ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 750/2011/190
'ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर चल रही श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की समापन कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के आरम्भ में हमने आपसे स्पष्ट किया था कि शास्त्रीय संगीत से सम्बन्धित इस प्रकार की लघु श्रृंखलाओं का उद्देश्य पाठकों को कलाकार बनाना नहीं है, बल्कि संगीत का अच्छा श्रोता बनाना है। प्रायः लोग कहते मिल जाते हैं कि शास्त्रीय संगीत बहुत जटिल है और सिर के ऊपर से गुज़र जाता है। परन्तु यह जटिलता और क्लिष्टता तो प्रस्तुतकर्त्ता यानी कलाकार के लिए है, साधारण श्रोता के लिए नहीं। संगीत की थोड़ी प्रारम्भिक जानकारी पाकर भी आप अच्छे श्रोता बन सकते हैं। ऐसी श्रृंखलाएँ प्रस्तुत करने के पीछे हमारा यही उद्देश्य है।
श्रृंखला की कल की कड़ी तक हमने संगीत के नौ थाटों और उनके आश्रय रागों का परिचय प्राप्त किया। आज हम ‘भैरवी’ थाट और राग के बारे में चर्चा करेंगे। परन्तु इससे पहले आइए, थाट और राग के अन्तर को समझने का प्रयास किया जाए। दरअसल थाट केवल ढाँचा है और राग एक व्यक्तित्व है। थाट-निर्माण के लिए सप्तक के १२ स्वरों में से कोई सात स्वर क्रमानुसार प्रयोग किया जाता है, जब कि राग में पाँच से सात स्वर प्रयोग किए जाते हैं। साथ ही राग की रचना के लिए आरोह, अवरोह, प्रबल, अबल आदि स्वर-नियमों का पालन किया जाता है।
आज का थाट है- ‘भैरवी’, जिसमें सा, रे॒, ग॒, म, प, ध॒, नि॒ स्वरों का प्रयोग होता है, अर्थात ऋषभ, गांधार, धैवत और निषाद स्वर कोमल और शेष स्वर शुद्ध। ‘भैरवी’ थाट का आश्रय राग भैरवी नाम से ही पहचाना जाता है। इस थाट के अन्य कुछ प्रमुख राग हैं- मालकौस, धनाश्री, विलासखानी तोड़ी आदि। राग भैरवी के आरोह स्वर- सा, रे॒, ग॒, म, प, ध॒, नि॒, सां तथा अवरोह के स्वर- सां, नि॒, ध॒, प, मग, रे॒, सा होते हैं। इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यूँ तो इसके गायन-वादन का समय प्रातःकाल, सन्धिप्रकाश बेला में है, किन्तु अनेक वर्षों से राग ‘भैरवी’ का गायन-वादन किसी संगीत-सभा अथवा समारोह के अन्त में किये जाने की परम्परा बन गई है। राग ‘भैरवी’ को ‘सदा सुहागिन राग’ भी कहा जाता है।
ठुमरी, दादरा, सुगम संगीत और फिल्म संगीत में राग भैरवी का सर्वाधिक प्रयोग मिलता है। आज आपको सुनवाने के लिए राग भैरवी पर आधारित जो गीत हमने चुना है वह सुप्रसिद्ध फ़िल्मकार बी.आर. चोपड़ा की १९५६ में बनी फिल्म ‘एक ही रास्ता’ से है। इस फिल्म के संगीतकार हेमन्त कुमार थे, जिन्होने मजरूह सुल्तानपुरी की लोक-स्पर्श करते गीत को भैरवी के स्वरों में बाँधा था। गीत में कहरवा की लयकारी अत्यन्त आकर्षक है। इस गीत की एक विशेषता यह भी है की संगीतकार हेमन्त कुमार ने गीत को स्वयं अपना ही कोमल और मधुर स्वर दिया है। गीत के बोल हैं- ‘चली गोरी पी के मिलन को चली...’।
राग भैरवी पर आधारित यह मनमोहक गीत सुनने से पहले आइए, हमारी ओर से एक बधाई स्वीकार कीजिए। आपको सहर्ष अवगत कराना है कि ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ की यह ७५०वीं कड़ी है। आप सभी पाठकों/श्रोताओं के सहयोग से हमने एक हजार कड़ियों के लक्ष्य का तीन-चौथाई सफर तय कर लिया है। एक सुरीला सफ़र जो हमने शुरु किया था २० फ़रवरी २००९ की शाम और बहुत सारे सुमधुर पड़ावों से होते हुए आज, २२ सितम्बर, २०११ को हम आ पहुँचे हैं, अपने ७५०वीं मंज़िल पर। दोस्तों, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस यादगार मौक़े पर हम सबसे पहले आप सभी का आभार व्यक्त करते हैं। जिस तरह का प्यार आपने इस स्तम्भ को दिया है, जिस तरह आपने इस स्तम्भ का साथ दिया है और इसे सफल बनाया है, उसी का यह नतीजा है कि आज हम इस मुक़ाम तक पहुँच पाए हैं। एक बार पुनः आप सबको हार्दिक शुभकामनाएँ। और लीजिए अब आप सुनिए, श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की इस समापन कड़ी में थाट ‘भैरवी’ के आश्रय राग ‘भैरवी’ पर आधारित यह गीत-
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
इन ३ सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. सुर कोकिला लता का है स्वर जिसमें वो श्रद्धाजन्ली दे रहीं हैं पंकज मालिक को.
२. मूल गीत खुद पंकज मालिक का गाया हुआ है.
३. मुखड़े में शब्द है -"भुलाना"
अब बताएं -
फिल्म का नाम - ३ अंक
फिल्म के नायक का नाम - २ अंक
गीतकार का नाम - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम-
क्षिति जी बहुत दिनों बाद स्वागत आपका
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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5 श्रोताओं का कहना है :
अरे कमेन्ट कहाँ गया? लिखा तो था. 'छोटी बहिन'
सोरी...सोरी.....सोरी उस गाने में 'भूलना' शब्द नही है. फिर बाबाजी की शरण में गई.
'ये रातें ये मौसम ये हंसना हँसाना,इन्हें न भुलाना'
जब ऐसे कोई तराना छेड़े तो नायक नायिका कौन है जानने की इच्छा तो होगी ही न.दिलीप कुमार साहब है नायक.अमित भैया को विजयी होना है भई.
कहाँ हैं क्षितिईईई ! अमित जीईईई !जल्दी आइये.
इंदू जी मैं कहीं गया ही नहीं था मैं तो इंतज़ार कर रहा था उत्तरों का. आप मनो या न मानो मुझे इस बार सारे उत्तर पता हैं. गलती का कोई चान्स ही नहीं हैं, पर इस बार मैं जवाब नहीं दे रहा हूँ.
क्यों....? थोड़ा सा धैर्य रखिये. जवाब अपने आप मिल जायेगा. :)हाँ कमेन्ट जरूर पढता रहूँगा और लिखूंगा भी.
अवध जी, शरद जी आप लोग कहाँ हैं? भई आप लोगों के बिना यहाँ सब अधूरा अधूरा लगता है.
ओल्ड इज गोल्ड सीरीज के 750 अंक पूर्ण होने पर पूरी टीम को ढेर सारी बधाइयां.....
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