ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 151
"मस्ती में छेड़ के तराना कोई दिल का, आज लुटायेगा ख़ज़ाना कोई दिल का"। जी हाँ दोस्तों, तैयार हो जाइए उस ख़ज़ाने से निकलने वाले तरानों के साथ बहने के लिए जिस ख़ज़ाने को हम और आप मोहम्मद रफ़ी के नाम से जानते हैं। आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु हो रहा है रफ़ी साहब को समर्पित दस विशेषांकों की एक ख़ासम-ख़ास पेशकश - "दस चेहरे एक आवाज़ - मोहम्मद रफ़ी"। जैसा कि शीर्षक से ही प्रतीत हो रहा है कि ये दस गानें दस अलग अलग नायकों पर फ़िल्माये हुए होंगे। रफ़ी साहब के अलग अलग अंदाज़-ए-बयाँ को इस शृंखला में क़ैद करने के लिए हमने नायकों के तराजू को इसलिए चुना क्योंकि रफ़ी साहब अपनी आवाज़ से अभिनय ही तो करते थे। हर नायक के स्टाइल और मैनरिज़्म को अच्छी तरह से जज्ब कर उनका पार्श्व गायन किया करते थे, और यही वजह है कि चाहे परदे पर दिलीप कुमार हो या धर्मेन्द्र, भारत भूषण हो या जीतेन्द्र, रफ़ी साहब की आवाज़ हर एक नायक को उसकी आवाज़ बना लेती थी। तो दोस्तों, आज से लेकर अगले दस दिनों तक हर रोज़ सुनिये रफ़ी साहब की आवाज़ लेकिन अलग अलग नायकों को दी हुई। यूं तो रफ़ी साहब ने अपने समय के लगभग सभी छोटे बड़े नायकों के लिए प्लेबैक किया है, लेकिन जिस नायक का नाम सब से पहले ज़हन में आता है वो हैं हमारे शम्मी कपूर साहब। जिस तरह से मुकेश और राज कपूर की आवाज़ें एक दूसरे का पर्याय बन गये थे, ठीक उसी तरह रफ़ी साहब और शम्मी कपूर की आवाज़ें भी आपस में इस क़दर जुड़ी हुई हैं कि इन्हे एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। चंद गीतों को छोड़कर शम्मी साहब के लगभग सभी गीतों को रफ़ी साहब ने ही गाया है और इसलिए दस चेहरों में से पहला चेहरा हमने चुना है शम्मी कपूर का। सब से पहले रफ़ी साहब को शम्मी कपूर के लिए गवाने का श्रेय मेरे ख़याल से संगीतकार ग़ुलाम मोहम्मद को जानी चाहिए क्योंकि उन्होने रफ़ी साहब और शमशाद बेग़म से १९५३ की फ़िल्म 'रेल का डिब्बा' में एक युगल गीत गवाया था "ला दे मोहे बालमा आसमानी चूड़ियाँ", जो शम्मी कपूर और मधुबाला पर फ़िल्माया गया था। उसके बाद शम्मी कपूर और रफ़ी साहब की जोड़ी को सही मायने में आज़माया संगीतकार ओ. पी. नय्यर और शंकर जयकिशन ने। लेकिन आज हम शम्मी-रफ़ी के जोड़ी के जिस गीत को लेकर उपस्थित हुए हैं वो इनमें से किसी संगीतकार का नहीं, बल्कि राहुल देव बर्मन का स्वरबद्ध किया हुआ है। १९६५ की फ़िल्म 'तीसरी मंज़िल' पंचम की पहली कामयाब फ़िल्म मानी जाती है, जिसमे रफ़ी साहब और आशा भोंसले ने कुछ ऐसे धमाकेदार गानें गाये हैं कि आज ये गानें सदाबहार गीतों की फ़ेहरिस्त में अपना नाम दर्ज करवा चुकी है।
'तीसरी मंज़िल' नासिर हुसैन की फ़िल्म थी जिसमें शम्मी कपूर की नायिका थीं आशा पारेख। नासिर हुसैन की हर फ़िल्म का संगीत ख़ास हुआ करता था और यह फ़िल्म भी उन्ही में से एक थी। इस फ़िल्म के जिस गीत को हम आज यहाँ पेश कर रहे हैं उसे सुनने से पहले इस गीत से जुड़ी वो बातें जान लीजिये जो ख़ुद राहुल देव बर्मन ने विविध भारती के विशेष जयमाला कार्यक्रम के तहत कहा था - "मेरी दूसरी बड़ी पिक्चर थी 'तीसरी मंज़िल', उसके प्रोड्युसर डिरेक्टर ने जब हमको साइन किया तो उन्होने कहा कि 'देखो भाई, हमारे साथ एक और आदमी है जिनका नाम है शम्मी कपूर, उनको तुमको गाना सुनाना पड़ेगा और उनको 'फ़्लोर' भी करना पड़ेगा'। तो एक दिन मैं उनके पास गाने की 'सिटिंग' में बैठा, और मैने बोला कि 'देखिये, एक लोक गीत बनाया है, जिसके बोल हैं "ए कांछा मलई सुनको तारा खासई देयोना", इतना गाया तो उन्होने कहा कि, दूसरा लाइन, मुझे गाने नहीं दिया, और उन्होने कहा गा कर "जो तारा मात्र....."। जी हाँ दोस्तों, नेपाली लोक गीत की धुन पर आधारित यह गीत है "दीवाना मुझसा नहीं इस अम्बर के नीचे", जिसे आप ने कई कई बार सुना होगा और आज फिर एक बार सुनने जा रहे हैं हमारे साथ। अरे अरे अरे, इससे पहले कि आप गाने की लिंक पर क्लिक करें, क्या आप नहीं जानना चाहेंगे शम्मी कपूर के उद्गार अपने चहेते गायक के बारे में। शम्मी कपूर की ये बातें हमे प्राप्त हुई विविध भारती पर प्रसारित रफ़ी साहब को समर्पित 'विशेष मनचाहे गीत' कार्यक्रम के सौजन्य से जो प्रसारित हुआ था ३१ जुलाई २००५ को। शम्मी जी कहते हैं, "रफ़ी साहब का 'रेंज' बहुत बढ़िया और 'वास्ट' था। अलग अलग 'हीरोज़' के लिए अलग अलग 'स्टाइल' में गाते थे। मेरे लिए भी एक अलग 'स्टाइल' था। मेरी उनसे पहली मुलाक़ात हुई 'तुमसा नहीं देखा' के एक गाने की 'रिकॉर्डिंग' पर। वो मेरा इंतज़ार कर रहे थे। मैं पहुँचा तो मुझसे पूछने लगे कि गाने में कैसी हरकत करनी है?' मैं उनसे कहता था कि 'यहाँ पे मैं ऐसा हरकत करूँगा, अगर आप इस जगह ऐसा गायेंगे तो अच्छा रहेगा', और वो वैसा ही कर देते। एक गाना था फ़िल्म 'कश्मीर की कली' में "तारीफ़ करूँ क्या उसकी जिसने तुम्हे बनाया", मैं चाहता था कि इस गाने के एंड में लाइन रिपीट होती रहे, और मैं गाते गाते अंत में पानी में गिर पड़ूँ। जब मैने यह बात बतायी तो रफ़ी साहब को तो पसंद आयी पर नय्यर साहब ने इंकार कर दिया यह कहकर कि गाना ख़ामख़ा लम्बा हो जायेगा। अंत में रफ़ी साहब ने कहा कि 'गाना मैं गाऊँगा, आप लोगों को तक़लीफ़ क्यों हो रही है?' और इस तरह से रफ़ी साहब की वजह से मेरी वो ख़्वाहिश पूरी हुई थी। हम लोग कभी कभी रात को एक साथ बैठकर गाना गाते। शंकर, जयकिशन, रोशन, रफ़ी साहब, और मैं, रात ११/१२ बजे बैठ जाते और हम सब क्लासिकल म्युज़िक गाते, मैं भी गाता, बहुत ही हसीन घड़ियाँ थे वो सब!" तो दोस्तों, उन हसीन लम्हों और उस सुरीले ज़माने को याद और सलाम करते हुए अब आप को सुनवाते हैं 'तीसरी मंज़िल' फ़िल्म से "दीवाना मुझसा नहीं...", सुनिए।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा दूसरा (पहले गेस्ट होस्ट हमें मिल चुके हैं शरद तैलंग जी के रूप में)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. रफी साहब का गाया एक संजीदा प्रेम गीत.
2. कलाकार हैं -"दिलीप कुमार".
3. मुखड़े की अंतिम पंक्ति में शब्द है -"पसीना".
सुनिए/ सुनाईये अपनी पसंद दुनिया को आवाज़ के संग -
गीतों से हमारे रिश्ते गहरे हैं, गीत हमारे संग हंसते हैं, रोते हैं, सुख दुःख के सब मौसम इन्हीं गीतों में बसते हैं. क्या कभी आपके साथ ऐसा नहीं होता कि किसी गीत को सुन याद आ जाए कोई भूला साथी, कुछ बीती बातें, कुछ खट्टे मीठे किस्से, या कोई ख़ास पल फिर से जिन्दा हो जाए आपकी यादों में. बाँटिये हम सब के साथ उन सुरीले पलों की यादों को. आप टिपण्णी के माध्यम से अपनी पसंद के गीत और उससे जुडी अपनी किसी ख़ास याद का ब्यौरा (कम से कम ५० शब्दों में) हम सब के साथ बाँट सकते हैं वैसे बेहतर होगा यदि आप अपने आलेख और गीत की फरमाईश को hindyugm@gmail.com पर भेजें. चुने हुए आलेख और गीत आपके नाम से प्रसारित होंगें हर माह के पहले और तीसरे रविवार को "रविवार सुबह की कॉफी" शृंखला के तहत. आलेख हिंदी या फिर रोमन में टंकित होने चाहिए. हिंदी में लिखना बेहद सरल है मदद के लिए यहाँ जाएँ. अधिक जानकारी ये लिए ये आलेख पढें.
पिछली पहेली का परिणाम -
दिशा जी मुबारक हो आखिरकार आपने खाता खोल ही लिया...२ अंकों के लिए बधाई...दिलीप जी वाह कायल होना पड़ेगा आपकी कवितामयी अभिव्यक्ति के लिए, और तहे दिल से शुक्रिया इतना मान देने के लिए. स्वप्न जी, पराग जी, मनु जी, शमिख फ़राज़ जी, शरद जी, सुमित जी, मंजू जी, संगीता जी, तनहा जी आप सब से ही तो रोशन है महफिलें. बहुत से नियमित श्रोता भी हैं जो अक्सर टिपण्णी के माध्यम से कभी सामने नहीं आते जैसे अर्चना जी. शैलेश जी और अनुराग जी आप सब के सहयोग के तारीफ करना शब्दों के परे है. दिलीप जी और स्वप्न मंजूषा जी आप दोनों ने इतने मधुर गीत सुनाये कि बस मज़ा आ गया. पराग जी आपके सवाल का जवाब उसी आलेख में है, एक बार फिर साफ़ कर दें -
१. ओल्ड इस गोल्ड को फरमाईशी नहीं बनाया गया है. चूँकि ओल्ड इस गोल्ड रोज प्रसारित होता है तो इसके माध्यम से हमारे श्रोता अपनी फरमाईश यहाँ रख सकते हैं. पर आलेख आपने hindyugm@gmail.com पर भेजना है. चुने हुए आलेख और गीत "रविवार सुबह की कॉफी" कार्यक्रम में सुनवाये जायेंगे न कि ओल्ड इस गोल्ड में. तो यहाँ कोई सीमा नहीं है किसी भी दशक के गीत की. ओल्ड इस गोल्ड के लिए आप निश्चिंत रहिये यहाँ हम ७० के दशक से आगे कभी नहीं बढ़ेंगे. :)
२. आपने सही कहा १९४० से १९५० के बहुत से अच्छे गीत हैं पर हमने ५० से इसलिए शुरू किया कि यदि इतने पुराने गीत हमारे संकलन में उपलब्ध न हों तो हमारे श्रोता निराश हो सकते हैं पर इसे कोई पत्थर की लकीर न मानें यदि आप ५०-१०० शब्दों में अपनी कोई ख़ास बात किसी ४० के दशक के गीत के विषय में लिख कर भेज सकें तो हमारी पूरी कोशिश रहेगी कि हम कहीं से भी उस गीत गीत को ढूंढकर आपकी नज़र करें. वैसे मूल आलेख में भी हमने सुधार कर दिया है.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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14 श्रोताओं का कहना है :
teri jawaan taptaa mahina
अदा जी
ऐसे काम नहीं चलेगा \अभी आप को और संघर्ष करना पडेगा सही गीत के लिए ।
yeh kaun haseen sharmaya, taronko paseena aaya
yeh kaun haseen sharmaya, taronko paseena aaya
jab dil se dil takraata hai
आज लगता है सबको पसीना आ गया ।
hnm.......
ada ji ke is aakhiri jawaab pr muhar
3 options hain...par
jab dil se dil takrataa hai....
hi sahi lagtaa hai....
aaj to sach much hi paseena aaya hai, ek baat aur samajh mein nahi aarahi kya mujhe awaaz ne blog nikala diya hua hai main comment kar hi nahi paa rahi hun indino hamesha laat maar kar koi nikaal deta hai aisa mehsoos ho rah hai
देखा था तुझे इक बार कहीं..
उस दिन से अभी तक होश नहीं...
फिर इश्क ने करवट बदली है ...फिर सामने तू है माहजबीं....
इसी का एक और है मेरा मनपसंद...
मेरे पास आओ नजर तो मिलाओ,,,सुनो तो ज़रा धड़कने मेरे दिल की........
इन्हीं में तुम्हारी कहानी मिलेगी....
बेहद प्यारे गीत हैं दोनों...
hnm
wo to hai...
मनु जी
३ option कहाँ है ? तेरी जवानी तपता महीना मेंं मनोज कुमार पर गीत फ़िल्माया गया
ये कौन हसीं शर्माया तारों को पसीना आया - अन्तरे की पंक्तियां हैं
जी हाँ शरद जी,
आपकी बात २० आना सही है
लेकिन क्या करूँ :
जब कंप्यूटर मुझे चिढाता हैं
मतपूछिए क्या हो जाता है
अंतरा मुखड़ा बन जाता है
माथे पे पसीना आता है
Jab, dil se dil, takrata hai
mat poochiye, kya ho jata hai,
Jhukti hai nazar, rukti hai zubaan,
maathe pe, paseena ata hai,
Jab dil se, dil takrata hai.
मैं तो सब के कमेंट्स पढ़ कर बरसात में पसीना -पसीना हो गयी .
जवाब है -यह कौन हसीं शरमाया ,तारों को पसीना आया .
इस बार तो दिग्गजों को भी जवाब पहचानने में पसीना आ गया. सही जवाब तो मुझे नहीं पता कें पसीना लफ्ज़ पे एक शेअर ध्यान आ रहा है.
यह साहिब के माथे की जौं मैं चकां मैं चकां
यह माथे पे पसीन की रौ कहकशां कहकशां
अब पड़े अब पड़े उनके माथे पे बल
अल्हज़र अल्हज़र अल्लमा अल्लमा
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