ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 763/2011/203
पूर्वी और पुर्वोत्तर राज्यों के लोक धुनों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीतों की लघु शृंखला 'पुरवाई' की तीसरी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। जैसा कि पहली कड़ी में हमने कहा था कि हमारे देश के हर राज्य के अन्दर भी कई अलग अलग प्रकार के लोक गीत पाये जाते हैं; इसमे असम राज्य कोई व्यतिक्रम नहीं है। कल की कड़ी में हमने बिहु का आनद लिया था, आज प्रस्तुत है असम की भक्ति गीतों की शैली में कम्पोज़ किया एक गीत। असम के नामघरों में जिस तरह का धार्मिक संगीत गाया जाता है, यह गीत उसी शैली का है। संगीतकार भूपेन हज़ारिका नें पहली बार इसका प्रयोग अपनी असमीया फ़िल्म 'मणिराम दीवान' के "हे माई जोख़ुआ" गीत में किया था, बाद में ७० के दशक में जब उन्हे हिन्दी फ़िल्म 'आरोप' में संगीत देने का सुयोग मिला, और एक भक्ति रचना उन्हें फ़िल्म के लिए कम्पोज़ करना था, तो इसी धुन का उन्होंने दुबारा इस्तमाल किया और गायिका लक्ष्मी शंकर से यह गीत गवाया जिसके बोल थे "जब से तूने बंसी बजाई रे, बैरन निन्दिया चुराई, मेरे ओ कन्हाई, नटखट कान्हा ओ हरजाई रे काहे पकड़ी कलाई, मेरे ओ कन्हाई"। १९७४ की इस फ़िल्म में गीत लिखीं माया गोविन्द नें।
आइए आज इस कड़ी में आपको असम के नामघरों के बारे में बताते हैं। नाम का अर्थ है प्रार्थना। नामघर उस जगह को कहते हैं जहाँ लोग जमा हो कर आध्यात्मिक कार्य करते हैं जैसे कि प्रार्थना (अलग अलग प्रकार के 'नाम') और भावना (आधात्मिक नाट्य जिसमें पारम्परिक वेशभूषा और नृत्यों का प्रयोग होता है)। नामघर की परम्परा मूलत: असम के वैष्णवी हिन्दू धर्म के लोगों में पायी जाती है। वैष्णवी लोग भगवान कृष्ण के भक्त होते हैं जो नामघरों में नियमीत रूप से जाकर प्रार्थना करते हैं। वहाँ वे पवित्र ग्रंथों का पाठ करते हैं जिनमें कीर्तन, भागवत, नाम-घोसा आदि शामिल हैं, और पाठ के समय लोग "रीदमिक क्लैपिंग्" करते हैं और कई बार पारम्परिक वाद्यों का इस्तमाल किया जाता है। हालाँकि यह धार्मिक कार्यों तक ही सीमित होते हैं, नामघरों का उपयोग कम्युनिटी हॉल के रूप में किया जाता है शैक्षिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और उन्नयनमूलक कार्यों के लिए। नामघर को असम के 'neo-vaishnavite movement' का योगदान समझा जाता है। असम के प्रसिद्ध वैष्णव सन्त श्रीमन्त शंकरदेव (१४४९ - १५६९) नें नामघर की परिकल्पना की थी। किसी भी नामघर के एक अन्त में एक सिंहासन होता है, और दूसरे अन्त में होता है नामघर का मुख्य द्वार। इस सिंहासन में पवित्र ग्रंथ रखा होता है पूजा के लिए, और इस सिंहासन को सहारा स्वरूप चार हाथी, २४ सिंह और ७ बाघों की मूर्तियों का प्रयोग होता है। नामघर के अन्दर पौराणिक चरित्रों जैसे कि गरूड़, हनुमान, नागर, अनन्त आदि की मूर्तियाँ भी होती हैं। तो दोस्तों, चलिए असम की इस धार्मिक संगीत की शैली में सुनते हैं फ़िल्म 'आरोप' का गीत लक्ष्मी शंकर की आवाज़ में। बड़ा ही दिल को छू लेने वाला संगीत है इस गीत का।
चलिए आज से खेलते हैं एक "गेस गेम" यानी सिर्फ एक हिंट मिलेगा, आपने अंदाजा लगाना है उसी एक हिंट से अगले गीत का. जाहिर है एक हिंट वाले कई गीत हो सकते हैं, तो यहाँ आपका ज्ञान और भाग्य दोनों की आजमाईश है, और हाँ एक आई डी से आप जितने चाहें "गेस" मार सकते हैं - आज का हिंट है -
गुलज़ार का लिखा ये गीत "जाने" शब्द से शुरू होता है
पिछले अंक में
मज़ा आया इंदु जी
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
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4 श्रोताओं का कहना है :
आज फिर से भूपेन हजारिका जी का संगीत. :)
और भला मैं गाना सुन के क्यों डरूं.मैं तो गाने का मज़ा ले रहा हूँ
o jaane wale ho ske to laut ke aana hota to mja aata pr..........
अरे कहीं मेरे जवाब से ये तो नहीं समझा कि मैं आज के गाने मैं बात कर रहा हूँ? मैं तो पहेली के बारे मैं बोल रहा हूँ जिसका गाना आप कल सुनायेंगे और हाँ संगीत तो भूपेन हजारिका जी का ही है
अमित जी,
गीत का मज़ा लेते समय डरने की कोई बात तो नहीं है, लेकिन बनवास के प्रसंग पर एक पल के लिए उदास तो अवश्य हुए होंगे?
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