Tuesday, September 28, 2010

अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम.....जब अल्लाह और ईश्वर एक हैं तो फिर बवाल है किस बात का, शांति का सन्देश देता लता जी का ये भजन



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 493/2010/193

ज २८ सितंबर, यानी सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर का जन्मदिन। लता जी को उनके ८२-वें वर्षगांठ पर हम अपनी ओर से, 'आवाज़' की ओर से और 'आवाज़' के सभी पाठकों व श्रोताओं की ओर से दे रहे हैं जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ। जिस तरह से उन्होंने अपनी आवाज़ के ज़रिए हम सब की ज़िंदगी को मधुरता से भर दिया है, ईश्वर उन्हें दीर्घायु करें और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें, ऐसी हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। 'रस माधुरी' शृंखला की आज तीसरी कड़ी में बारी है शांत रस की। शांत रस मन का वह भाव है, वह स्थिति है जिसमें है सुकून, जिसमें है चैन, जिसमें है शांति। किसी भी तरह का हलचल मन को अशांत करती है। इसलिए यह रस तभी जागृत हो सकती है जब हम ध्यान और साधना के द्वारा अपने मन को काबू में रखें, हर चिंता को मन से दूर कर एक परम शांति का अनुभव करें। आजकल मेडिटेशन की तरफ़ लोगों का ध्यान बढ़ गया है। जिस तरह की भागदौड़ की ज़िंदगी आज का मनुष्य जी रहा है, एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़, जीवन में सफल बनने का प्रयास, और उस प्रयास में अगर किसी चीज़ को बलिवेदी पर चढ़ाया जा रहा है तो वह है शांति और सुकून। इसलिए आज लोग मेडिटेशन के द्वारा इस विचलित मनस्थिति से उबरने का प्रयास कर रहे है। दोस्तों, शुरु शुरु में हमने यह सोचा था कि इस रस पर आधारित हम आपको फ़िल्म 'रज़िया सुल्तान' का गीत "ऐ दिल-ए-नादान" सुनवएँगे। इस गीत का जो संगीत है, जो ठहराव है, उससे मन शांत तो हो जाता है, लेकिन अगर इसके लफ़्ज़ों पर ग़ौर करें तो यह मन की व्याकुलता, और हलचल का ही बयान करता है। गाने का रीदम भले ही शांत हो, लेकिन ये शब्द एक अशांत मन से निकल रहे हैं। इसलिए शांत रस के लिए शायद यह गीत सटीक ना हो। इसलिए हमने गीत बदलकर फ़िल्म 'हम दोनों' का सुकूनदायक "अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम" कर दिया। आज भी बहुत से लोग समझते हैं कि यह एक ग़ैर फ़िल्मी पारम्परिक भजन है। बस यही है इस भजन की खासियत और साहिर लुधियानवी की भी, जिन्होंने इस अमर भजन की रचना की। यह भजन नंदा पर फ़िल्माया गया है जो मंदिर में बैठकर अन्य भक्तजनों के साथ गाती हैं।

'हम दोनों' १९६१ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण किया था देव आनंद ने अपने नवकेतन के बैनर तले। फ़िल्म का निर्देशन किया अमरजीत ने। निर्मल सरकार की कहानी पर इस फ़िल्म के संवाद व पटकथा को साकार किया विजय आनंद ने। देव आनंद, नंदा और साधना अभिनीत इस फ़िल्म में संगीत था जयदेव का। इस फ़िल्म में लता जी के गाए दो भजन ऐसे हैं कि जो फ़िल्मी भजनों में बहुत ही ऊँचा मुक़ाम रखते हैं, जिनमें एक तो आज का प्रस्तुत भजन है और दूसरा भजन है "प्रभु तेरो नाम जो ध्याये फल पाए"। लता जी ने कुछ ऐसे डूब कर इन्हें गाया है कि इन्हें सुनकर ही मन पावन हो जाता है। "अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम" भजन की ख़ासीयत है इसकी धर्मनिरपेक्षता। राग गौड़ सारंग पर आधारित यह गीत जब भी सुनें तो मन शांत हो जाता है, सुकून से भर जाता है दिल। बाहर की तेज़ रफ़्तार भरी ज़िंदगी के बीच भी जैसे यह गीत आज भी हमें एक अलग ही चैन-ओ-सुकून की दुनिया में लिए जाता है। १९६२ के चीनी आक्रमण के समय दिल्ली में आयोजित सिने कलाकारों की विशाल मंचीय आयोजन का आरम्भ लता ने इसी भजन से किया था। इस गीत की रेकॊर्डिंग् की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। श्री पंकज राग की किताब 'धुनों की यात्रा' से हमें पता चला कि जिस तरह से उन दिनों लता और सचिन दा के बीच मनमुटाव चल रहा था, तो सचिन दा के सहायक होने की वजह से जयदेव साहब भी इसमें चाहे अनचाहे शामिल हो गए थे। शुरु शुरु में इस रचना को एम. एस. सुब्बूलक्ष्मी से गवाने की योजना थी, पर बाद में लता का नाम तय हुआ। अब लता जयदेव के लिए कैसे गातीं जिनके साथ घोर मनमुटाव चल रहा था! जब रशीद ख़ान को लता के पास भेजा गया तो उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया। पर फिर जब लता को यह संदेश पहुँचाया गया कि यदि इस गीत को आप नहीं गाएँगी तो इस फ़िल्म से ही जयदेव को हटाकर किसी और को ले लिया जाएगा, तो लता हिचकीं। वे यह कभी नही चाहती थीं कि उनके कारण किसी का मौका छिन जाए। साथ ही यह भी लता सुन चुकी थीं कि जयदेव ने इस गाने की अलौकिक सी कम्पोज़िशन की है। बहरहाल कारण जो भी हो फ़िल्म संगीत को एक मीलस्तम्भ जैसी रचना तो मिल ही गई। पंडित जसराज ने स्वयं स्वीकार किया है कि इस भजन को रात में सुनकर उनकी आँखों में आँसू आ गए और अभिभूत होकर वे आधी नींद से जाग गए। और लता ने भी १९६७ में घोषित अपने दस सर्वश्रेष्ठ गीतों में तो इसे शामिल किया। तो लीजिए दोस्तों, आप भी सुनिए और हमें पूरा विश्वस है कि अगर आपका मन अशांत है तो इसे सुन कर आपको शांति मिलेगी, सुकून मिलेगा। लता जी को एक बार फिर से जनमदिन की ढेरों शुभकामनाएँ। कल फिर मिलेंगे, नमस्कार!



क्या आप जानते हैं...
कि 'हम दोनों' फ़िल्म श्याम-श्वेत फ़िल्म थी, लेकिन जून २००७ में इसका रंगीन वर्ज़न जारी किया गया है।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. हास्य रस की बात हो और इस हरफ़नमौला फ़नकार की बात हो, एक ही बात है। किस गायक की आवाज़ में है कल का गीत? १ अंक।
२. गीत के मुखड़े में दो पक्षियों के नाम आते हैं। गीत के बोल बताएँ। २ अंक।
३. यह उस फ़िल्म का गीत है जिसके शीर्षक के दोनों शब्द अंग्रेज़ी के हैं। फ़िल्म का नाम बताएँ। ३ अंक।
४. गीतकार और संगीतकार के नाम बताएँ। दोनों नाम सही होने पर ही अंक मिलेंगे। ४ अंक।

पिछली पहेली का परिणाम -
वाह सब तीरंदाज़ कामियाब रहे हमारे....बहुत बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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5 श्रोताओं का कहना है :

Pawan Kumar का कहना है कि -

sailendra,salil chodhari

pawan kumar

Pushpendra Singh "Pushp" का कहना है कि -

Half Ticket

pankaj का कहना है कि -

chil chil chillati jaye

शरद तैलंग का कहना है कि -

मैनें बाद में पढ़ा कि मैं भी अब इस पहेली में हिस्सा ले सकता हूँ तब तक ३ उत्तर आ ही गए थे । गीत के बोल सही है चील चील चिल्ला के कजरी सुनाए, झूम झूंम कौआ भी ढोलक बजाए ।
गायक : किशोर कुमार

AVADH का कहना है कि -

किशोर दा के अलावा और कौन हो सकता है अद्भुत हास्य रस का गायक
अवध लाल

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