Saturday, May 30, 2009

चरणदास को जो पीने की आदत न होती...सामाजिक जिम्मेदारियों को भी निभाते थे "गोल्डन इरा" के गीतकार



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 96

सी. रामचन्द्र और किशोर कुमार के संगम से बने दो "गोल्ड" गीत अब तक हमने इस शृंखला में शामिल किया हैं, एक फ़िल्म 'आशा' से और दूसरी फ़िल्म 'पायल की झंकार' से। इन दोनो गीतों का रंग एक दूसरे से बिलकुल अलग था। आज भी हम इन दो महान फ़नकारों की एक रचना पेश कर रहे हैं लेकिन यह गीत ना तो फ़िल्म 'आशा' के "ईना मीना डीका" से मिलता जुलता है और ना ही 'पायल की झंकार' के "मुखड़े पे गेसू आ ही गये आधे इधर आधे उधर" का इस पर कोई प्रभाव है। आज का यह गीत है १९५४ की फ़िल्म 'पहली झलक' का - "चरणदास को पीने की जो आदत ना होती, तो आज मिया बाहर बीवी अंदर ना सोती"। 'पहली झलक' के निर्देशक थे एम. वी. रमण और इसमें मुख्य भूमिकायें निभायी किशोर कुमार और वैजयंतीमाला ने। यह बताना ज़रूरी है कि रमण साहब ने १९५७ में जब 'ईना मीना डीका" वाली 'आशा' बनायी, तो उसमें भी किशोर कुमार और वैजयंतीमाला को ही कास्ट किया था। 'पहली झलक' में किशोर कुमार जैसे गायक अभिनेता के होने के बावजूद फ़िल्म में बस एक ही गीत उनकी आवाज़ में था, बाक़ी के ज़्यादातर गीत लताजी की आवाज़ मे थे और एक गीत हेमन्त कुमार ने गाया था।

किशोर कुमार की आवाज़ में फ़िल्म 'पहली झलक' का यह गीत लिखा था राजेन्द्र कृष्ण ने। हास्य रस पर आधारित इस गीत में राजेन्द्र कृष्ण ने कई ज़रूरी बातें हँसी हँसी और मज़ाक मज़ाक में कह गये, लेकिन अगर ग़ौर से इस गीत को सुना जाए तो आपको पता चल जाएगा कि किस ज़रूरी बात की तरफ़ इशारा किया गया है। जी हाँ, यह गीत एक व्यंगात्मक वार है शराबख़ोरी पर, इसके दुष्परिणामों पर व्यंग के ज़रिए तीर पे तीर चलाए गये हैं जैसे कि गीत में कहा गया है "उस पर मज़ा कि ख़ाली हो पाकिट", "मिट्टी के भाव जाके बेच आये मोती", "ज़ेवर से कपड़ा, कपड़े से बरतन, बोतल के पानी में डूब गया धन", "दिया ना साल भर किराया मकान का, चढ़ गया सर पर कर्ज़ा पठान का", "बेटा अमीर का ठनठन गोपाल हुआ", इत्यादि। दूसरे शब्दों में यह गीत एक आंदोलन है शराबख़ोरी के ख़िलाफ़। भले ही हास्य-व्यंग का सहारा लेकर किशोर कुमार की गुदगुदानेवाली अंदाज़ में इस गीत को पेश किया गया है, लेकिन सही अर्थ में यह गीत एक संदेश है आज की युवा पीढ़ी को कि किस तरह से शराब पूरे घर को नीलाम करके रख देती है। दोस्तों, ज़िंदगी बहुत ख़ूबसूरत है, नशीली है, इसका आनंद उठाइए ज़िंदगी के नशे में डूबकर, शराब के नशे में डूबकर नहीं। फिलहाल ये संजीदे बाते रहने देते हैं एक तरफ़ और मुस्कुराते हुए सुनते हैं किशोरदा का गाया यह गीत।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. इस गीत की फिल्म का नाम "गीत" शब्द से ही शुरू होता है.
२. आशा भोंसले की आवाज़ के एक शानदार गीत.
३. मुखड़े की पहली पंक्ति में शब्द है -"ख्यालों".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी अब हम की कहें...आपके प्रतिभागी भी आपका लोहा मानने लगे हैं...बधाई

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.



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4 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

फ़िल्म क नाम है ’ गीत गाया पत्थरों ने ’
गीत के बोल हैं ’तेरे ख्यालों में हम, तेरी ही बाहों मेम हम

manu का कहना है कि -

सरल सवाल,
और मुश्किल भी होता तो शरद जी कहाँ गलत होने वाले थे....
कमाल की याददाश्त है...इन्हें कहते हैं सही शौकीन...

स्वप्न मञ्जूषा का कहना है कि -

तेरे ख्यालों में हम, तेरी ही बाँहों में हम,
अपने हैं दोनों जहाँ, खो जाएँ बेखुद यहाँ
ओ ओ ओ

फिल्म : गीत गाया पथरों ने
वर्ष : १९६४
निर्देशक : वी. शांताराम
संगीत निर्देशक : रामलाल
गायिका : आशा भोंसले

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

अच्छी प्रस्तुति | जवाब तो शरद जी ने दे ही दिया है |

अवनीश तिवारी

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