Tuesday, August 23, 2011

है प्रीत जहाँ की रीत सदा....इन्दीवर साहब ने लिखा ये राष्ट गौरव गान



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 728/2011/168

देशभक्ति भावों से अभिमंत्रित गीतों की श्रृंखला ‘वतन के तराने’ की आठवीं कड़ी में हम आपका हार्दिक स्वागत करते हैं। आज हम आपसे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक ऐसे व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे, जिसने अपने बौद्धिक बल से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये। श्रृंखला की पिछली कड़ी में हमने आपसे चर्चा की थी कि 1951 में पेशवा बाजीराव का निधन हो गया था। उनके बाद अंग्रेजों ने दत्तक पुत्र नाना साहब को उत्तराधिकारी तो मान लिया, किन्तु पेंशन देना स्वीकार नहीं किया। अंग्रेजों की इस अन्यायपूर्ण कार्यवाही के विरुद्ध लार्ड डलहौजी को कई पत्र लिखे गए, किन्तु कोई परिणाम नहीं निकला। ऐसी स्थिति में उन्होने अपने चतुर वकील अजीमुल्ला खाँ को इंग्लैण्ड भेजा, ताकि वहाँ की अदालत में पेंशन के लिए मुकदमा दायर किया जा सके। आगे चल कर 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में अज़ीमुल्ला खाँ की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो गई थी। इंग्लैण्ड की अदालत में अज़ीमुल्ला खाँ, नाना साहब की पेंशन तो बहाल न करा सके, किन्तु इस मुकदमे के बहाने समृद्ध भारतीय परम्परा, बौद्धिक सम्पदा और संस्कृति का पूरे इंग्लैण्ड में भरपूर प्रचार किया। अपने सुदर्शन व्यक्तित्व और वाकपटुता के बल पर अज़ीमुल्ला खाँ शीघ्र ही इंग्लैण्ड के बुद्धिजीवी वर्ग में अत्यन्त लोकप्रिय हो गए थे।

इंग्लैण्ड में बात न बनी तो अज़ीमुल्ला ने वापस भारत लौटने का निश्चय किया। परन्तु वे इंग्लैण्ड से चल कर पहले रूस पहुँचे। वहाँ के शासक ज़ार से मिले और रूस की राजनैतिक स्थिति का अध्ययन किया। भारत लौट कर वे नाना साहब के प्रमुख सलाहकार बन गए। 1857 की क्रान्ति के लिए जब नाना साहब तीर्थयात्रा के बहाने क्रान्तिकारी शक्तियों को एकजुट करने निकले तो उनके साथ अज़ीमुल्ला खाँ भी थे। मंगल पाण्डेय के बलिदान के बाद विभिन्न स्थानों पर सैनिक छावनियों में क्रान्ति की ज्वाला धधकने लगी थी। कानपुर छावनी में 4 जून की रात तीन फायर का संकेत होते ही सिपाही अपनी-अपनी बैरक से बाहर निकल आए और नवाबगंज पहुँचकर नाना साहब,अज़ीमुल्ला खाँ और तात्या टोपे से जा मिले। यहाँ इन लोगों ने अंग्रेजों के खजाने पर कब्जा कर लिया। सुबह होने से पहले कानपुर अंग्रेजों के अधिकार से मुक्त हो चुका था।यह पूरी योजना अज़ीमुल्ला खाँ की थी।

अज़ीमुल्ला खाँ केवल कुशल योजनाकार ही नहीं, कुशल पत्रकार और शायर भी थे। प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम के दौरान उन्होने ‘पयाम-ए-आज़ादी’ नामक अखबार निकाला। इस अखबार के उग्र तेवर से अंग्रेज़ परेशान हो गए थे। इसके एक अंक में अज़ीमुल्ला खाँ का एक गीत प्रकाशित हुआ था जो शीघ्र ही क्रान्तिकारियों का ‘झण्डा-गीत’ बन गया। बाद में अंग्रेजों ने ‘पयाम-ए-आज़ादी’ के उस अंक को जब्त कर लिया और इस गीत पर प्रतिबन्ध लगा दिया। आइए, क्रान्ति के सिपाहियों में रक्त-संचार करने वाले और अपने देश के वैभव का गुणगान करने वाले ‘झण्डा-गीत’ के तेवर को देखा जाए-

हम हैं इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा।
ये है हमारी मिल्कियत, जन्नत से भी प्यारा।
इसकी रूहानियत से रोशन है ये जग सारा।
कितना क़दीम, कितना नईम, सब दुनिया से न्यारा,
करती है जरखेज जिसे, गंग-ओ-जमुन की धारा।
ऊपर बर्फ़ीला पर्वत है पहरेदार हमारा,
नीचे साहिल पर बजता, सागर का नक्कारा।
आया फिरंगी दूर से, ऐसा मन्तर मारा,
लूटा दोनों हाथ से प्यारा वतन हमारा।
आज शहीदों ने है तुमको अहले वतन ललकारा,
तोड़ो गुलामी की जंजीरें बरसाओ अंगारा।
हिन्दू मुसलमान सिख हमारा भाई-भाई प्यारा,
यह है आज़ादी का झण्डा, इसे सलाम हमारा।


दोस्तों, यह अज़ीमुल्ला खाँ रचित सुप्रसिद्ध ‘झण्डा-गीत’ है, जिसके उग्र तेवर से डर कर अंग्रेजों ने इसे प्रतिबन्धित कर दिया था। और अब हम आपको एक ऐसा गीत सुनवाते हैं जिसमे भारत का गौरव-गान है। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान अज़ीमुल्ला खाँ ने जिस प्रकार इंग्लैंड की धरती पर जाकर अपने देश का गुण-गान किया था, ठीक उसी प्रकार अभिनेता, लेखक और निर्देशक मनोज कुमार ने 1970 की अपनी फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ में एक गीत के माध्यम से भारतीय गौरव का प्रसार इंग्लैंड की धरती पर किया था। कवि इन्दीवर के गीत को कल्याणजी आनन्दजी ने संगीतबद्ध किया है और इसे महेन्द्र कपूर ने स्वर दिया है। लीजिए, आप भी सुनिए देश के इस गौरव-गान को-



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - गीत के गीतकार को लगातार ३ वर्षों को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर प्राप्त हुआ था साठ के दशक में.
सूत्र २ - संगीतकार वो हैं जिनके साथ इन्होने सबसे अधिक काम किया है.
सूत्र ३ - पहले अंतरे में शब्द है -"जन्नत" .

अब बताएं -
गीतकार बताएं - ३ अंक
गायक बताएं - २ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी आपको वापस देखकर बेहद बेहद खुशी हुई आशा है अब आप स्वस्थ लाभ पा चुकी होंगी पूरी तरह. इश्वर आपको लंबी उम्र दे. और हाँ हमारे रेडियो को शोर तो न कहिये, बहुत मेहनत करते हैं इसके पीछे, वैसे थोडा सा ढूंढिए इसे बंद करने का ओप्शन भी आपको मिल जायेगा :)

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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6 श्रोताओं का कहना है :

Amit का कहना है कि -

Shakeel Badayuni

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') का कहना है कि -

अच्छी जानकारी....
1951 में पेशवा बाजीराव का निधन हो गया था।
(1951)यहाँ शायद सुधार की आवश्यकता है...
सादर बधाईयाँ...

कृष्णमोहन का कहना है कि -

संजय जी,
आपने बिलकुल ठीक कहा है। पेशवा बाजीराव का निधन वास्तव में 1851 में हुआ था। यह मेरे टाइप करने की त्रुटि है, जिसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।

AVADH का कहना है कि -

गीत के संकेत शब्द: " ... कितने वीरानों से गुज़रे हैं तो जन्नत पायी है..."
संगीतकार: नौशाद साहेब
फिल्म: लीडर
यह गीत नायक दिलीप कुमार पर फिल्माया गया था.
और ज़ाहिर है इस गीत के गायक को सभी पहचानते हैं.
अवध लाल

इन्दु पुरी का कहना है कि -

अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नही' रफी साहब ने गया है.
यूँ इस फिल्म का एक शरारती गाना मुझे बहुत पसंद है.कौन सा???? क्यों बताऊँ? आप लोगो से मोहोब्बत करते हूँ लड़ाई भी करूंगी .
क्या करू?ऐसिच हूँ मैं तो हा हा

इन्दु पुरी का कहना है कि -

अरे सॉरी सॉरी सॉरी.लो कान पकड़ लिए माफ कर दो. अब गाना सुनना चहुँ तो..........रेडियो की आवाज डिस्टर्ब नही करेगी?
गोस्वामीजी की नींद डिस्टर्ब हुई और .........उनका नेट बंद फरमान जारी हा हा हा
जानती हूँ जॉब आवर्स के बाद इस काम को करने के लिए आप लोग कितनी मेहनत करते हैं और समय देते हैं.यूँ मैं आ दो तीन पहले ही गई थी आपने मेरे जवाब पर ध्यान ही नही दिया.नम्बर भी नही दिए.उससे एक बार और पहले मैंने सबको विश किया था याद किया था उससे पहले भी पर........अब???गुस्सा न दिलाओ.अभी झगडा हो जाएगा अपना.
ऐसिच हूँ मैं तो -झगड़ने के लिए तैयार रहती हूँ हमेशा........आप सबसे.
हा हा हा

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