Tuesday, January 4, 2011

कितना हसीं है मौसम, कितना हसीं सफर है....जब चितलकर की आवाज़ को सुनकर तलत साहब का भ्रम हुआ शैलेन्द्र को



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 563/2010/263

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार। आज ४ जनवरी है, यानी कि संगीतकार राहुल देव बर्मन की पुण्यतिथि। 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम पंचम को दे रहे हैं श्रद्धांजली। आपको याद होगा पिछले साल इस समय हमने पंचम के गीतों से सजी लघु शृंखला 'दस रंग पंचम के' प्रस्तुत किया था। और इस साल हम याद कर रहे हैं सी. रामचन्द्र को जिनकी कल, यानी ५ जनवरी को पुण्यतिथि है। 'कितना हसीं है मौसम' - सी. रामचन्द्र के गाये और स्वरबद्ध किए गीतों के इस लघु शृंखला की आज तीसरी कड़ी है। शुरुआती दिनों में सी. रामचन्द्र ने कई फ़िल्मों में संगीत दिया जिनमें से कुछ के नाम हैं 'सगाई', 'नमूना', 'उस्ताद पेड्रो', 'हंगामा', 'शगुफ़ा', '२६ जनवरी' वगेरह। पर जिन दो फ़िल्मों के संगीत से वे कामयाबी के शिखर पर पहुँचे, वो दो फ़िल्में थीं 'शहनाई' और 'अलबेला'। जैसा कि कल हमने आपको बताया था कि 'अलबेला' के गीतों ने उस फ़िल्म को चार चांद लगाये। सारे गानें हिट हुए और गली गली गूंजे। सिनेमाघरों में लोग खड़े होकर इन गीतों के साथ झूमने की भी बात मानी जाती है। सी. रामचन्द्र ने अपने संगीत में नये नये प्रयोग किए हैं। गुजराती गरबा को हिंदी फ़िल्म संगीत में पहली बार वही लेकर आये थे, फ़िल्म थी 'नास्तिक' और गीत था "कान्हा बजाये बांसुरी"। फ़िल्म 'शहनाई' में "आना मेरी जान मेरी जान सण्डे के सण्डे" में गोवन संगीत का प्रभाव था, तो 'यासमीन' के "बेचैन नज़र बेताब जिगर" में अरबियन संगीत की मिठास और मैण्डोलिन यंत्र का दिलकश इस्तमाल किया। दोस्तों, आपको याद होगा "सण्डे के सण्डे" हमने ५९-वीं कड़ी मे सुनवाया था। उसके बाद सी. रामचन्द्र के सुमधुर संगीत से सजी एक और फ़िल्म आयी थी 'आज़ाद'। साल था १९५५। आज ५० बरसों के बाद भी इसके गीतों में वही ताज़गी है, वही कशिश बरकरार है। इस फ़िल्म का भी एक गीत "अपलम चपलम" हमने ३९३-वीं कड़ी में सुनवाया है। लेकिन आज इस फ़िल्म से लता और चितलकर का गाया एक और मशहूर गीत हम सुनने जा रहे हैं।

फ़िल्म 'आज़ाद' सी. रामचन्द्र को कैसे मिली, इसके पीछे एक मज़ेदार क़िस्सा है। प्रोड्युसर एस. एम. एस. नायडू ने पहले संगीतकार नौशाद को इस फ़िल्म के संगीत का उत्तरदायित्व देना चाहा, पर उन्होंने नौशाद साहब के सामने शर्त रख दी कि एक महीने के अंदर सभी ९ गीत उन्हें तैयार चाहिए। नौशाद को यह शर्त मंज़ूर नहीं हुई। तब नायडू साहब ने कई और संगीतकारों से सम्पर्क किया, नय्यर साहब से भी मिले, पर कोई भी तैयार नही हुआ। आख़िरकार चुनौति स्वीकारी सी. रामचन्द्र ने। सच में उन्होंने एक महीने के अंदर सारे गानें रेकॊर्ड कर लिए और सभी गीत एक से बढ़कर एक साबित हुए। यही नहीं, फ़िल्म 'आज़ाद' में सी. रामचन्द्र ने लता मंगेशकर के साथ एक युगल गीत भी गाया और यही गीत है आज के इस अंक की शान। "कितना हसीं है मौसम, कितना हसीं सफ़र है, साथी है ख़ूबसूरत, यह मौसम को भी ख़बर है"। अब दोस्तो, इस गीत से जुड़ा भी एक क़िस्सा है। हुआ युं कि उस समय दिलीप कुमार के ज़्यादातर गानें तलत महमूद साहब गाया करते थे, और उन्हीं की गायकी और स्टाइल को ध्यान में रखकर सी. रामचन्द्र ने यह गीत बनाया था। पर सम्भवत: 'डेट प्रॊबलेम' की वजह से तलत साहब रेकॊर्डिंग् तक नहीं पहुँच सके। और क्योंकि गीत जल्द से जल्द रेकॊर्ड होना था, सी. रामचन्द्र ने यह निर्णय लिया कि उस गीत को वे ख़ुद ही गायेंगे। उन्होंने अपनी आवाज़ को युं तलत साहब की शैली मे ढालकर इस गीत को गाया कि आज भी कभी कभी यह शक़ सा होता है कि कहीं इस गीत को तलत साहब ने तो नहीं गाया था। इस गीत के गीतकार शैलेन्द्र ने जब इस गीत की रेकॊर्डिंग् सुनी तो उन्होंने सी. रामचन्द्र से सामने १०० रुपय की शर्त रख दी कि यह आवाज़ तलत महमूद की ही है। पर जब बाद में दूसरे लोगों से उन्हें यह पता चला कि असल मे यह आवाज़ सी. रामचन्द्र की है, तो वे शर्त हार गये। तो लीजिए आज इस गीत का आनंद उठाइए, वैसे इन दिनों मौसम वाक़ई हसीं हो रखा है, मीठी मीठी सर्दियों का आप सभी आनंद ले रहे होंगे, ऐसी हम उम्मीद रखते हैं.



क्या आप जानते हैं...
कि हिंदी में सी. रामचंद्र के संगीत से सजी अंतिम फ़िल्म थी 'तूफ़ानी टक्कर' (१९७८)

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 04/शृंखला 07
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - चितलकर ने इसे एक शराबी के अंदाज़ में गाया था.

सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - गीत के मुखड़े में नायिका को गीतकार किस बात की कसम दे रहा है - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
एकदम सही जवाब है शरद जी....अरे इंदु जी आप कैसे मैदान छोड़ गए, देखिये सब कह रहे हैं कि सवाल आसान थे. बहरहाल अमित जी और अवध जी सही जवाब लेकर आये. भारतीय नागरिक जी धन्येवाद. रोमेंद्र जी कैसे हैं आप

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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4 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

geetkar : Noor lucknavi

अमित तिवारी का कहना है कि -

सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - सुबह का तारा

शरद जी बड़े बड़े नंबर पर पहले ही बाज़ी मार जाते हैं.

दीपा का कहना है कि -

३ - गीत के मुखड़े में नायिका को गीतकार किस बात की कसम दे रहा है - "गीतकार नायिका को जवानी की कसम देकर सूरत दिखने को कह रहा है".

रोमेंद्र सागर का कहना है कि -

बस आप की दुआ चाहिए !
और अमित जी आज तो आप सही वक़्त पर आन पहुंचे ...!!

सभी आवाज़ के दोस्तों को शुभकामनायें !

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