ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 87
ओ. पी नय्यर के निर्देशन में जिन तीन पार्श्व गायिकाओं ने सबसे ज़्यादा गाने गाये, वो थे आशा भोंसले, गीता दत्त और शमशाद बेग़म। शमशाद बेग़म के लिए नय्यर साहब के दिल में बहुत ज़्यादा इज़्ज़त थी। शमशादजी की आवाज़ की नय्यर साहब मंदिर की घंटी की आवाज़ से तुलना किया करते थे। उनके शब्दों में शमशादजी की आवाज़ 'टेम्पल बेल' की आवाज़ थी। भले ही आशा भोंसले के आने के बाद गीता दत्त और शमशाद बेग़म से नय्यर साहब गाने लेने कम कर दिये, लेकिन यह भी हक़ीक़त है कि नय्यर साहब ने ही इन दोनो गायिकायों को सबसे ज़्यादा 'हिट' गीत दिए। १९५२ से लेकर करीब करीब १९५८ तक नय्यर साहब ने इन दोनो गायिकायों से बहुत से गाने गवाये और लगभग सभी के सभी लोकप्रिय भी हुए। जहाँ तक शमशादजी के गाये हुए गीतों का सवाल है, उनकी पंजाबी लोकगीत शैली वाली अंदाज़ को नय्यर साहब ने अपने गीतों के ज़रिए ख़ूब बाहर निकाला और हर बार सफल भी हुए। नय्यर साहब के अनुसार संगीतकार ही गायक गायिका को तैयार करता है, यह संगीतकार के ही उपर है कि वह गायक गायिका से कितना काम ले सकता है और कितनी अच्छी तरह से ले सकता है। इसमें कोई शक़ नहीं कि नय्यर साहब ने हर गायक और गायिका की प्रतिभा को और भी निखारा और सँवारा और पूरे 'पर्फ़ेकशन' के साथ जनता के सामने प्रस्तुत किया। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में नय्यर साहब और शमशादजी की जोड़ी का एक मचलता हुआ नग़मा पेश कर रहे हैं फ़िल्म 'सी.आइ.डी' से।
फ़िल्म 'सी.आइ.डी' बनी थी १९५६ में। १९५४ में 'आर पार' और १९५५ में 'मिस्टर ऐंड मिसेस ५५' बनाने के बाद गुरु दत्त ने 'सी.आइ.डी' की परिकल्पना की। देव आनंद जो ग़लत राह पर चल पड़ने वाले नायक की भूमिका निभाया करते थे, इस फ़िल्म में पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में नज़र आये। इसी फ़िल्म से वहीदा रहमान का हिंदी फ़िल्म जगत में पदार्पण हुआ। इससे पहले वो दो तेलुगू फ़िल्मों में काम कर चुकी थीं। इनमें से एक फ़िल्म ने 'सिल्वर जुबिली' मनाई और इसी मौके पर गुरु दत्त की नज़र उन पर पड़ गई, और उन्हे 'सी.आइ.डी' की नायिका के रोल का औफ़र दे बैठे। राज खोंसला निर्देशित यह 'मर्डर मिस्ट्री' अपनी रोमांचक कहानी, जानदार अभिनय और सदाबहार गीत संगीत की वजह से अमर होकर रह गयी है। ओ. पी. नय्यर और मजरूह सुल्तानपुरी के गीत संगीत तथा रफ़ी, गीता, शमशाद और आशा की आवाज़ों ने चारों तरफ़ धूम मचा दी थी। शमशाद बेग़म की आवाज़ में प्रस्तुत गीत भारतीय लोक संगीत और पाश्चात्य और्केस्ट्रेशन का संतुलित मिश्रण है जिसे सुनते ही दिल एक दम से ख़ुश हो जाता है। जब मैं छोटा था और इस गीत को सुनता था तो मुझे ऐसा लगता था कि 'नाम' को 'नाव' क्यों कहा गया है इस गीत में, क्या 'गाँव' से तुकबंदी करने के लिए ऐसा किया गया है, लेकिन बाद में मुझे पता चला कि मराठी में नाम को 'नाव' कहते हैं, और इस तरह से अर्थ भी बरक़रार रहा और तुकबंदी भी हो गयी। तो लीजिए सुनिए आज का यह गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. केदार शर्मा निर्देशित इस फिल्म में थे मीना कुमारी, अशोक कुमार और प्रदीप कुमार.
२. रोशन का संगीत और लता के स्वर.
३. मुखड़े में शब्द है -"मन".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम-
रचना जी ने एक बार फिर मैदान मारा है. मनु जी और पराग ने सहमती दी है, तो जाहिर है जवाब सही ही है.... जाते-जाते शरद तैलंग भी अपनी मुहर लगा गये, वो भी सहीवाला।
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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6 श्रोताओं का कहना है :
मन रे तू कहे न धीर धरे
चित्रलेखा
मेरी बहुत बहुत पसंद की मूवी
सादर
रचना
गीत है " सखी री मोरा मन उलझे तन डोले
फ़िल्म है चित्रलेखा ।
kaun saa geet sunwaayeynge shujoy saab.....?????
dono sahi......
Manuji, zara doosre 'hint' par Gaur farmaayen :-)
शमशाद बेगम जी की खनकती आवाज़ में यह रसीला गीत सुनाने के लिए बहुत आभारी हूँ. इस फिल्म की खासियत यह है की इसके गानों में शमशाद जी को गीता जी से भी ज्यादा गाने हैं. आज की प्रस्तुति, कहीं के निगाहें और लेके पहला पहला प्यार. यानी की दो एकल गीत और एक युगल गीत. गीता जी ने गाये दो युगल गीत (ए दिल हैं मुश्किल और आँखों ही आँखों में इशारा हो गया) और एक गीत जो सेंसर की वजह से फिल्म से हटाया गया. वह गीत के बोल हैं "कुछ तेरे दिल में फी फी कुछ मेरे दिल में फी फी जमाना है बुरा".
शरद जी का जवाब एकदम सही है. रचना जी मैं भी रफी साहब के गाने के बारे में सोच रहा था और मुझे भी लता जी का यह खूबसूरत गीत याद नहीं आ रहा था.
पराग
sakhi re mera mann uljhe tan dole...
Saurabh Kumar
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