Wednesday, January 7, 2009

एक धक्का दो....जोश की जमीन पे, विश्वास बीन के...



आवाज़ की टीम गर्व के साथ पेश कर रही है एक बेहद प्रताभाशाली गायिका तरन्नुम मालिक

जैसा कि हमारे नियमित श्रोता जानते हैं कि आवाज़ पर नए संगीत का दूसरा सत्र बीते माह "जो शजर" गीत के साथ खत्म हो गया. इस सत्र में हमने कुल २७ गीत उतारे जिन्हें श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला, ये गीत आजकल समीक्षा के दूसरे चरण में हैं जिसके बाद हमें मिलेंगें हमारे टॉप १० गीत जिसमें से कोई एक गीत होगा हमारे दूसरे सत्र का सरताज गीत. पर सत्र खत्म होने का ये कतई अर्थ नही है कि हम नई प्रतिभाओं को इस मंच के माध्यम से दुनिया के सामने रखना बंद कर देंगें. ये प्रक्रिया बदस्तूर जारी रहेगी.

२६ नवम्बर २००८ को जो कुछ मुंबई में हुआ, उससे हर संवेदनशील ह्रदय आहत हुआ. कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से आम आदमी के भीतर उबलते ज़ज्बातों को दुनिया के सामने रखा. रहमान ने शिवमणि के साथ मिलकर "जिया से जिया" गीत रच डाला. आदेश श्रीवास्तव ने उस्ताद रशीद खान और जोया अख्तर के साथ मिलकर एक नई एल्बम बनायी, वहीं सुनिधि चौहान ने वसुंधरा दास और श्रुति के साथ एक ऐसा गीत बनाया जिसमें इन आतंकवादी हमलों की कड़ी भर्त्सना की गई. शिबानी कश्यप ने भी इन हादसों में मरे मासूमों को समर्पित गीत रचा "अलविदा" जो आजकल चैनलों पर खूब बज रहा है. हिंद युग्म ने भी अपनी बात ऋषि-बिस्वजीत और सजीव की टीम के माध्यम से अपने अंदाज़ में कही, जिसे इन्टरनेट पर खासी लोकप्रियता मिली.


उभरते हुए लेखक और निर्देशक अभिषेक भोला ने इन घटनाओं के बाद अपना गुस्सा कुछ शब्दों में समेटा और अपने चंद दोस्तों को एस एम् एस कर दिया. उनकी एक दोस्त और तेज़ी से कमियाबी की दिशा में अग्रसर पार्श्व गायिका तरन्नुम मालिक ने उनके उन शब्दों को स्वरों का जामा पहना दिया, और इस तरह बना एक नया गीत "एक धक्का दो..". उनके प्रयासों से प्रभावित होकर एक और पार्श्व गायक मित्र जुबेन गर्ग ने अपने होम स्टूडियो में पहले इस गीत को तरन्नुम की आवाज़ में रिकॉर्ड किया. प्रयास से प्रयास जुड़ते गये, और गाने का दम ख़म देखकर संगीतकार ललित सेन उन्हें इस गीत को अपने स्टूडियो "सबा" में री-रिकॉर्डिंग और मिक्सिंग करने की अनुमति दी, जिससे गीत और निखर गया. अभिषेक ने अपने दोस्तों की इस मेहनत को और पुख्ता रूप देने के उद्देश्य से अपनी टीम लेकर व्यक्तिगत हैंडी कैम से मुंबई के नेशनल पार्क, मनौरी, नरीमन पॉइंट और गेट वे ऑफ़ इंडिया के कुछ स्थानों पर जाकर कुछ दृश्य फिल्माए. क्षेत्रीय लोगों ने और पर्यटकों ने इस शूट में हिस्सा लिया और इस तरह बना देशभक्ति और मानवता का संदेश देता एक जोशीला गीत.

सुनिए और महसूस कीजिये आज के हालतों में भी देश के युवाओं के मन में उठते तूफानों को -




टीम -

संगीतकार और गायिका - तरन्नुम मालिक
सह गायक - संतोष और सुहेल
गीतकार - अभिषेक भोला
प्रोग्रामर - ब्रिन्गी
रीकोरडिस्ट - रफीक (सबा स्टूडियो)
कैमरा - गुरदीप मेहरा
एडिटर - मानिल कुमार रे
विडियो निर्देशक - अभिषेक भोला और केशव मेहता
अभिनय - तरन्नुम मालिक, जगजीत सैनी, बोब्बी कुमार, शिवम् शर्मा, प्रीटी शर्मा, रवि और मुंबई वासी.


गायिका तरन्नुम से हम जल्दी ही आपका विस्तार से परिचय करवाएंगे. तब तक देखिये ये दमदार विडियो और इन उभरते हुए फनकारों को अपने विचार देकर प्रोत्साहित करें या मार्गदर्शन दें.



SPECIAL NEW SONGS SERIES # 01 "EK DHAKKA DO", OPENED ON AWAAZ HIND YUGM ON 07/01/2009

Tuesday, January 6, 2009

ताल से ताल मिला - रहमान के साथ



मोजार्ट ऑफ़ मद्रास को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाओं सहित -
बात तब की है, जब रहमान "गुरू" फिल्म के गाने रिकार्ड कर रहे थे। "नुसरत" साहब के एक बहुत हीं सोफ्ट-से गाने "सजना तेरे बिना" ने उन्हें बेहद प्रभावित किया था। गौरतलब बात है कि "रहमान" की गिनती नुसरत साहब के बड़े फैन्स में की जाती है। रहमान भी "सजना तेरे बिना" जैसा हीं कोई सोफ्ट-सा गाना तैयार करना चाहते थे। "नुसरत" साहब का या फिर कहिये उनकी दुआओं का यह असर हुआ कि २५ मिनट का गाना बन कर तैयार हो गया। छ:-सात मुखरों से सजे इस गाने की एडिटिंग शुरू हुई और अंतत: गाने को इसकी मुकम्मल और संतुलित लंबाई मिल गई। मज़े की बात यह है कि इस गाने से पहले रहमान ने "ऎ हैरते आशिकी" गाना भी बना लिया था. "ऎ हैरते आशिकी" के पीछे का वाक्या भी बड़ा हीं मज़ेदार है। अमीर खुसरो के एक नज़्म "ये शरबती आशिकी" ने "रहमान" पर गहरा असर किया था। रहमान इसे धुनों में उतारना चाहते थे, लेकिन फारसी की बहुलता आड़े आ रही थी। तब खेवनहार के तौर पर आए "गुलज़ार साहब" जिन्होने "ये शरबती आशिकी" को अलग हीं अंदाज़ देकर बना दिया "ऎ हैरते आशिकी",जिसे "क्यूँ उर्दू-फारसी बोलते हो, दस कहते हो, दो तोलते हो" जैसे मिसरों ने मिश्री-सा मीठा कर दिया। तो हाँ हम बात कर रहे थे उस २५ मिनट के गाने की। "गुरू" के निर्देशक मणिरत्नम को "ऎ हैरते आशिकी" भारी-भरकम-सा लग रहा था, जिसे वो फिल्म की शुरूआत में नहीं डालना चाहते थे। तब नुसरत साहब की दुआओं से उपजे गाने को फिल्म का पहला गाना बनने का मौका मिला। वह गाना था "तेरे बिना" ("सजना तेरे बिना" से "सजना" को देशनिकाला मिल गया ) । इस गाने को रहमान ने कादिर खान और चिन्मयी की आवाज़ों में रिकार्ड कर लिया । लेकिन तभी मणिरत्नम को "दिल से" के "दिल से" की याद आ गई। मणिरत्नम जिद्द पर अड़ गए कि यह गाना अगर रहमान खुद नहीं गाते तो गाना फिल्म में रहेगा हीं नहीं। रहमान द्वंद्व में, कादिर खान के साथ धोखा भी नहीं कर सकते थे,लेकिन गाना भी प्यारा था । अंतत: रहमान ने हामी भर दी और हमें रहमान की आवाज़ में प्यारा-सा गाना सुनने को मिल गया। वैसे गाने में कादिर खान की आवाज़ है, लेकिन महज़ आलाप में हीं।

कादिर खान की आवाज़ में "तेरे बिना" यहाँ सुने-



सौम्या राव की आवाज़ में "शौक है" सुनें,जिसे ओडियो में रीलिज नहीं किया गया, लेकिन फिल्म में विद्या बालन और माधवन पर फिल्माया गया था।


यह तो हम सभी जानते हैं कि रहमान का वास्तविक नाम "दिलीप कुमार" है। रहमान जब रहमान नहीं थे, बल्कि अपने दोस्तों के साथ संगीत तैयार करने वाले "दिलीप" थे, तब उन्होंने "शुभा" नाम की एक गायिका के साथ "सेट मी फ्री" (set me free) नाम का अंग्रेजी गानों का एलबम तैयार किया था। यह बात "रोजा" के रीलिज होने से पहले की है। इस एलबम को "मैंग्नासाउंड" नाम की कंपनी ने रीलिज किया था। चूँकि संगीतकार नया था, गीतकार नया था, गायिका नयी थी और लोगों की पसंद पुराने ढर्रे की, "सेट मी फ्री" कुछ ज्यादा कमाल नहीं कर सकी। दो साल बाद "रोज़ा" रीलिज हुई और "रहमान" रातोंरात अव्वल नंबर के संगीतकारों में शुमार हो गए । "रोज़ा" में पहली बार दिलीप को "ए०आर०रहमान" के रूप में पेश किया गया था। "दिलीप" के "ए०आर०रहमान" बनने की कहानी जितनी दु:खद(पिता की मृत्य, बहन की लाईलाज बिमारी)है,उतनी हीं रोमांचक भी है। "दिलीप" के पूरे परिवार ने धर्म-परिवर्तन का फैसला कर लिया था। "दिलीप" की माँ ज्योतिष में बेहद यकीन करती थी। चेन्नई के जानेमाने ज्योतिष "उलगनथम" के पास एक बार "दिलीप", उनकी बहन और उनकी माँ का जाना हुआ। उनकी माँ ने उस ज्योतिष से "दिलीप" के लिए कोई इस्लामिक नाम सुझाने का आग्रह किया। "उलगनथम" ने नाम दिया "अब्दुल रहमान" लेकिन कहा कि इसे "ए०आर०रहमान" कहो । बार-बार यह पूछने पर भी कि इसमें "आर०" किस शब्द के लिए है, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, बस इतना हीं कहा कि "ए०आर०रहमान" नाम हीं इसे प्रसिद्धि दिलायेगा। आगे चलकर प्रख्यात संगीतकार "नौशाद" की सलाह पर "ए०आर०" हुआ "अल्लाह रक्खा" । जब फिल्म रोजा रीलिज होने वाली थी,तो इस फिल्म के कैसेट्स के कवर पर "दिलीप कुमार" लिखने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। तभी रहमान की माँ ने निर्देशक "मणिरत्नम" से संपर्क किया और उनसे गुजारिश की कि "दिलीप कुमार" की बजाय "ए०आर०रहमान" लिखा जाए और इस तरह "दिलीप" हो गए "ए०आर०रहमान" । हाँ तो हम बात कर रहे थे "सेट मी फ्री" की। रोज़ा की सफलता के बाद "मैग्नासाउंड" कंपनी ने "रहमान" के नाम को भुनाना चाहा। रहमान से इजाजत लिए बिना उन लोगों ने पुराने कैसेट्स को नए कवर में बाज़ार में उतार दिया, चेन्नई में जगह-जगह बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगा दी और कैसेट को रहमान का सबसे पहला अंतर्राष्ट्रीय एलबम कहा गया । जाहिर सी बात है रीलौंच हुए कैसेट को "रहमान" के नाम के कारण बाज़ार तो मिलना हीं था, कैसेट्स हाथों-हाथ बिक गए,वही कैसेट जिसकी पहले केवल ३०० प्रतियाँ हीं बिकी थी। आज भी हम से कई "सेट मी फ्री" को आज के रहमान का एलबम मानते हैं, जबकी "रहमान" खुद इसके रीलौंच से नाराज़ थे। उनका कहना था कि यह कैसेट उनके लिए एक प्रयोग मात्र था,"मैग्नासाउंड" जब इसे रीलौंच हीं करना चाहती थी तो उनसे धुनों का कच्चापन तो खत्म करा लेती। लेकिन रूपयों के चकाचौंध ने "मैग्नासाउंड" की आँखों पर पट्टी डाला हुआ था। गनीमत देखिए कि उसी कंपनी ने २००६ में फिर से उसी एलबम को रीलिज किया है और इस बार भी "रहमान" के नाम ने उसे करोड़ों की कमाई करा दी है। यह है "रहमान" के संगीत का कमाल...........क्या हुआ कि कच्चा है....लेकिन है तो रहमान का हीं।

पिछले अंक में हम बातें कर रहे थे रहमान के संगीत के अनोखे अंदाज़ के बारे मे। रहमान जानते हैं कि उन्हें किस वाद्य-यंत्र से कितनी ध्वनि चाहिए। कल हम "ताल" की बात पर रूके थे। तो "ताल" का हीं किस्सा सुनाते हैं। "ताल से ताल मिला" की रिकार्डिंग हो रही थी। "रहमान" धुन तैयार कर चुके थे, अब बस म्युजिसियन्स या कहिए वादकों को अपना काम करना था। "ताल से ताल मिला" अगर आपको याद हो तो आप महसूस करेंगे कि इस गाने में "तबला" का बेहद खूबसूरत प्रयोग किया गया है। दर-असल इसका सारा श्रेय जाता है रहमान के अनूठेपन को। तबला-वादक इस गाने की धुन को बेहद आसान और कन्वेंशनल मान रहा था। लेकिन रहमान जानते थे कि उन इस गाने में तबले का प्रयोग कैसे करना है। उन्होंने तबला-वादक को अपनी ऊँगलियों में रबर-बैंड के सहारे आईस-क्रीम-स्टीक्स बाँधने को कहा ,फिर धुन भी अनकन्वेंशनल हो गई और तबले की आवाज भी।

तो चलिए सुनते हैं "ताल" से "ताल से ताल मिला"-



रहमान के स्टुडियो में गानों की रिकार्डिंग कितने अलहदा तरीके से होती है, उसके कई प्रमाण है। रहमान गानों की रिकार्डिंग के वक्त स्टुडियो की हरेक आवाज़ को रिकार्ड कर लेते हैं,फिर चाहे वह माईक का ग्लिच हीं क्यों ना हो। एक ऎसा हीं मज़ेदार वाक्या हुआ तमिल फिल्म "कदल वाईरस" के एक गाने की रिकार्डिंग के वक्त । गाने में नायक की खाँसी की आवाज़ की जरूरत थी। गाने की रिकार्डिंग के बीच में गायक खाँस पड़ता है। इस एक खाँसी के अलावा गाने की रिकार्डिंग के दौरान गायक कभी भी खाँसी की वास्तविक नकल नहीं कर पाता। खाँसी के बिना पूरी रिकार्डिंग खत्म हो जाती है। रहमान पहले से रिकार्ड कर रखी हुई गायक "मनू" की वास्तविक खाँसी को हीं गाने में फिट कर देते हैं। ऎसे हीं कई किस्से हैं जो रहमान को औरों से अलग करते हैं और परफेक्शनिस्ट बनाते हैं। कहा जाता है कि रहमान गायक के अनुसार धुन में फेरबदल नहीं करते,बल्कि धुन के मुताबिक गायक चुनते हैं। बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि रहमान की बड़ी बहन "रेहाना" भी एक गायिका हैं ,लेकिन रहमान ने अपने कैरियर के १७ साल बीत जाने के बाद तमिल फिल्म "शिवाजी" में उन्हं गाने का अवसर दिया। रहमान संगीत को जीते हैं,इसलिए संगीत के साथ धोखा करने की सोच भी नहीं सकते । रहमान धुन के अनुसार गायको के साथ प्रयोग करते रहते हैं। यही कारण है कि हम "दौड़" फिल्म के एक गाने "ओ भंवरे" में "येशुदास" की आवाज़ सुनते हैं, जिसकी शायद हीं कोई कल्पना कर सकता है ।

आप भी "दौड़" के "ओ भँवरे" का मज़ा लीजिए:



रहमान ने किसी भी संगीतकार से ज्यादा ४ रजत कमल पुरस्कार(silver lotus, national award) प्राप्त किये हैं उन्हें ये पुरस्कार क्रमश: रोज़ा(१९९२), मिन्सारा कनावु(१९९७), लगान(२००१) और कनतिल मुतमित्तल(२००२)के लिए प्रदान किए गए। टाईम मैगजीन ने "रोज़ा" के संगीत को विश्व के सर्वश्रेष्ठ १० गीतों में शुमार किया है। टाईम मैगजीन ने रहमान को "मोज़ार्ट औफ मद्रास" की उपाधि से भी नवाज़ा है। पूरे विश्व में अबतक रहमान के १० करोड़ से भी ज्यादा साउंडट्रैकस एवं फिल्म -स्कोर्स बिक चुके हैं। यह उपलब्धि उन्हें संसार के १० सबसे बड़े रिकार्ड आर्टिस्टों की कतार में ला खड़ा करती है। यह किसी भी भारतीय के लिए फख़्र की बात है।

चलिए अंत में हम सुनते हैं रहमान का संगीतबद्ध एवं स्वरबद्ध किया हुआ फिल्म "लगान" का "बार-बार हाँ, चले चलो" गाना-



अंत में जाते-जाते रहमान को उनके जन्मदिवस पर ढेरों शुभकामनाएँ। खुदा करे कि उनपर बरकत बनी रहे और पूरा संगीत-जगत सदियों तक उनके संगीत और गीत का यूँ हीं लुत्फ़ लेता रहे। आमीन!!!!

चित्र में (उपर) शांत और सोम्य रहमान, (नीचे) प्रिय निर्देशक मणि रत्नम के साथ
प्रस्तुति - विश्व दीपक "तन्हा"




लक्ष्य छोटे हों या बड़े, पूरे होने चाहिए- शैलेश भारतवासी



डैलास, अमेरिका के एफ॰एम॰ रेडियो चैनल 'रेडियो सलाम नमस्ते' को दिये गये अपने साक्षात्कार में हिन्द-युग्म के संस्थापक-नियंत्रक शैलेश भारतवासी ने कहा कि किसी व्यक्ति या संस्था की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वह चाहे छोटे लक्ष्य बनायें या बड़े लक्ष्य बनाये, उसे पूरा करे। शैलेश रेडियो सलाम नमस्ते के हिन्दी कविता को समर्पित साप्ताहिक कार्यक्रम 'कवितांजलि' के २१ दिसम्बर के कार्यक्रम में टेलीफोनिक इंटरव्यू दे रहे थे। हमें वह रिकॉर्डिंग प्राप्त हो गई है। आप भी सुनें, शैलेश की बातें और उसके बाद रेडियो सलाम नमस्ते के श्रोताओं की बातें।




आदित्य प्रकाश
यह कार्यक्रम डैलास, अमेरिका में ही वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत हिन्दी सेवी आदित्य प्रकाश सिंह द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। आदित्य प्रकाश की आवाज़ सुनकर हर एक हिन्दी प्रेमी को हिन्दी के लिए कुछ कर गुजरने की ऊर्जा मिलती है। आदित्य प्रकाश सिंह अपने खर्चे से दुनिया भर के हिन्दी कर्मियों को अपने कवितांजलि कार्यक्रम से जोड़ते हैं। यहाँ तक कि स्टूडियो तक आने-जाने का खर्च भी ये ही उठाते हैं। मूल रूप से भारत में बिहार के रहनेवाले आदित्य प्रकाश कविताओं के शौक़ीन तो हैं ही, खुद एक कवि भी हैं। कभी इनके बारे में हम आवाज़ पर विस्तार से बातें करेंगे।


Monday, January 5, 2009

वो जिसने हिन्दी फ़िल्म संगीत की तस्वीर ही बदल दी...- ए आर रहमान.




बात १९९१ की है। तमिल फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन निर्देशक मणिरत्नम और बेहतरीन संगीतकार इल्लैया राजा की वर्षों पुरानी जोड़ी टूट चुकी थी। मणिरत्नम एक नए और फ्रेश संगीतकार की खोज में थे। हर साल की तरह उस साल भी मणिरत्नम का एक जानेमाने अवार्ड फंक्शन में जाना हुआ। समारोह शुरू होने से पहले वहाँ कुछ ऎड जिंगल्स (ad jingles) प्ले हो रहे थे। मणिरत्नम धुनों से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने उस संगीतकार के कुछ और गानों की फरमाईश की। धुनों का असर बढता गया। समारोह के बाद मणिरत्नम उस संगीतकार के म्युजिक रिकार्डिंग स्टुडियो भी गए। उस गुमनाम संगीतकार ने अपना एक पुराना गीत मणिरत्नम को सुनाया, जिसे उसने बरसों पहले "कावेरी विवाद" के सिलसिले में तैयार किया था। मणिरत्नम ने तनिक भी देर न करते हुए, अपनी नई फिल्म के लिए इस गीत की माँग कर दी और साथ हीं साथ इस नए-से संगीतकार को साईन भी कर लिया। वह मकबूल फिल्म थी "बालचंदर्स कवितालय" की "रोज़ा", वह गाना था "तमिज़ा तमिज़ा", जो हिंदी में अनुवादित होकर हुआ "भारत हमको जान से प्यारा है" और वह अनजाना सा संगीत-दिग्दर्शक था महज़ २४ साल का "अब्दुल रहमान",जिसे आज सारी दुनिया "ए०आर०रहमान" के नाम से जानती है। जानकारी के लिए बता दूँ कि "तमिज़ा तमिज़ा" दर-असल तमिलनाडु की गौरवशाली भूमि,इतिहास एवं वर्त्तमान का बखान है, जिसे जब हिंदी में बदला गया तो इससे किसी प्रदेश की बजाय पूरे हिन्दुस्तान की बात जुड़ गई। रही बात "अब्दुल रहमान" की तो फिल्म-इंडस्ट्री में इससे बड़ी और अनोखी इंट्री आज तक किसी भी फनकार की नहीं हुई। पहली हीं फिल्म "रोज़ा" के गानों के लिए "रहमान" को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया।

चलिए अब अतीत में चलते हैं। "अब्दुल रहमान"(धर्म परिवर्त्तन से पहले ए०एस० दिलीप कुमार)के पिता मलयालम फिल्मों में संगीत दिया करते थे। सलिल चौधरी जैसे संगीतकारों का उनके घर आना-जाना लगा रहता था। ऎसे हीं एक दिन संगीतकार सुदर्शनम मास्टर का रहमान के घर आना हुआ तो उन्होंने देखा कि एक चार साल का बच्चा हार्मोनियम पर एक धुन प्ले कर रहा था। सुदर्शनम साहब ने धुन की लिखी हुई प्रति छुपा दी ताकि बच्चे की तल्लीनता एवं कर्मठता भांप सकें। वही हुआ, जिसका अंदेशा था। बच्चा उसी तत्परता से धुन प्ले करने में लगा रहा,मालूम होता था मानो धुन जबानी याद हो। सुदर्शनम साहब ने तत्क्षण रहमान के पिता को मशवरा दे डाला कि इसे संगीत-साधना में लगाओ। इस तरह महज़ चार साल की उम्र में हीं "रहमान" संगीत की शिक्षा लेने लगे । रहमान जब नौ साल के थे, तो उनके पिता का देहांत हो गया। रहमान उस घटना को याद करते हुए कहते हैं -"मैं संगीत को कभी भी गंभीरता से नहीं लेता था, मैं कम्प्यूटर या इलेक्ट्रानिक इंजीनियर बनना चाहता था, लेकिन पिता की मौत ने मेरे सामने बस एक हीं रास्ता छोड़ा - संगीत। पूरे परिवार की जिम्मेदारी मेरे हीं कंधे पर आ गई। पैसों की कमी थी, इसलिए पहले तो संगीत के साज़-औ-सामान की निलामी करनी पड़ी,लेकिन जब उससे भी काम न बना तो मैं इल्लैया राजा के ट्रुप में की-बोर्ड प्लेअर की तौर पर शामिल हो गया। गिटार बजाना भी वहीं सीखा।" और फिर यूँ संगीत की दुनिया को एक बेजोड़ हीरा मिला,जिसे वक्त ने तराशा था। इसे भी वक्त की विडम्बना कहिये कि जिस दिन उनके पिता की मृत्यु हुई उसी दिन उनका ख़ुद का स्वरबद्ध किया पहला गीत बाज़ार में आया था.

रहमान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे धुनों पर अपनी छाप छोड़ना जानते हैं। चाहे धुन कितने भी पारंपरिक क्यूँ न हों, रहमान उसे अपने अलहदा अंदाज में लिखते हैं और अंततोगत्वा वही धुन कुछ नया हीं होकर निकलता है। उनके साउंड रिकार्डिस्ट "श्रीधर" रहमान की इस खूबी के बारे में कहते हैं- "उन्हें अपने हर गाने की खास जरूरत मालूम होती है। मसलन बांसूरी से बस कलरव करती हवा की आवाज़........" । आप रोज़ा का "रोज़ा जानेमन ...." सुने, वहाँ अंतरा के दो छंदों के मध्य आपको बांसुरी का बड़ा हीं मनोरम एवं अनूठा प्रयोग सुनाई देगा। रहमान की यही विशेषता है, जो उन्हें औरों से जुदा करती है।

सुनिए "रोजा जाने मन.." फ़िल्म रोजा से-



अमिताभ बच्चन कार्पोरेशन लिमिटेड(ए०बी०सी०एल०) के तहत आई मणिरत्नम की फिल्म "बम्बे" ने ए०आर०रहमान० के कैरियर को एक अलग हीं ऊँचाई दी। फिल्म हिंदी में डब हुई और सारे गाने बेहद लोकप्रिय हुए। रहमान के लिए बालीवुड के रास्ते खुल गए। राम गोपाल वर्मा ने "रंगीला" के गाने "रहमान" से तैयार करवाए और "रहमान" के संगीत का जादू देखिए कि फिल्म "म्युजिकल" नहीं होकर भी बहुत बड़ी "म्युजिकल हिट" साबित हुई। "रंगीला" के "हाय रामा" गाने को कौन भूल सकता है। हरिहरन की आवाज़ का संतुलन और स्वर्णलता का मदहोश कर देने वाला स्वर बड़ी हीं बारीकी से दिल में उतरता है। भारतीय एवं पाश्चात्य वाद्य-यंत्रों का एक साथ ऎसा प्रयोग भला और कौन संगीतकार कर सकता था। "प्यार ये जाने कैसा है" में सुरेश वाडेकर एवं कविता कृष्णमूर्ति की आवाज़ एवं शास्त्रीय संगीत की स्वर-लहरियाँ रहमान की प्रतिभा का एक नया आयाम दर्शाती हैं । बारीकी से देखें तो यकीनी तौर पर यह कहा जा सकता है कि इस फिल्म के सभी गाने एक-दूसरे से बेहद अलहदा थे।

सुनिए "प्यार ये जाने कैसा है..." फ़िल्म रंगीला से-



रंगीला के बाद आई रहमान को पहला ब्रेक देने वाले मणिरत्नम की फिल्म "दिल से" और इस फिल्म ने साबित कर दिया कि रहमान कितना दिल से काम करते हैं। "दिल से" के गाने "छैंया छैंया" में रहमान ने "सुखविंदर सिंह" को मौका दिया और इस मौके ने पूरे हिन्दी-फिल्म एवं संगीत जगत को दिया एक नया सितारा। "सुखविंदर" आज भी अपनी कामयाबी का पूरा श्रेय रहमान को हीं देते हैं। फिल्म में रहमान ने एक गाना "दिल से" को अपनी आवाज़ दी और देखते हीं देखते रहमान की आवाज़ कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैल गई। सारे संगीत प्रेमी उस सीधी एवं सुलझी हुई आवाज़ के कायल हो गए। यूँ तो रहमान को "हिंदी" की ज्यादा जानकारी नहीं है,लेकिन उनकी आवाज़ सुनकर ऎसा तनिक भी महसूस नहीं होता।

"दिल से" के बाद रहमान ने और भी कई हिंदी फिल्मों में संगीत दिया, मसलन "दौड़", "कभी न कभी", "शिखर" ,"लव यू हमेशा" ,"१९४७-अर्थ' , लेकिन रहमान को बालीवुड में सही पहचान मिली फिल्म "ताल" की सफलता के बाद। "ताल" के बाद हीं उन्हें बालीवुड संगीतकारों की फेहरिश्त में शामिल किया जाने लगा। "अर्थ" के दो गाने "रूत आ गई रे" और "ईश्वर अल्लाह" ने भी खासा नाम किया था ,लेकिन फिल्म के बाकी गाने कुछ ज्यादा प्रभाव नहीं दिखा सके। "रूत आ गई रे" को सुखविदंर अब भी अपना सबसे पसंदीदा गाना मानते हैं ...इस गाने में है हीं ऎसी बात कि जो भी सुन ले,वो खो जाए। "ईश्वर अल्लाह" में रहमान के संगीत के साथ-साथ जावेद अख्तर के बोल भी बेहद हृदय-स्पर्शी हैं।

सुनिए "रुत आ गई रे..." फ़िल्म १९४७ - अर्थ से रहमान का गीत -



चित्र में उपर - रहमान पत्नी सैरा बानो के साथ, (याद कीजिये फ़िल्म बॉम्बे में नायिका का भी यही नाम था...)

देखिये रहमान का शायद सबसे पहला इंटरव्यू जो उन्होंने दूरदर्शन के सुरभि कार्यक्रम के लिए दिया था. तब उनकी पहली फ़िल्म "रोजा" प्रर्दशित हुई ही थी.




प्रस्तुति - विश्व दीपक "तन्हा"
(जारी....)

Sunday, January 4, 2009

"हौले हौले" से "जय हो"...- सुखविंदर सिंह का जलवा



सुनिए गोल्डन ग्लोब के लिए नामांकित फ़िल्म स्लमडोग मिलनिअर का जबरदस्त गीत "जय हो..."

आवाज़ के टीम और श्रोताओं ने मिल कर जिस गीत को साल २००८ का सरताज गीत चुना वो है फ़िल्म "रब ने बना दी जोड़ी" का "हौले हौले..." . हौले हौले से जादू बिखेरने वाले इस गीत को गाया है "छैयां छैयां" से रातों रातों सुपर सिंगर बने सुखविंदर सिंह ने. तब से अब तक हर साल सुखविंदर अपने किसी न किसी गीत के माध्यम से टॉप सूची में रहते ही हैं. जहाँ इसी साल फ़िल्म टशन में उनका गाया "दिल हारा रे..." भी हमारी सूची में अपनी जगह बनने में कामियाब रहा वही बीते सालों पर नज़र डालें तो "दर्द-ऐ-डिस्को", "चक दे इंडिया" और ओमकारा के शीर्षक गीत के अलावा इसी फ़िल्म का "बीडी जलाई ले" खासा लोकप्रिय हुआ था. पर कई मायनों में अगर हम देखें तो "हौले हौले" उनकी परिचित शैली से बिल्कुल अलग तरह का गीत है और पहली बार सुनने पर यकीं ही नही होता कि ये वाकई सुखविंदर का गीत है.


और अब हॉलीवुड के सबसे बड़े निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग की फ़िल्म के लिए भी वो गा रहे हैं. ख़ुद सुखविंदर के शब्दों में "स्टीवन स्पीलबर्ग की टीम ने मुझसे संपर्क किया और ये गीत गाने की गुजारिश की, ये एक पारंपरिक लोक गीत है जो कच्छ गुजरात की मिटटी का है और ये गीत जीवन के उत्सव की बात करता है, वैसे मेरा हॉलीवुड कनेक्शन तो "स्लमडोग मिलनिअर" से ही शुरू हो चुका था जहाँ मैंने रहमान जी का स्वरबद्ध किया और गुलज़ार जी का लिखा "जय हो" गीत गाया था. ये गीत मेरा ख़ुद का बहुत पसंदीदा है, मैं जब भी इसे सुनता हूँ, मुस्कुराने लगता हूँ..."

गौरतलब है कि रहमान को इसी फ़िल्म के लिए गोल्डन ग्लोब का नामांकन मिला है. रहमान के बारे में सुखविंदर कहते हैं -"वो एक जीनिअस हैं जिन्होंने भारतीय संगीत को विश्व मंच दिया है. स्वभाव से भी वो बहुत शांत और जमीन से जुड़े हुए इंसान हैं, उन्हें कविता से प्रेम है और वह शख्स संगीत खाता है संगीत पीता है और संगीत से ही साँस लेता है, उनके रोम रोम में संगीत है और उनके जेहन में दिन रात बस संगीत का जनून छाया रहता है..."

बहरहाल इस नए साल में हम सब तो यही चाहेंगें कि रहमान साहब अपनी इस फ़िल्म के लिए गोल्डन ग्लोब जीते. ये भारतीय संगीत के लिए एक बड़ी घटना होगी. सुखविंदर भी इस साल अपने नए गीतों से हम सब को चकित करते रहें. आने वाली फ़िल्म "बिल्लू बार्बर" में उनके गाये गीत श्रोता जल्दी ही सुनेंगें, फिलहाल हम आपको सुनवाते हैं, गोल्डन ग्लोब के लिए नामांकित फ़िल्म "स्लमडोग मिलनिअर" से सुखविंदर का गाया गीत "जय हो...". कहते हैं जीनिअस के काम पहली बार में कम समझ आता है, पर हमारे शब्दों पर यकीन करें इस गीत को धैर्य के साथ ४-५ बार सुनें और अगर इसका जादू आपके सर चढ़ कर न बोले तो कहियेगा. तो सुनिए और दुआ कीजिये कि "जय हो" हमारे संगीत कर्णधारों की विश्व मंच पर भी.




Saturday, January 3, 2009

सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'नेकी'



उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'नेकी'

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ''मन्त्र'' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "नेकी", जिसको स्वर दिया है लन्दन निवासी कवयित्री शन्नो अग्रवाल ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 20 मिनट और 13 सेकंड।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।



मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं
~ मुंशी प्रेमचंद (१८३१-१९३६)

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी

तखत सिंह ने हीरामणि की तरफ गौर से देखकर जवाब दिया, "मेरे सामने बीस जमींदार आये और चले गये। मगर कभी किसी ने इस तरह घुड़की नहीं दी।" यह कहकर उसने लाठी उठाई और अपने घर चला आया।
(प्रेमचंद की "नेकी" से एक अंश)

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अगले शनिवार का आकर्षण - मुंशी प्रेमचंद की "आत्माराम"

#Twenteeth Story, Neki: Munsi Premchand/Hindi Audio Book/2008/19. Voice: Shanno Aggarwal


Friday, January 2, 2009

कितना है दम नवम्बर के नम्बरदार गीतों में



अक्तूबर के अजयवीरों ने पहले चरण की समीक्षा का समर पार किया अब बारी है नवम्बर के नम्बरदार गीतों की. यहाँ हम आपके लिए, पहले और दूसरे समीक्षक, दोनों के फैसलों को एक साथ प्रस्तुत कर रहे हैं, तो जल्दी से जान लेते हैं कि नवम्बर के इन नम्बरदारों ने समीक्षकों को क्या कहने पर मजबूर किया है.

उडता परिन्दा

पहले समीक्षक -
सुदीप यशराज के ऒल इन वन प्रस्तुति का संगीत पक्ष बेहद श्रवणीय है. संगीत के अरेंजमेंट को भी कम वाद्यों की मदत से मनचाहा इफ़ेक्ट पैदा कर रहा है. प्रख्यात प्रयोगधर्मी संगीतकार एस एम करीम इसी तरह के स्वरों का केलिडियोस्कोप बनाया करते है.

लोरी से लगने वाले इस गाने के कोमल बोलों का लेखन भी उतना ही अच्छा हो नहीं पाया है, क्योंकि कई अलग अलग ख्यालात एक ही गीत में डाल दिये गये है. मगर यही तो एक फ़ेंटासी और मायावी स्वप्न नगरी का सपना देख रही नई पीढी़ का यथार्थ है.

यही बात गायक सुदीप के पक्ष में जाती है. थोडा कमज़ोर गायन ज़रूर है, जो बेहतर हो सकता था, क्योंकि गायक की रचनाधर्मिता तो बेहद मौलिक और वाद से परे है.

गीत - ४, धुन व् संगीत संयोजन - ३.५, आवाज़ व गायकी - ३.५, ओवारोल प्रस्तुति - ३.५. कुल १४.५ : ७.५ /१०.

दूसरे समीक्षक -

गीत का संगीत पक्ष बहुत अच्छा है, लेकिन वह तब जब केवल संगीत को ही सुना जाय, क्योंकि गीत के बोलों में जिस तरह के भावों को डाला गया है, उस तरह का न तो संगीत-संयोजन रहा और न ही गायन। दूसरे अंतरे में ठहराव भी आ गया है। लगता है जैसे कि प्रवाह में कोई अवरोध आ गया। मुकम्मल गीत तभी बनता है जब गीत, संगीत और गायन तीनों उम्दा हों। जबकि इस गाने के तीनों महत्वपूर्व पहियों पर सुदीप का ही बल रहा था, इसलिए उनकी जिम्मेदारी ज्यादा थी। और मैं समझता हूँ कि इसे वो बेहतर कर भी सकते थे, क्योंकि भाव उनके थे, बोल उनके थी, आवाज़ उनकी थी, संगीत उनका था। फिर भी मैं इस प्रयास को १० में से ६ अंक दूँगा। ६/१०

कुल अंक (पहली और दूसरी समीक्षा को मिलकर) - १३.५ / २०.

ये हुस्न है क्या

पहले समीक्षक -
एक और सुरीली प्रस्तुति,जिसके धुन में,इन्टरल्य़ुड में काफ़ी प्रभावित करने वाले प्रयोग है. चैतन्य भट्ट की सुरों पर की पकड ज़बरदस्त लगती है. साथ ही उनके ग्रुप के अन्य वादक कलाकारों का आपसी सामंजस्य और आधुनिक हार्मोनी के साथ ही मेलोडी के मींड भरी लयकारी इसे बार बार सुनने की चाह्त पैदा करता है. रहमान के सुर और वाद्य संयोजन के काफ़ी करीब ले जाते इस संगीत रचना की तारीफ़ करने के किये शब्द नहीं.

संजय द्विवेदी के लिखे हुए शब्द भी ज़ज़बात से भरे हुए, युवा विद्रोही मन की उथल पुथल, खलबली कलम के ज़रिये दर्शाता है.शब्दों में मौलिकता भी कहीं कहीं दाद देने के लिये ललचा जाती है.

कृष्णा पंडित और साथियों के तराशे हुए गायन और सामंजस्य गीत को उचाईंयां प्रदान करता है.व्यवस्था के प्रति आक्रोश , युवा जोश और आसपास की समस्याओं के प्रति जागरूकता गीत के बोलों और धुन के माध्यम से, कहीं अधिक समूह गीत गायन के माध्यम से मेनिफ़ेस्ट करने में यह टीम पूर्ण रूप से सफ़ल मानी जा सकती है. कृष्णा पंडित गले से नहीं दिमाग़ से गाते हैं, इसलिये ये काम भी आसानी से पूरा हो जाता है.

गीत - ४, धुन व् संगीत संयोजन - ४, आवाज़ व गायकी - ४, ओवारोल प्रस्तुति -४. कुल १६ : ८ /१०

दूसरे समीक्षक -
इस महीने के इस गीत का संगीत पक्ष अच्छा है, लेकिन ७ मिनट ४१ सेकेण्ड के गीत में हर जगह एक तरह का ट्रीटमेंट है, इसलिए अलग-अलग अंतरे में एक से लगते हैं। हालांकि गीत के संगीत की अरेंज़िंग लाजवाब है, लेकिन हर जगह अपना रिपिटीशन दर्ज करा रही है। इसलिए बोल के अच्छे होने के बावजूद गीत बहुत अधिक प्रभाव नहीं छोड़ता। कहने का मतलब यह है कि यह गीत कहीं से ऐसा नहीं है, जिसे बारम्बार सुनने का मन करे। समूह गायन अपनी ओर आकर्षित ज़रूर करता है लेकिन फिर भी संगीतकार को अधिक मेहनत करनी होगी। मैं इस गीत को १० में से ८ अंक दूँगा. ८/१०

कुल अंक (पहली और दूसरी समीक्षा को मिलकर) - १६ / २०.

माहिया

पहले समीक्षक -
सीमा पार सी आये हमारे मुअज़्ज़ज़ मेहमानों नें ये जो प्रस्तुति दी है, उन्हे और आवाज़ को पहले बधाई !!
पाकिस्तान के आवारा बैंड़ नें इस सोफ़्ट रॊक गीत को ईमानदारी से गढा गया सुनाई देता है.गायकों के सुरों के समन्वय में भी सफ़ल हुई है इस गीत के सभी वादकों द्वारा बजाये गये हर वाद्य का अपना योगदान है- लीड़ गिटारिस्ट मोहम्मद वलीद मुस्तफ़ा (और गीत के मुख्य गायक भी),रिदम गिटारिस्ट अफ़ान कुरैशी,और ड्रमर वकास कादिर बालुच नें मेलोडी और पाश्चात्य शास्त्रीयता को अच्छे ढंग से फ़्युज़न किया है इस गीत में.

सुरीले गायक मंडली नें कहीं कहीं हार्मोनी को बेहद सुरीले अंदाज़ में गीत में पिरोया है, जो पूरी प्रस्तुति में एकाकार हो जाती है. इनकी आवाज़ में एक कशिश ज़रूर है.लीड़ गिटारिस्ट नें अपनी मौजूदगी से और कशिश बढा दी है.

पूरी धुन में हार्मोनी और कॊर्ड्स का प्रयोग प्रख्यात संगीतकार सलिल चौधरी की याद दिलाते है. इस समूह के उज्वल भविष्य की कामना करता हूं.

गीत - ४, धुन व् संगीत संयोजन - ४, आवाज़ व गायकी - ४, ओवारोल प्रस्तुति - ४. कुल १६ : ८ /१०

दूसरे समीक्षक
पहले तो इस बात का स्वागत कि हिन्द-युग्म पर अब पाकिस्तान से भी संगीतप्रेमी पधारने लगे हैं। इस गीत के संगीत, बोल और गायन में से किसी में भी ताजगी नहीं है। मिक्सिंग भी बहुत बढ़िया नहीं है। कम से कम लिरिक्स के स्तर पर भी इसमें नयापन होता तो यह सराहनीय गीत बन पड़ता। लेकिन यह ज़रूर कहा जा सकता है कि गायक में बहुत संभावनाएँ हैं, उसे कुछ बिलकुल ओरिजनल कम्पोजिशन पर गाकर खुद को परखना चाहिए। इसे मैं ४ अंक देना चाहूँगा। ४/ १०.

कुल अंक (पहली और दूसरी समीक्षा को मिलकर) - १२ / २०.

तू रुबरू:

पहले समीक्षक -
सजीव सारथी जी द्वारा गीत लिखा अच्छा गया है किंतु इस गीत की धुन में मधुरता या मेलोडी कम है. गीतकार की मेहनत,मौलिकता और शब्दों के सटीक चयन की वजह से इस गीत का साहित्यिक पक्ष बेहद सशक्त है.
जैसा कि प्रतीत हो रहा है, ये गीत पहले लिखा गया होगा और धुन बाद में बनी है. इसी वजह से धुन का संयोजन एक एब्स्त्रेक्ट पेंटिंग की तरह प्रस्तुत हो पाया है, जिसमें वेरिएशन और कॊर्डस का प्रयोग सीमित किया गया है, जो प्रभावित करने में कमज़ोर रहा है. अगर ये वही ऋषि है, जिन्होनें ऐसा नही के आज मुझे का कर्णप्रिय संगीत दिया है, तो ज़रूर कहूंगा कि इस गीत के संगीत को बड़ी ही ज़ल्दबाज़ी में मुकम्मल किया गया है, और श्रोता अपने आपको जब तक गाने के स्वरों से अपने आपको जोड़ पायेगा, तब तक गीत खत्म ही हो जाता है, एक अधूरेपन के एहसास को मन में छोडते हुए.
हालांकि विश्वजीत अच्चे गायक है,जो ओ साहिबा में साबित भी हो जाती है. मगर इस गीत में उनके गायन में मोनोटोनी सी लगती है, जो अधिकतर धुन की एकरसता की वजह से और बढ़ कर दुगनी हो जाती है. गायकी के स्वरों पर ठहराव भी नियंत्रित नहीं लगता.कहीं जल्दबाज़ी का भी गुमां सा होने लगता है.

गीत - ३.५, धुन व् संगीत संयोजन - ३.५, आवाज़ व गायकी - ३.५, ओवारोल प्रस्तुति - ३.५. कुल १४ : ७ /१०

दूसरे समीक्षक -
इस गीत के बोल बहुत बढ़िया हैं। ऋषि के संगीत में हमेशा की तरह ताज़गी है। बिस्वजीत दूर के सवार नज़र आते हैं। मुझे लगता है कि गीत की अधिक सराहना करने की बजाय मैं इसे १० में से ८॰५ अंक देकर अपनी भावनाएँ प्रदर्शित करना चाहूँगा। ८.५ /१०.

कुल अंक (पहली और दूसरी समीक्षा को मिलकर) - १५.५ / २०.


Thursday, January 1, 2009

सरताज गीत 2008 - आवाज़ की वार्षिक गीतमाला में



वर्ष 2008 के श्रेष्ट 50 फिल्मी गीत (हिंद युग्म के संगीत प्रेमियों द्वारा चुने हुए),पायदान संख्या 10 से 01 तक

पिछले अंक में हम आपको 20वें पायदान से 11वें पायदान तक के गीतों से रूबरू करा चुके हैं। उन गीतों का दुबारा आनंद लेने के लिए यहाँ जाएँ।

10वें पायदान - है गुजारिश - फ़िल्म गजिनी

अगर इस गीत को आप ध्यान से सुनें तो तो शुरू में और बीच बीच में एक गुनगुनाहट (हम्मिंग) सुनाई देती है, जो सोनू निगम की याद दिलाते हैं, जी हाँ ये हिस्सा सोनू ने ही गाया है, दरअसल इस धुन पर रहमान ने एक गीत बनाया था जिसे सोनू की आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया था, पर अफ़सोस वो फ़िल्म नही बन पायी, जब फ़िल्म गजिनी के लिए इसी धुन पर जब प्रसून ने नए शब्द बिठाये, तब सोनू को फ़िर तलब किया गया, पर निगम उन दिनों विदेश में होने के कारण रिकॉर्डिंग के लिए उपलब्ध नही हो पाये तो रहमान ने जावेद अली से गीत को मुक्कमल करवाया पर हम्मिंग सोनू वाली (जो मूल गाने में थी) ही उन्होंने रहने दी. यकीं न हो गीत दुबारा सुनें.



9वें पायदान - इन लम्हों के दामन में - फ़िल्म -जोधा अकबर
एक बार रहमान का जादू है यहाँ, कितना खूबसूरत है ये गाना ये आप सुनकर ही जान पाएंगे. गीत में विविध भाव हैं, उतार चढाव हैं, जिसे मधु श्री और सोनू निगम ने अपनी आवाजों से बखूबी पेश किया है, शब्दों से कमाल किया है एक बार जावेद साहब ने. जावेद साहब ने एक तरफ़ इस पीरीअड फ़िल्म के लिए बोल लिखे वहीँ रॉक ऑन के लिए नए ज़माने के गीत लिखे. वाकई उनकी रैंज कमाल की है


8वें पायदान - डांस पे चांस- फ़िल्म- रब ने बना दी जोड़ी

अब अगर आपको नाचना नही आता तो फ़िक्र करने कि कोई जरुरत नही. बस ये मदमस्त गीत सुनिए और 5 मिनट में नाचना सीख जाईये, गीत की खासियत इसके अलहदा से सुनिए देते बोल ही हैं और सुनिधि की झूमा देने वाली आवाज़ भी, उस पर बीच बीच में देसी ठसका लिए आते हैं लाभ जंजुआ. सलीम सुलेमान ने इस फ़िल्म एक लम्बी छलांग लगायी है...आप भी सीखिए नाचने के गुर इस गीत को सुन.


7वें पायदान - तू मुस्कुरा - फ़िल्म - युवराज
शुक्र है सुनने को मिली हमारी अलका की भी आवाज़ टॉप १० में आकर, दरअसल नए कलाकारों की भीड़ में पुराने गायक गायिकाओं की आवाज़ कहीं सुनने को मिले अचानक तो बेहद सुखद लगता है, और इसी गीत के साथ पहली बार इस गीतमाला में शामिल हुए हैं हमारे गुलज़ार साहब भी. सुंदर बोल पर रहमान का मधुर संगीत और जावेद अली के साथ अलका याग्निक की मन को छूती ये आवाज़ यही है फ़िल्म युवराज के "तू मुस्कुरा" गीत की खूबियाँ.


6वें पायदान - मर जावां- फ़िल्म- फैशन

इरफान सिद्दीक का जिक्र हम पहले भी कर चुके हैं, उनके लिखे इस गीत में और सलीम सुलेमान के रचे इस संगीत में मिटटी की खुशबू है. स्क्रीन पर इसे एक फैशन शो का हिस्सा दिखाया गया है. जाहिर सी बात, दृश्य प्राथमिक थे और गीत को सिर्फ़ उसे सहयोग देना था पर श्रुति पाठक के गाये इस गीत ने संगीत प्रेमियों पर ऐसा जादू किया कि ये फ़िल्म का सबसे लोकप्रिय गीत बन कर उभर कर सामने आया. निश्चित ही इस गीत लंबे समय तक संगीत के चाहने वालों के दिल में अपनी जगह बनाये रखने की समर्थता है.....मर जावां ...


5वें पायदान - कहीं तो कहीं तो - फ़िल्म - जाने तू या जाने न

इस फ़िल्म की और इसके संगीत की हम पहले भी इस गीतमाला में खूब चर्चा कर चुके हैं, ये पांचवां गीत है इस फ़िल्म का जो हमारे टॉप 50 का हिस्सा है, और किसी फ़िल्म को ये सम्मान नही मिला जोधा अकबर के हालाँकि 4 गीत हैं. पर फ़िर भी जाने तू या जाने न के हर गीत युवा प्रेमियों के दिल की बात कहता प्रतीत होता है. पांचवीं पायदान पर इस फ़िल्म का सबसे मीठा और सबसे खूबसूरत गीत है. ज़रा सुनिए रशीद अली और वसुंधरा दास ने कितना डूब कर गाया है इसे. "कहीं तो कोई तो है नशा तेरी मेरी हर मुलाकात में...." जैसे बोल लिखकर अब्बास टायरवाला ने साबित किया है वो सिर्फ़ चालू किस्म के नही ज़ज्बाती गीत भी बखूबी लिख सकते हैं....सुनिए....और डूब जाईये ...


चौथे पायदान - आज वे हवाओं में - फ़िल्म - युवराज

आवाज़ का दरिया हूँ, बहता हूँ मैं नीली रातों में, मैं जागता रहता हूँ नींद भरी झील सी आँखों में....बताईये ज़रा ऐसे बोल किसकी निशानी है, जी हाँ गुलज़ार साहब के कलम की बूँद बूँद छाप है इस शानदार गीत में, शुरू का अलाप लिया है ख़ुद रहमान ने बाद का मोर्चा संभाला है बेन्नी दयाल और श्रेया घोषाल ने पर ये गुलज़ार साहब के शब्द ही हैं जो इस गीत को बरसों बाद भी हमें गुनगुनाने के लिए मजबूर करेगा. ये रहमान का अन्तिम गीत है इस गीतमाला में तो पेश हैं ये नग्मा उसी संगीत सम्राट के नाम... आजा वे हवाओं में...


तीसरे पायदान - तेरी और - फ़िल्म - सिंग इस किंग
राहत साहब की उडानों वाली आवाज़ को कहीं कहीं थाम कर रोकती श्रेया की मधुर पुकार..."एक हीर थी और एक राँझा...कहते हैं मेरे गाँव में...", गीत में प्रीतम ने बेहद भारतीय वाद्यों से कमाल का समां बांधा है, ये सच है चोरी के आरोपों ने प्रीतम की छवि ख़राब की है पर इस संगीतकार में गजब की प्रतिभा भी है ख़ास कर जब ये देसी अंदाज़ के गीत बनाते हैं तो ऐसा मौहौल रच देते हैं की सुनने वाला बस खो सा जाता है याद कीजिये फ़िल्म जब वी मेट का "नगाडा" गीत, ये गीत भी बेहद खूबसूरत है. मयूर पुरी ने लिखे हैं इसके बोल, और यकीनन बहुत कमाल के शब्द चुने हैं उन्होंने. ऑंखें बंद कर सुनें राहत फतह अली खान को गाते हुए...तेरी ओर...


दूसरे पायदान - रॉक ऑन - फ़िल्म -रॉक ऑन

कहते हैं मात्र 5 दिन साथ रह कर शंकर, एहसान, लोय, फरहान, और जावेद साहब ने मिलकर इस फ़िल्म 9 ट्रेक रच डाले. जिसमें से 8 ही एल्बम में शामिल हो पाये. 6 गीतों को स्वर दिया ख़ुद फरहान ने. दरअसल रॉक संगीत को भारत में स्थापित करने की कोशिश इससे पहले भी कई बार हुई है, पर ख़ुद के रचे गानों में दम न होने के जब रॉक बैंड नाकाम होकर कवर वर्जन गाने लगे तो कहा जाने लगा कि हिंदुस्तान में रॉक का कोई भविष्य नही. पर इस फ़िल्म के गीतों ने हिन्दी रॉक संगीत को एकदम से रोक्किंग बना दिया है. दरअसल रॉक संगीत में कविता का बहुत बढ़िया इस्तेमाल हो सकता है, जैसा कि इस फ़िल्म के कई गीतों में देखने को मिला है तो आगे भी इस तरह के प्रयोग होते रहें तो अच्छा है. ये गीत मन में एक नई आशा भरता है. अपने ख्वाबों को दबाना छोड़ दें और खुल कर पंख फैलाएं ऊंची उडानों के लिए.....शायद नए साल पर रॉक ऑन आपको यही संदेश देना चाहता है....आपके सपनें है आपके अपने..रॉक ऑन .



सरताज गीत २००८ - हौले हौले - फ़िल्म -रब ने बना दी जोड़ी

आम आदमी की जीवनचर्या और उसकी सोच को परिभाषित करता है ये हमारा नम्बर 1 गीत "हौले हौले सब कुछ होता है...तू सब्र तो कर सब्र का फल मीठा होता है". अब आप कहेंगे ये तो पुरानी सीख है, पर दोस्तों दरअसल इस गीत के माध्यम से ये गीत सही समय पर आया है, अंधी दौड़ में भागते हर मध्यम वर्गीय आदमी ने अचानक जल्द से जल्द अमीर बनने का सपना देखा. बाज़ार बदला बहुत से दिल बैठ गए....सेंसेक्स की मार से घायल आम आदमी जो अपने मेहनत की जमा पूँजी को डूबता देख रहा था उसके लिए राहत और सबक बन कर आया जयदीप सहानी का लिखा ये गीत. "चक दे" के बाद जयदीप का ये एक और बड़ा गीत है जो शीर्ष स्थान तक पहुँचा है. संगीत सलीम सुलेमान का और आवाज़ है सुखविंदर सिंह जिन्होंने इस गीत को गाकर अपने सभी आलोचकों के मुँह बंद कर दिए हैं....सरताज गीत 2008 ...हौले हौले से सुनिए ज़रा....






साल 2008 के 5 गैर फिल्मी गीत -

5. आसमान - के के
4. आवेगी या नही - रब्बी शेरगिल
3. दौलत शोहरत - कैलाश खेर
2. सोचता हूँ मैं - सोनू निगम
1. सांवरे - रूप कुमार राठोड


सुनिए इन गीतों को भी -



वर्ष २००९ भी इसी प्रकार संगीतमय गुजरे इसी कमाना के साथ हम विदा लेते हैं, नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ. यदि आपने आज की हमारी विशेष प्रस्तुति नही सुनी तो यहाँ सुनिए.



स्वागत नव वर्ष 2009



नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

मित्रों,
नव-वर्ष के शुभ अवसर पर आवाज़ और हिंद-युग्म की ओर से आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन! ईश्वर आपके इस नए वर्ष में आपको सुख-समृद्धि, आनंद, और सफलता दे. हम सब इस संसार को एक बेहतर स्थान बना सकें. आईये सुनते हैं नव-वर्ष के इस अवसर पर आवाज़ की ओर से एक छोटी सी पेशकश.





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स्वागत नव वर्ष [श्रीमती लावण्या शाह]

स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष!
बीते दुख भरी निशा, प्रात: हो प्रतीत,
जन जन के भग्न ह्र्दय, होँ पुनः पुनीत

स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष!
भेद कर तिमिराँचल फैले आलोकवरण,
भावी का स्वप्न जिये, हो धरा सुरभित

स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष!
कोटी जन मनोकामना, हो पुनः विस्तिर्ण,
निर्मल मन शीतल हो, प्रेमानँद प्रमुदित

स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष!
ज्योति कण फहरा दो, सुख स्वर्णिम बिखरा दो,
है भावना पुनीत, सदा कृपा करेँ ईश

स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष!
*****

नव-वर्ष [डा. महेंद्र भटना़गर]
नूतन वर्ष आया है!
अमन का; चैन का उपहार लाया है!
आतंक के माहौल से अब मुक्त होंगे हम,
ऐसा घना अब और छाएगा नहीं भ्रम-तम,
नूतन वर्ष आया है!
मधुर बंधुत्व का विस्तार लाया है!
सौगन्ध है — जन-जन सदा जाग्रत रहेगा अब,
संकल्प है — रक्षित सदा भारत रहेगा अब,
नूतन वर्ष आया है!
सुरक्षा का सुदृढ़ आधार लाया है!


वार्षिक गीतमाला (पायदान २० से ११ तक)



वर्ष २००८ के श्रेष्ट ५० फिल्मी गीत (हिंद युग्म के संगीत प्रेमियों द्वारा चुने हुए),पायदान संख्या २० से ११ तक

पिछले अंक में हम आपको ३०वीं पायदान से २१वीं पायदान तक के गीतों से रूबरू करा चुके हैं। उन गीतों का दुबारा आनंद लेने के लिए यहाँ जाएँ।

२० वीं पायदान - पिछले सात दिनों में(रॉक ऑन)

रॉक ऑन उन चुंनिदा फिल्मों में से एक है,जिसमें धुन तैयार होने से पहले गीतकार ने अपने गीत लिखे और फिर संगीतकार ने संगीत पर माथापच्ची की है, अमूमन इसका उल्टा होता है। गीत के बोल लीक से हटकर हैं। गाने की पहली पंक्ति हीं इस बात को पुख्ता करती है(मेरी लांड्री का एक बिल)। "दिल चाहता है","लक्ष्य", "डान" जैसी फिल्में बना चुके फरहान अख्तर ने इस फिल्म के जरिये अपने एक्टिंग कैरियर की शुरूआत की है। "अर्जुन रामपाल" को छोड़कर इस फिल्म में फिल्म-जगत का कोई भी नामी कलाकार न था,फिर भी "राक आन" बाक्स-आफिस पर अपना परचम लहराने में सफल हुई। इस फिल्म के सारे गीतों में संगीत दिया है शंकर-अहसान-लाय की तिकड़ी ने तो बोल लिखे हैं फरहान के पिता और जानेमाने लेखक एवं शायर जावेद अख्तर ने। इस गाने को गाया है खुद फरहान ने।



१९ वीं पायदान - खुदा जाने(बचना ऎ हसीनों)

यूँ तो इस फिल्म में रणबीर-दीपिका के सारे दृश्य सिडनी में फिल्माये गये हैं,लेकिन इस गाने की शुटिंग इटली के विशेष एवं चुने हुए लोकेशन्स पर की गई है। मनमोहक सीनरी के मोहपाश में बंधी दीपिका खुद इस बात का बखान करती नहीं थकती। अनविता दत्त गुप्तन की लेखनी का जादू भी कमाल का है और उस पर से विशाल-शेखर के संगीत का तिलिस्म। लेकिन इस गाने की खासियत और प्रमुख यु०एस०पी० है के०के० की आवाज। ऊपर के सुरों पर के०के० की आवाज नहीं फटती,जो अमूमन बाकी गायकॊं के साथ होता है।"एक लौ" फेम शिल्पा राव ने इस गाने में के०के० का बखूबी साथ दिया है।


१८ वीं पायदान - तू राजा की राजदुलारी(ओए लकी लकी ओए)

जबर्दस्त एवं अप्रत्याशित पब्लिक वोटिंग ने इस गाने को १८वीं पायदान पर पहुँचाया है। राजबीर की आवाज अलग ढर्रे की है,इसलिए कहा नहीं जा सकता कि किसे पसंद आ जाए या फिर कौन नापसंद कर जाए। मंगे राम ने इसके बोल लिखे हैं तो संगीत स्नेहा खनवल्कर का है। इस गीत को अभय देओल एवं नीतु चंद्रा पर बेहतरीन तरीके से फिल्माया गया है।


१७ वीं पायदान - फ़लक तक चल(टशन)

इस गाने के साथ उदित नारायण बहुत दिनों बाद सेल्युलायड पर नज़र आए। वैसे दिल को छूते बोल और मधुर संगीत से सजे गानों के लिए उदित नारायण परफेक्ट च्वाइस हैं। इस गाने में उनका साथ दिया है चुपचुप के(बंटी और बब्ली) और बोल न हल्के-हल्के(झूम बराबर झूम) फेम महालक्ष्मी अय्यर ने। अक्षय और करीना पर फिल्माया गया यह गीत निस्संदेह "टशन" का सबसे यादगार गीत है। इस गाने के बोल लिखे हैं कौसर मुनीर ने तो संगीत से सजाया है विशाल-शेखर की जोड़ी ने।


१६ वीं पायदान - पप्पू कान्ट डांस(जाने तू या जाने ना)

"लव के लिए साला कुछ भी करेगा" लिखकर फिल्म-इंडस्ट्री में प्रसिद्ध हुए अब्बास टायरवाला "पप्पू कान्ट डांस" से अपनी पुरानी शैली को दुहराते प्रतीत होते हैं। गाने के बोल कालेज जाने वाली जनता को आकर्षित करने में सफल है और गाने की तर्ज पार्टियों में लोगों को थिरकने पर मजबूर करती है।गाने में अंग्रेजी की पंक्तियाँ ब्लेज़ की हैं तो संगीत ए०आर०रहमान का है ।इस गाने को सात गायकों -अनुपमा देशपांडे, बेनी दयाल, ब्लेज़, दर्शना, मोहम्मद असलम (अजीम-ओ-शान शहंशाह फेम), सतीश सुब्रमन्यम एवं तन्वी, ने अपनी आवाजें दी है ।


१५ वीं पायदान - हाँ तू है(जन्नत)

इस गाने की भी सफलता का मुख्य श्रेय के०के० को जाता है। इस गाने में नब्बे की दशक के नदीम-श्रवण की धुनों की हल्की-सी छाप दीखती है। प्रीतम का संगीत इस गाने को रिवाइंड करके सुनने को बाध्य करता है। गाने के बोल लिखे हैं सईद कादरी ने। वैसे भट्ट कैंप के बारे में यह प्रचलित है कि फिल्म कैसी भी हो, फिल्म के गाने दर्शनीय एवं श्रवणीय जरूर होते हैं। पर्दे पर इमरान हाशमी एवं सोनल चौहान की मौजूदगी इस गाने को दर्शनीय बनाने में कहीं से भी कमजोर साबित नहीं होती।


१४ वीं पायदान - सोचा है(रॉक ऑन)

आसमां है नीला क्यों,पानी गीला-गीला क्यों, सरहद पर है जंग क्यों, बहता लाल रंग क्यॊं....... ऎसे प्रश्न लेकर जावेद अख्तर पहले भी कई बार आ चुके हैं। इस बार अलग यह है कि इन बातों की नैया की पतवार थामी है रौक म्युजिक ने। "राक आन" के आठ गानों में से पाँच गानॊं में पार्श्व गायन किया है स्वयं नायक फरहान ने। इस गाने में भी फरहान अख्तर की हीं आवाज़ है और रौक धुन से सजाया है शंकर-अहसान-लाय ने। वाकई फरहान अख्तर, अर्जुन रामपाल, ल्युक केनी और पूरब कोहली की रौक बैंड "मैजिक" का मैजिक बाक्स-आफिस के सर चढकर बोलता दिखा।


१३ वीं पायदान - ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा(जोधा-अकबर)

जोधा-अकबर फिल्म के लेखक "हैदर अली" चाहते थे कि इस फिल्म में उनकी कैमियो इंट्री हो,लेकिन माकूल रोल नहीं मिल रहा था। तभी फिल्म के निर्देशक "आशुतोष गोवारिकर" ने सुझाया कि "ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा" गाने में जो दरवेशों की टोली आती है,उसमें "हैदर अली" सबसे आगे रह सकते हैं और पूरा का पूरा गाना उन्हीं पर फिल्माया जा सकता है। विचार अच्छा लगा और ए०आर०रहमान की आवाज़ को "हैदर अली" का शरीर मिल गया। यह तो थी इस गाने के फिल्मांकन के पीछे की कहानी, अब बात करें गाने की तो गाने का संगीत दिया है "मोज़ार्ट आफ मद्रास" ए०आर०रहमान ने एवं बोल लिखे हैं जावेद अख्तर ने। यह गाना ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती और हज़रत निजामुद्दीन औलिया को समर्पित है। "तेरे दरबार में ख़्वाजा , सर झुकाते हैं औलिया...चाहने से तुझको ख़्वाजा जी मुस्तफ़ा को है चाहा......."


१२ वीं पायदान - तुझमें रब दीखता है(रब ने बना दी जोड़ी)

शायद हीं कोई संगीत-प्रेमी होगा, जिसने फिल्म "अनवर" का गीत "आँखें तेरी" न सुना हो और जिसे यह गीत पसंद न हो। "रूप कुमार राठौर" की आवाज़ का यही असर है, जो आसानी से नहीं उतरता। फिल्म "वीर-ज़ारा" के "तेरे लिए" में लता मंगेशकर के साथ रूप कुमार राठौर की जुगलबंदी को कौन भुला सकता है। हाल में हीं प्रदर्शित हुई "रब ने बना दी जोड़ी" का यह गाना भी इसी खासियत के कारण चर्चा में है। वैसे इस गाने की प्रसिद्धि में एक बड़ा हाथ सलीम-सुलेमान के रूहानी संगीत और जयदीप साहनी( चख दे इंडिया फेम) के सरल एवं सुलझे हुए शब्दों का भी है। इस गाने का फिल्मांकन भी बड़ी हीं खूबसूरती से किया गया है।


११ वीं पायदान - कहने को जश्ने-बहारां है(जोधा-अकबर)

एक बार फिर ए०आर०रहमान। "कहने को जश्ने-बहारां है" सुनने वालों को सोनू निगम की आवाज़ का संदेह होना लाज़िमी है। दर-असल "जावेद अली" की आवाज़ सोनू निगम से बहुत हद तक मिलती है और इसी कारण जल्द हीं असर करती है। फिल्म-इंडस्ट्री में आए हुए जावेद अली के सात साल हो गए,लेकिन पहचान तब मिली जब उन्होंने "नक़ाब" का "एक दिन तेरी राहों में" गाया। फिर तो उनके खाते में कई सारे गाने जमा होते गए। "कहने को जश्ने-बहारां है" को अपने संगीत से सजाया है ए०आर०रहमान ने और बोल लिखे हैं जावेद अख्तर ने। नायक के दिल के दर्द और नायिका से दूरी को बेहतरीन तरीके से इस गाने में दर्शाया गया है। वाकई मुगलकालीन उर्दू का अंदाज-ए-बयाँ है कुछ और....।



साल २००८ के सर्वश्रेष्ठ १० गाने लेकर हम जल्द हीं हाज़िर होंगे। तब तक इन गानों का आनंद लीजिए।



चुनिए वर्ष के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार, आवाज़ की टीम द्वारा चुने गए इन ४ नामों में से -

ऐ आर रहमान फ़िल्म जोधा अकबर के लिए

ऐ आर रहमान फ़िल्म जाने तू या जाने न के लिए

शंकर एहसान लॉय फ़िल्म रॉक ऑन के लिए और

सलीम सुलेमान फ़िल्म रब ने बना दी जोड़ी के लिए

या कोई अन्य

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