ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 544/2010/244
'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस महफ़िल में आप सभी का फिर एक बार स्वागत है। 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ' शृंखला के अंतर्गत इन दिनों आप इसके तीसरे खण्ड में सुन रहे हैं महान फ़िल्मकार बिमल रॊय निर्देशित फ़िल्मों के गानें, और इनके साथ साथ बिमल दा के फ़िल्मी सफ़र पर भी हम अपनी नज़र दौड़ा रहे हैं। कल हमारी बातचीत आकर रुकी थी १९५५ की फ़िल्म 'देवदास' पर। १९५६ में बिमल दा ने एक फ़िल्म तो बनाई, लेकिन उन्होंने ख़ुद इसको निर्देशित नहीं किया। असित सेन निर्देशित यह फ़िल्म थी 'परिवार'। सलिल चौधरी के धुनों से सजी इस फ़िल्म के गानें बेहद मधुर थे, जैसे कि लता-मन्ना का "जा तोसे नहीं बोलूँ कन्हैया" और लता-हेमन्त का "झिर झिर झिर झिर बदरवा बरसे" (इस गीत को हम सुनवा चुके हैं)। बिमल रॊय और सलिल चौधरी की जोड़ी १९५७ में नज़र आई फ़िल्म 'अपराधी कौन' में, और इसके भी निर्देशक थे असित सेन। बिमल दा ने एक बार फिर निर्देशन की कमान सम्भाली बॊम्बे फ़िल्म्स के बैनर तले बनी १९५८ की फ़िल्म 'यहूदी' में। मुकेश के गाये "ये मेरा दीवानापन है" गीत लोकप्रियता के शिखर पर पहूँचा और इसके गीतकार शैलेन्द्र को मिला किसी गीतकार को मिलने वाला पहला फ़िल्म्फ़ेयर पुरस्कार। लेकिन बिमल रॊय की १९५८ की जो सब से उल्लेखनीय फ़िल्म थी, वह थी 'मधुमती'। अब तक बिमल दा सामाजिक मुद्दों पर फ़िल्में बनाते आये थे जिनमें कोई सम्देश हुआ करते थे। लेकिन 'मधुमती' की कहानी बिल्कुल अलग थी। ऋत्विक घटक लिखित पुनर्जनम की एक कहानी को लेकर जब उन्होंने यह फ़िल्म बनाने की सोची तो उनकी बहुत समालोचना हुई। लेकिन जब यह फ़िल्म बनकर प्रदर्शित हुई, वोही समालोचक बिमल दा के लिए तारीफ़ों के पुल बांधते नज़र आए। 'मधुमती' के बारे में हम बहुत कुछ पहले ही आपको बता चुके हैं, क्योंकि इस फ़िल्म के एक नहीं, बल्कि तीन तीन गीत हम सुनवा चुके हैं ("आजा रे परदेसी", "सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं" और "दिल तड़प तड़प के")। इसलिए आज हम ना तो 'मधुमती' की और चर्चा करेंगे और ना ही इस फ़िल्म का गीत आपको सुनवाएँगे।
साल १९५९। इस साल बिमल रॊय प्रोडक्शन्स के बैनर तले आई फ़िल्म 'सुजाता', जिसका निर्देशन भी बिमल दा ने ही किया। सुनिल दत्त और नूतन अभिनीत इस फ़िल्म की कहानी दुखभरी थी। नवेन्दु घोष की यह कहानी जातिवाद के विषय पर केन्द्रित था, जो आज के समाज में भी उतना ही दृश्यमान है। जहाँ तक फ़िल्म के गीत संगीत का सवाल है, तो सचिन देव बर्मन का संगीत और मजरूह सुल्तानपुरी के गीतों ने एक बार फिर अपना कमाल दिखाया। यह दौर था लताजी और सचिन दा के बीच चल रही ग़लतफ़हमी का, इसलिए फ़िल्म के गाने आशा भोसले और गीता दत्त ने ही गाये। गायकों में शामिल थे मोहम्मद रफ़ी, तलत महमूद, और एक गीत "सुन मेरे बंधु रे" तो सचिन दा ने ही गाया था। आज हम आपको सुनवा रहे हैं आशा भोसले की आवाज़ में इस फ़िल्म से एक बहुत ही सुंदर रचना "काली घटा छाये मोरा जिया तरसाये, ऐसे में कोई कहीं मिल जाए, बोलो किसी का क्या जाए"। बारिश और बादलों के जौनर के गीतों में यह एक बहुत ही उत्कृष्ट गीत है। बारिश और सावन के आने के साथ साथ नायिका का अकेलापन और उसके दिल से निकलती आह को क्या ख़ूब शब्दों में पिरोया है मजरूह साहब ने! "बोलो किसी का क्या जाये" ने तो गाने में चार चाँद लगा दी है। सूनेपन और ख़ालीपन को दर्शाने के लिए साज़ों का भी कम से कम प्रयोग बर्मन दादा ने इस गीत में किया है। इंटरल्युड संगीत में सितार और बांसुरी का सुंदर तालमेल सुनने को मिलता है, जैसे पहले बारिश की फुहारें धरती पर पड़ रही हों। आशा भोसले की नटखट नाज़ भरी अदायगी के पीछे राग पीलू के सुरों का सुंदर प्रयोग हो तो गीत तो कालजयी बनेगा ही! लीजिए, अब आप भी इस गीत को सुनिए और दिल से महसूस कीजिए।
क्या आप जानते हैं...
कि बिमल का सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार कुल सात बार मिला था। ये फ़िल्में थीं - 'दो बीघा ज़मीन', 'परिणीता', 'बिराज बहू', 'मधुमती', 'सुजाता', 'परख' और 'बंदिनी'।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०५ /शृंखला ०५
गीत का इंटर ल्यूड सुनिए-
अतिरिक्त सूत्र - बिमल रॉय की इस फिल्म को एक क्लास्सिक कहा जा सकता है.
सवाल १ - गायक कौन हैं इस देशभक्ति गीत के - १ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी लौटे तो हैं पर क्या अब वो श्याम जी को पीछे छोड़ पायेंगें....ये एक बड़ा सवाल है...जिसका जवाब आने वाले एपिसोड देंगें....एक गुज़ारिश है हम एक बहुत बड़े निर्देशक बिमल दा की यहाँ बात कर रहे हैं.....उनके बारे में भी आप लोग कुछ टिप्पणियां दें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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8 श्रोताओं का कहना है :
Geetkar : Shailendra
abhi kuchh dinon pahale jaba maine yeh geet ek programme mein sunaya to bahut se swadheenta sangraam ke samay ke kuchh logon ki aankhon mein aansoo aa gaye the.
Music Director: Salil Chaudhury
I wish I was there when Sharad ji sang this song in that Musical Programme.
Avadh Lal
Music Director: S D Burman
गायक कौन हैं इस देशभक्ति गीत के - Manna Dey
Pratihba Kaushal-Sampat
Ottawa, Canada
संगीतकार: एक बार फिर सलिल दा.
काश मैं भी उस संगीत कार्यक्रम में उपस्थित होता.
अवध लाल
अरे मैंने भाई श्याम कान्त जी का उत्तर तो अब देखा. जो मेरे उत्तर से भिन्न है. अर्थात हम दोनों में से केवल एक ही सही हो सकता है.
क्या मैंने कोई दूसरा गीत समझा है?
अवध लाल
मेरा उत्तर गलत था. भाई श्यामकांत जी ही सही हैं. बधाई.
अवध लाल
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