Thursday, October 20, 2011

माँ ही गंगा...जात्रागान शैली का ये गीत नीरज की कलम से



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 770/2011/210

पूर्वी और पुर्वोत्तर भारत के लोक-धुनों और शैलियों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'पुरवाई' की अन्तिम कड़ी में आप सभी का मैं सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ फिर एक बार स्वागत करता हूँ। दोस्तों, सिनेमा के आने से पहले मनोरंजन का एक मुख्य ज़रिया हुआ करता था नाट्य, जो अलग अलग प्रांतों में अलग अलग रूप में पेश होता था। नाट्य, जिसे ड्रामा या थिएटर आदि भी कहते हैं, की परम्परा कई शताब्दियों से चली आ रही है इस देश में, और इसमें अभिनय, काव्य और साहित्य के साथ साथ संगीत भी एक अहम भूमिका निभाती आई है। प्राचीन भारत नें संस्कृत नाटकों का स्वर्ण-युग देखा। उसके बाद ड्रामा का निरंतर विकास होता गया। जिस तरह से अलग अलग भाषाओं का जन्म हुआ और हर भाषा का अपने पड़ोसी प्रदेश के भाषा के साथ समानताएँ होती हैं, ठीक उसी प्रकार अलग अलग ड्रामा और नाट्य शैलियाँ भी विकसित हुईं एक दूसरे से थोड़ी समानताएँ और थोड़ी विविधताएँ लिए हुए। पूर्वोत्तर के आसाम राज्य में “ओजापाली” का चलन हुआ, तो बंगाल में "जात्रा-पाला" का, पंजाब में "स्वांग" तो कश्मीर में "जश्न"। केरल के कथाकली नृत्य शैली से प्राचीन लोक-कथायों को साकार करने की परम्परा भी बहुत पुरानी है। बंगाल में प्रचलित 'जात्रा' का शाब्दिक अर्थ है यात्रा। मूलत: जात्रा में पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाओं को स्टेज पर नाट्य के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है। संवाद और गीत-संगीत के माध्यम से जात्रा की अवधि लगभग ४ घंटे की होती है। क्योंकि प्राचीन काल में महिलाओं का नाटक और संगीत में आने नहीं दिया जाता था, इसलिए जात्रा पुरुष कलाकारों द्वारा निभाई जाती है और नारी चरित्र भी पुरुष ही निभाते हैं। १९-वीं सदी से महिलाएँ भी जात्रा के किरदार निभाने लगीं।

जात्रा में काफ़ी नाटकीयता होती है और कलाकार अपने संवाद और गीत ऊंची आवाज़ में बोलते/ गाते हैं। अलग अलग भावों को व्यक्त करने के लिए जात्रा के कलाकार ज़ोर से ज़ोर से हँसते, रोते, गाते, लड़ते हैं। सिनेमा के आने के बाद थिएटर का चलन थोड़ा कम हो गया है ज़रूर, पर ख़ास तौर से ग्रामीण इलाकों में जात्रा का आज भी ख़ूब चलन है। थिएटर कंपनियाँ आज भी गाँवों और छोटे शहरों में डेरा डालती है। जात्रा का मौसम सितम्बर से शुरु होता है; दुर्गा पूजा से जात्रा की शुरुआत होती है और अगले साल मानसून से पहले जाकर समाप्त होती है। यानि कि सितम्बर से लेकर अगले साल मई तक जात्रा आयोजित होते हैं। जात्रा की शुरुआत १६-वीं शताब्दी से मानी जाती है जब श्री चैतन्य महाप्रभु का भक्तिवाद चल रहा था। उस समय भगवान श्री कृष्ण के भक्तगण कीर्तन शैली के संवाद और गीतों के माध्यम से श्रीकृष्ण-नाम गाया करते थे। यहीं से जात्रा की शुरुआत होती है। आधुनिक काल में भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में जात्रा नें जनजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन जात्राओं को 'स्वदेशी जात्रा' कहा जाता था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इप्टा नें भी कई जात्रा स्टेज किए। जात्रा में गाये जाने वाले गीतों को 'जात्रागान' कहते हैं। आज के अंक में हम जो गीत सुनवाने जा रहे हैं वह भी जात्रागान शैली की है। लता मंगेशकर, कमल बारोट, नीलिमा चटर्जी और साथियों की आवाज़ों में यह गीत है फ़िल्म 'मंझली दीदी' का गीतकार नीरज का लिखा हुआ। गीत में लवकुश की गाथा को दर्शाया जा रहा है। यह शरतचन्द्र की प्रसिद्ध उपन्यास पर आधारित मीना कुमारी - धर्मेन्द्र अभिनीत १९६७ की फ़िल्म है जिसमें संगीत था हेमन्त कुमार का। आइए सुना जाये बंगाल के ग्रामीण स्पर्श लिए जात्रा-संगीत पर आधारित यह गीत और इस शृंखला को समाप्त करने की दीजिए मुझे अनुमति, शृंखला के बारे में अपने विचार टिप्पणी में ज़रूर व्यक्त कीजिएगा, नमस्कार!



चलिए अब खेलते हैं एक "गेस गेम" यानी सिर्फ एक हिंट मिलेगा, आपने अंदाजा लगाना है उसी एक हिंट से अगले गीत का. जाहिर है एक हिंट वाले कई गीत हो सकते हैं, तो यहाँ आपका ज्ञान और भाग्य दोनों की आजमाईश है, और हाँ एक आई डी से आप जितने चाहें "गेस" मार सकते हैं - आज का हिंट है -
जगजीत के स्वरों से महकी इस अमर गज़ल के एक शे'र में शब्द आता है -"जहर"

पिछले अंक में
एक बार फिर से बधाई अमित जी
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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6 श्रोताओं का कहना है :

Amit का कहना है कि -

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको

इन्दु पुरी का कहना है कि -

अब मैं क्या बोलू?

Sajeev का कहना है कि -

अभी भी बोल सकते हैं इंदु जी क्योंकि सही जवाब अभी तक आया नहीं है :)

Amit का कहना है कि -

Zahar Deta Hai Mujhe Koi

Sajeev का कहना है कि -

amit ji filmi ghazal hai, behad mashoor

Amit का कहना है कि -

तुम इतना जो मुस्करा रहे हो.

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