ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 46
गायक मुकेश ने सबसे ज़्यादा संगीतकार कल्याणजी आनंदजी और शंकर जयकिशन के लिए लोकप्रिय गीत गाए हैं, और कई गीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए भी. संगीतकार नौशाद के मनपसंद गायक थे मोहम्मद रफ़ी जिनसे उन्होने अपने सबसे ज़्यादा गाने गवाए. लेकिन कुछ गीत ऐसे भी हैं नौशाद साहब के जिन्हे मुकेश ने गाए हैं. एक ऐसी ही फिल्म है "साथी" जिसमें मुकेश ने कई गीत गाए. इन्ही में से एक गीत आज हम आप को सुनवा रहे हैं 'ओल्ड इस गोल्ड' में. फिल्म "साथी" आई थी सन 1968 में. दक्षिण के निर्माता वीनस कृष्णमूर्ती की यह फिल्म थी जिसके लिए उन्होने नौशाद और मजरूह सुल्तानपुरी को गीत संगीत का भार सौंपा गया. इस फिल्म में सबसे लोकप्रिय गीत लताजी ने गाए - "मेरे जीवन साथी कली थी मैं तो प्यासी", "यह कौन आया रोशन हो गयी महफ़िल" और "मैं तो प्यार से तेरे पिया माँग सजाउंगी". मुकेश और सुमन कल्याणपुर का गाया "मेरा प्यार भी तू है यह बहार भी तू है" भी सदाबहार नग्मों में शामिल होता है. लेकिन इस फिल्म में मुकेश की आवाज़ में 3 गाने ऐसे भी हैं जिन्हे दूसरे गीतों के मुक़ाबले थोडा सा कम सुना गया है. और इसीलिए आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में हम आप को सुनवा रहे हैं इनमें से एक गीत.
मुकेश की आवाज़ में "जो चला गया उसे भूल जा" गीत में एक रूहानी, एक 'हॉनटिंग' सा अहसास है. गीत का संगीत संयोजन कुछ इस तरह का है कि जिसे सुन कर ऐसा लगता है कि यह फिल्म जैसे किसी 'सस्पेन्स' या 'हॉरर सब्जेक्ट' पर बनाई गयी है. लेकिन हक़ीक़त में ऐसा नहीं है. मजरूह सुल्तानपुरी के बोलों में भी उसी डरावने अंदाज़ की झलक मिलती है, जैसे कि "यह हयात-ए-मौत की है डगर, कोई खाक में कोई खाक पर". गीत के 'इंटरल्यूड' संगीत में भी कुछ इसी तरह की बात है. कुल मिलाकर यह गीत टूटे दिल की पुकार है जिसका असर कुछ ऐसा है कि सुनने के बाद एक लंबे समय तक इसका असर बरक़रार रहता है. हमें पूरी उम्मीद है की इस गीत को सुनने के बाद कई दिनों तक इसका असर आप के दिल-ओ-दिमाग़ पर छाया रहेगा. तो सुनिए यह रूहानी गीत फिल्म साथी से...
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. शांति माथुर के गाये गिने चुने गानों में से एक.
२. ताजा ख़बरों की आड़ में देश के हालातों पर तीखा व्यंग है गीत के बोलों में.
३. महबूब खान की फिल्म और गीत संगीत जोड़ी- शकील और नौशाद.
कुछ याद आया...?
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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5 श्रोताओं का कहना है :
इसका जवाब हमें पता है, दो में एक गाना होगा।
फ़िल्म: Son of India
नौशाद साहब के संगीत का क्या कहना,
गीत १: इन्सान था पहले बन्दर
गीत २: आज की ताजा खबर
aaj fir awaz gayab
sham ko hi jawaab jaan paayenge,,,,
film ke kai geet yad aa rahe hain,,,
isko chhodkar,,,,,,,,,
गीत अच्छी है ... पर नहीं सुन पा रही।
Sujoyji,
Neerajbhai theek kehte hain par mere khyal mein shayd aapki muraad 'Aaj ki taza khabar se hai."
avadh Lal
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