Thursday, September 29, 2011

आप यूँ फासलों से गुजरते रहे...रहस्य की वादियों में हुस्न की पुकार और लता



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 755/2011/195

ता जी के बारे में जितना लिखा जाये कम ही है. तो आज फिर से "मेरी आवाज ही पहचान है...." श्रृंखला में उनके बारे में कुछ और रोचक बातों को यहाँ पर प्रस्तुत करा जाए.

एक बार एक रेडियो इंटरव्यू के दौरान हरीश जी ने लता जी से एक सवाल पूछा थे, "क्या आपको कभी ऐसा महसूस हुआ है, कि आपको अपनी योग्यता से ज्यादा मिला है, धन, ऐश्वर्य, ख्याति? इस विषय में कोई अपराध बोध?" लता जी बड़ी सरलता से बोलीं, "मैं इश्वर की आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे जो कुछ दिया है बहुत ज्यादा दिया है. मेरे से अच्छे गाने वाले और समझने वाले बहुत सारे लोग हैं पर जो कुछ शोहरत मुझे मिली है वह बहुत कम लोगों को मिलती है. मेरे से अच्छा गाने वाले, जैसे बड़े गुलाम अली खान साहब, या फिर अमीर खान साहब. सहगल साहब जैसा तो मैं कभी नहीं गा सकती."

मधुबाला से लेकर माधुरी दीक्षित और काजोल तक हिंदी सिनेमा के स्क्रीन पर शायद ही ऐसी कोई बड़ी तारिका रही हो जिसे लता मंगेशकर ने अपनी आवाज़ उधार न दी हो.

बीस से अधिक भारतीय भाषाओं में लता ने 30 हज़ार से अधिक गाने गए, 1991 में ही गिनीस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने माना था कि वे दुनिया भर में सबसे अधिक रिकॉर्ड की गई गायिका हैं.

भजन, ग़ज़ल, क़व्वाली शास्त्रीय संगीत हो या फिर आम फ़िल्मी गाने लता ने सबको एक जैसी महारत के साथ गाया.

अब अगर लता जी अपने बारे में इस तरह बोलती हैं तो क्या यह उनकी महानता नहीं है?

लताजी को घर में केवल के.एल. सहगल के गीत गाने की इजाजत थी. क्योंकि लताजी के पिता को शास्त्रीय संगीत से बेहद प्यार था. एक बार उन्होंने रेडियो खरीदा और जैसे ही उसे शुरू किया उस पर खबर आई कि सहगल साहब नहीं रहे. इतना सुनते ही वो वापस गयीं और रेडियो वापस कर आईं.

हेमंत कुमार के साथ गीत गाते समय लताजी को खासी परेशानी होती थी। क्योंकि उस जमाने में गायकों को एक ही माइक्रोफोन से काम चलाना पड़ता था। हेमंत कुमार काफी लंबे थे. इसलिए लताजी को एक स्टूल रख उस पर खड़े होकर गाना गाना पड़ता था.

लताजी को तीखा-मसालेदार खाना बेहद पसंद है। कहा जाता है कि एक बार में वे 10-12 हरी मिर्च खा जाती थीं. उस पर उनका अपना तर्क कि तीखा खाने से जला और आवाज खुलती है.

आज के गाने की फरमाइश करी है सुजॉय चटर्जी ने. उनका पसंदीदा गाना है ‘आप यूँ फसलों से गुजरते रहे’. फिल्म का नाम है ‘शंकर हुसैन’. इसे निर्देशित करा था युसूफ नकवी ने. यह फिल्म १९७७ में आयी थी और इस फिल्म में संगीत दिया था खय्याम ने, और इस गाने के बोल लिखे थे जाँ निसार अख्तर ने।

आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज़ आती रही

आहटों से अंधेरे चमकते रहे
रात आती रही रात जाती रही
हो, गुनगुनाती रही मेरी तन्हाईयाँ
दूर बजती रही कितनी शहनाईयाँ
जिन्दगी, जिन्दगी को बुलाती रही
आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज़ आती रही
आप यूँ…

कतरा कतरा पिघलता रहा आसमाँ -२
रूह की वादियों में ना जाने कहाँ
इक नदी, इक नदी दिलरूबा गीत गाती रही
आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज़ आती रही
आप यूँ…

आप की गरम बाहों में खो जायेंगे
आप की नरम जानो पे सो जायेंगे, सो जायेंगे
मुद्दतों रात नींदें चुराती रही
आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
दिल से कदमों की आवाज़ आती रही
आप यूँ…


लीजिए पेश है ये गाना:


इन ३ सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. लता जी की मधुर मधुर आवाज़ है इस गीत में.
२. एक बहुत ही मीठी बोली भोजपुरी में गाया गया गीत है ये.
३. चित्रगुप्त के संगीत से सजे इस गीत के मुखड़े में "दूध भात" का जिक्र है.

अब बताएं -
गीतकार कौन हैं - ३ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
इस लोरी में माँ किस से क्या गुजारिश कर रही है - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम-
क्या कहें लता जी के बारे में, कृष्णमोहन जी बात से सभी संगीतप्रेमी शत प्रतिशत सहमत होंगें यक़ीनन

खोज व आलेख- अमित तिवारी
विशेष आभार - वाणी प्रकाशन


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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5 श्रोताओं का कहना है :

इन्दु पुरी का कहना है कि -

चंदा मामा आरे आवा पारे आवा नदिया किनारे आवा ।
सोना के कटोरिया में दूध भात लै लै आवा
बबुआ के मुंहवा में घुटूं ।।
आवाहूं उतरी आवा हमारी मुंडेर, कब से पुकारिले भईल बड़ी देर ।
भईल बड़ी देर हां बाबू को लागल भूख ।
ऐ चंदा मामा ।।
इतनी प्यारी लोरी.बचपन में सुनी थी.कानों में मिस्री सी घुल जाती है आज भी.बज़ पर राजीव नंदन द्विवेदी ने इसका ऑडियो मुझे भेजा था
मजरूह सुल्तानपुरी जी जैसे एक माँ बन गए.बिना माँ बने कोई इतनी प्यारी लोरी कैसे लिख सकता है.
इसलिए ...देखती हूँ हर आदमी में एक औरत भी छुपी होती है जो कभी कभी 'माँ' भी बन जाती है.

इन्दु पुरी का कहना है कि -

इस एक लोरी पर तो मैं पूरी पोस्ट लिख डालूं सच्ची.
नन्नू के लिए मैंने एक सीडी तैयार की थी.
मेरे स्कूल के बच्चे इसे पूरी गा लेते हैं हा हा हा

मुकेश गिरि गोस्वामी का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
मुकेश गिरि गोस्वामी का कहना है कि -

नमस्कार
आपके इस वेब साईट में घूम के बड़ा मज़ा आया.....आगे भी मैं यहाँ नियमित समय देना चाहूँगा !
इसी तरह जानकारियां देते और दिलाते रहिये... मैं भी अपनी एक कविता पोस्ट करना चाहूँगा जो कि नीचे लिखा हुआ है
चाँद आज क्यूँ मायूस है,
सितारे क्यूँ खामोश है !
चल रही पवन धीमे-धीमे क्यूँ,
कैसा ये अहसास है !
दूर ठहरा है कोई मुसाफिर,
परदेशी अनजाना है !
क्या जादू है उसमे,
दिल ने क्यूँ उसको अपना माना है !
भवदीय
मुकेश गिरी गोस्वामी

www.mukesh4you.blogspot.com

Pratibha Kaushal-Sampat का कहना है कि -

फिल्म का नाम बताएं - Bhauji

Namaskar!
Pratibha
Ottawa, Canada

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