ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 509/2010/209
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! इन दिनों इस स्तंभ में आप सुन रहे हैं फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है'। आज इस शृंखला की नौवी कड़ी में हम चुन लाये हैं मुकेश की आवाज़ में फ़िल्म 'धरती कहे पुकार के' का एक ऐसा गीत जिसमें है विरोधाभास। विरोधाभास इसलिए कि गीत के बोलों में तो ख़ुशी की बात की जा रही है, लेकिन गायकी के अदाज़ में करुण रस का संचार हो रहा है। "ख़ुशी की वह रात आ गयी, कोई गीत जगने दो, गाओ रे झूम झूम"। इस तरह के गीतों का हिंदी फ़िल्मों में कई कई बार प्रयोग हुआ है। सिचुएशन कुछ इस तरह की होती है कि नायिका की शादी नायक के बजाय किसी और से हो रही होती है, और शादी के उस जलसे में नायक नायिका को शुभकामनाएँ देते हुए गीत गाता तो है, लेकिन उस गीत में छुपा होता है उसके दिल का दर्द। कुछ ऐसे ही गीतों की याद दिलाएँ आपको? फ़िल्म 'पारसमणि' का गीत "सलामत रहो, सलामत रहो", फ़िल्म 'मिलन' में मुकेश का ही गाया हुआ कुछ इसी तरह का एक गीत "मुबारक़ हो सब को समा ये सुहाना, मैं ख़ुश हूँ मेरे आँसुओं पे ना जाना, मैं तो दीवाना दीवाना दीवाना", और फिर किशोर दा ने भी तो फ़िल्म 'एक बार मुस्कुरा दो' में नय्यर साहब के कम्पोज़िशन में गाया था "रूप तेरा ऐसा दर्पण में ना समाये... पलक बंद कर लूँ कहीं छलक ही ना जाये"। फ़िल्म 'धरती कहे पुकार के' के प्रस्तुत गीत को लिखा है मजरूह सुल्तानपुरी ने, और एल. पी ने क्या ग़ज़ब का संगीत संयोजन किया है। दिल को छू लेने वाले विदाई के सुर में सजे शहनाई के करुण पीसेस और उस पर ढोलक के ठेके, गीत को सुनते हुए ऐसा लगता है कि जैसे किसी की शादी की महफ़िल में ही हम शरीक हो गये हों। गाने का जो रीदम है, उसमें एल.पी की ख़ास शैली और स्टाइल सुनने को मिलता है। दोस्तों, हमने पहले भी शायद कभी कहा होगा कि एल.पी, कल्याणजी-आनंदजी और आर.डी. बर्मन, इन तीनों के स्वरबद्ध गीतों में हम फ़रक कर सकते हैं उनके रीदम पैटर्ण को समझ कर। इस गीत का जो रीदम पैटर्ण है, वो ख़ास ख़ास एल.पी का स्टाइल है, यह कहने की नहीं बल्कि महसूस करने की बात है। राग यमन की छाया लिए इस गीत में मुकेश जी ने भी क्या दर्द डाला है कि जैसे गीत उनकी आवाज़ पा कर जी उठा हो।
'धरती कहे पुकार के' सन् १९६९ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण किया था दीनानाथ शास्त्री ने। दुलाल गुहा निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे जीतेन्द्र, नंदा, संजीव कुमार, निबेदिता, कन्हैयालाल, दुर्गा खोटे आदि। ध्वनि विभाग में थे रॊबिन चटर्जी जो एक मशहूर रेकॊर्डिस्ट रहे हैं। अनगिनत फ़िल्मों के गीत और बैकग्राउण्ड म्युज़िक उन्होंने रेकॊर्ड किये हैं एक लम्बे अरसे तक। उनकी पहली फ़िल्म बतौर सॊंग् रेकॊर्डिस्ट थी १९५१ की 'बाज़ी', और आख़िरी फ़िल्म थी १९९१ की 'पत्थर'। भले ही उनका नाम बतौर रेकॊर्डिस्ट ज़्यादा हुआ, उन्होंने ४० के दशक के कई बांगला फ़िल्मों में संगीत भी दिया है। ख़ैर, वापस आते हैं लक्ष्मी-प्यारे पर। विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' शृंखला के उस इंटरव्यु में जब कमल शर्मा ने प्यारेलाल जी से यह पूछा कि "मेल सिंगर्स की बात करें तो मुकेश जी ने भी आप के लिये...", उन्होंने बस इतना ही कहा था कि प्यारेलाल जी कह उठे - "देखिये, 'एम' लेटर जो है ना, ये सब सिंगर्स के लिए दिया गया है। आप किसी भी सिंगर का नाम लीजिए, लता मंगेशकर लीजिए, आशा मंगेशकर लीजिए, मोहम्मद रफ़ी हैं, महेन्द्र कपूर हैं, मुकेश हैं, तलत महमूद हैं। तो 'एम' लेटर जो है, इनका मध्यम जो है वह 'प्योर' है। और म्युज़िक भी जुड़ा हुआ है, 'म्युज़िक' में भी 'एम' है। वही बता रहा हूँ, मध्यम, मैं बहुत मानता हूँ इन सब चीज़ों को। ल ता मं गे श क र, कितने हो गये, सात, यानी सात सुर।" दोस्तों, प्यारेलाल जी तो मुकेश से लता जी पर आ गये। ख़ैर कोई बात नहीं, जब यह बात आ ही गयी है तो यहाँ आपको यह बता दें कि कल के गीत में आप मुकेश और लता, दोनों की आवाज़ें सुन पायेंगे। लेकिन फिलहाल आइए मुकेश जी की एकल आवाज़ में सुनते हैं "ख़ुशी की वह रात गयी"। बेहद ख़ूबसूरत गीत है और शायद आपका मनपसंद भी, है न?
क्या आप जानते हैं...
कि लक्ष्मीकांत की मई, १९९८ में जब मृत्यु हो गई उस समय एल.पी की जोड़ी गिरीश कर्नाड की 'स्वराजनामा' और 'आम्रपाली' जैसी फ़िल्मों के लिए काम कर रहे थे, लेकिन यह काम अधुरा ही रह गया। लक्ष्मीकांत की मृत्यु के बाद प्यारेलाल ने भी संगीत देने का काम छोड़ दिया।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 09 /शृंखला ०१
ये धुन उस गीत के प्रिल्यूड की है, सुनिए -
अतिरिक्त सूत्र - किसी अतिरिक्त सूत्र की जरुरत नहीं है इस गीत को पहचानने के लिए, फिर भी बता दें कि लता मुकेश के स्वरों में है ये
सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - इस मशहूर फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - गीत के ऒरकेस्ट्रेशन में उस साज़ का प्रॊमिनेण्ट इस्तेमाल हुआ है जिस साज़ में प्यारेलाल को महारथ हासिल है। साज बताएं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
श्याम कान्त जी ने इस शृंखला के लिए अजय बढ़त बना ली है अब, बहुत बधाई....अमित जी और गुड्डू जी को भी...शरद जी कहाँ हैं इन दिनों
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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15 श्रोताओं का कहना है :
3- Violin
2- SHOR
1- Santosh Anand
waise to ye BLOCKBUSTER gaana hai par mujhe jeevan chalne ka naam jyada pasand hai.
Q3- Muh se bajaane waali pipiya jo Manoj Kumar bajaate the Aisa hi SHOLAY mein Amit ji ne bajaai thi.
Waise mujhe pura naam yaad nahi hai (Wadyayantra ka)
Agar main sahi hun to mujhe Vijeta ghoshit avasya kare aur Sahi naam bhi bataayen.
Dhanyavaad.
waah mujhe aaj hee is prtiyogita ke bare me pata chala ab mai bhee suru kar raha hoon ,halanki ans. aa chuke hain
shyam kant ji ajey hone ki badhai ho aapko
badhai ho shyam kant ji
good bhaiyya
q2.shor
q2.shor(jindagi aur kuch .....)
q1.santosh anand
Muh se bajaane waali pipiya jo Manoj Kumar bajaate the Aisa hi SHOLAY mein Amit ji ne bajaya tha..
oose mouth organ kahte hain pr ye aawaj violin ki hai 'ek pyar ka ngma hai maujo ki rawaani hai'
इस ज़बरदस्त गीत में एक और भी शेर था ...जो शायद किसी सिचुअशन में फिट नहीं बैठा ...सो मनोज कुमार जी ने इसे इस्तेमाल नहीं किया !! बाद में अपनी ही अगली फिल्म "रोटी कपड़ा और मकान " में उन्होंने इस शेर को अपने और जीनत के दरम्यान बखूबी इस्तेमाल कर लिया था ! संतोष आनंद का वो खूबसूरत शेर था :-
तुम साथ न दो मेरा , चलना मुझे आता है
हर आग से वाकिफ हूँ , जलना मुझे आता है "
कुछ दिनों तक कोटा के दशहरे मेले में उदघाटन समारोह में मुख्य अतिथि जीनत अमान जी के सामने हमारे ग्रुप के कलाकारों को उनके गानों की प्रस्तुति की तैयारी करवाने तथा फ़िर मेरे साले जी के निधन हो जाने के कारण अहमदाबाद चले जाने के कारण ही गायब रहा । आज ही वापस आया हूँ । कोशिश करूंगा कि अब नियमित उपस्थिति दूँ । धन्यवाद !
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