ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 102
'ओल्ड इज़ गोल्ड' मे चल रहा है 'राज कपूर विशेष'। कल के अंक मे राज कपूर के शुरूआती दिनों का ज़िक्र करते हुए हम आ पहुँचे थे सन् १९४९ की फ़िल्म 'बरसात' तक। 'बरसात' के गीतों से शंकर जयकिशन, शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी के गीतों की ऐसी बरसात शुरु हुई जो अगले तीन दशकों तक लगातार चलती रही और उस बरसात का हर एक बूँद जैसे एक अनमोल मोती बनकर बरसी। उधर चारली चैपलिन की छाप राज कपूर के 'मैनरिज़्म' पर पड़ी और वो कहलाये 'इंडियन चैपलिन'। उनके इस अंदाज़ की पहली फ़िल्म थी सन् १९५१ की 'आवारा'। उनकी यही 'इमेज' आज भी हमारी आँखों में बसी हुईं हैं। और उनके इसी चैपलिन वाले अंदाज़ को इस फ़िल्म के शीर्षक गीत मे भी उभारा गया और यही गीत आज सुनिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' मे गायक मुकेश की आवाज़ मे। 'आवारा' पहली फ़िल्म थी जिसमें राज कपूर और उनके पिता पृथ्वीराज कपूर साथ साथ परदे पर नज़र आये थे। और दोस्तों यही वह फ़िल्म थी जिसने राज कपूर और नरगिस की जोड़ी को घर घर में लोकप्रिय बना दिया था और फ़िल्म इतिहास की पहली लोकप्रिय 'ऑन-स्क्रीन' जोड़ी के रूप में सामने आयी। 'बरसात' के बाद 'आवारा' में शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी, शंकर जयकिशन, मुकेश और लता मंगेशकर एक बार फिर इकट्ठे हुए और एक बार फिर से वही संगीतमय कामियाबी की कहानी दोहरायी गयी।
राज कपूर और मुकेश के साथ के बारे मे शायद मुझे कुछ कहने की ज़रूरत नही है। बस इतना ही कहूँगा कि अगर राज कपूर काया थे तो मुकेश उनकी छाया। अमीन सायानी द्वारा प्रस्तुत 'संगीत के सितारों की महफ़िल' शृंखला मे मुकेश पर केन्द्रित कार्यक्रम मे अमीन भाई ने उनके किसी पुराने साक्षात्कार की झलकियाँ पेश की थी जिसमे मुकेश ने राज कपूर के बारे मे कुछ बातें कहे थे, वही मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ - "जिस मोती के बारे मे मै आज ज़िक्र कर रहा हूँ अमीन भाई, उस मोती का नाम है राज कपूर। और मैं राज के ज़िंदगी से ही तीन हिस्से पेश करूँगा। बिल्कुल साफ़ है अमीन भाई, पहले हिस्से को कहूँगा 'आग', दूसरे को 'बरसात से संगम', और तीसरे को 'जोकर से बॉबी'। मैं उस ज़माने की बात कर रहा हूँ जब रणजीत स्टूडियो के अंदर हम लोग 'ट्रेनिंग' किया करते थे। राज कपूर को लेकर चंदुलालजी के पास आये पापाजी। पापाजी यानी कि पृथ्वीराज साहब। और कहने लगे कि 'देखिये, यह मेरे साहबज़ादे हैं, यह फ़िल्म मे जाना चाहता है, और मै चाहूँगा कि यह 'फ़िल्म-मेकिंग' के हर एक 'ब्रांच' को सीखे और कुली के काम से शुरु करे'। अमीन भाई, ऐसा है कि पापाजी ने राज मे कुछ गुण तो देख ही लिये थे पृथ्वी थियटर्स मे काम करते वक़्त, तो वो चाहते थे कि जब यह फ़िल्म मे जा ही रहा है तो पूरी पूरी तरह से सारा काम सीखे। तो वो बन गये वहाँ किदार शर्मा साहब के सहायक। वह क्या था कि शर्मा जी ने सहायक के अंदर 'हीरो' भी देख लिया, और शर्माजी ने उन्हे 'नीलकमल' मे 'हीरो' बना दिया।" दोस्तों, मुकेश की बातें अभी ख़त्म नही हुईं हैं, आगे का हिस्सा जारी रहेगा कल के अंक मे। लीजिए अब आज का गीत सुनिए, मुकेश की आवाज़, शैलेन्द्र के बोल, और एक बार फिर राग भैरवी का इस्तेमाल शंकर जयकिशन के संगीत में।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. राज कपूर की इस फिल्म में शंकर जयकिशन का संगीत नहीं था.
२. इस फिल्म के लेखक थे ख्वाजा अहमद अब्बास.
३. मुखड़े में शब्द है -"झूठ".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी बहुत अच्छे. ४ अंकों के साथ आपने बढ़त बना ली है. नीलम जी, रचना जी, मनु जी और फ़राज़ जी जवाब तो सही है पर शरद जी सी फुर्ती भी दिखाईये ज़रा.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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13 श्रोताओं का कहना है :
गाना है झूठ बोले कौवा काटे फिल्म बोबी का और संगीतकार हैं लक्ष्मीकांत प्यारेलाल
पराग जी मैने भी यही सोचा था .पर देखा तो आप आचुके थे .बधाई
सादर
रचना
राज कपूर जी के साथ तो मुकेश जी के गाने ज्यादा होते है पर झूट शब्द याद नही आ रहा किस गाने मे है
पराग जी ने जवाब दे दिया, सही जवाब के लिए बधाई
पराग जी को सही जवाब के लिए बधाई.
बरोबर,,,,,,,
इसमें लक्ष्मी-प्यारे का संगीत था,,,
बहुत ही सुंदर जानकारी दी आप ने मेरे पसंद के गीतो के बारे, बाकी पहेली का तो हमे ग्याण नही .राम राम जी की
मेरा दिमाग तो तीसरी कसम के सजन रे झूठ मत बोलो पर गया था लेकिन हुज़ूर वाह पराग कहिये
पहेली बहुत आसान थी किन्तु मैं किसी अन्य कार्यक्रम मे व्यस्त होने के कारण सबसे पहले उत्तर न दे सका । यह बुन्देलखण्ड का एक लोक गीत है जिसे विट्ठल भाई पटेल ने बॊबी फ़िल्म में प्रयोग किया \ पराग जी ने मेरे २ अंक हथिया लिए है ।
शरद जी बड़े लोग कह गए हैं की "मौके पे चौका मारना ही चाहिए"
:)
आप को भी ४ अंक पाने के लिए बहुत बधाईया !
आभारी
पराग
बेहतरीन श्रृंखला...। शुक्रिया।
Sadabhar purane gano ki peshkash lajavab hai.
ManjuGupta.
i came thru this post just now & reading such old incident about raj kapoor made me recall more detailed version of how he got his role in neelkamal. first i thought that i would write whatever i remember but decided against it and searched thru net...so here goes the link for details...hope every1 likes it...
http://www.weeklyholiday.net/2008/090508/front.html
please find second last article regarding this incident
PS: i thought of writing in hinglis h but i m not very good at it so some people might not have understood that and i dont have hindi fonts on my pc so had to type in english....hope no1 minds that
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