera net kaam nahi kar raha tha isliye jawab nahi de saki. amit bhaiya ka jawab bilkul sahi hai.
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